सूरज एक बार को पश्चिम दिशा से उग सकता है, चीन में लोकतंत्र भी आ सकता है, पर पाकिस्तान अपना स्वभाव बदल ले, इसके लिए किसी और युग की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। एक बार फिर अपनी आदत अनुसार पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े में भारतीय नाविक और पूर्व नौसेना अफसर कुलभूषण जाधव के मामले में अपने रंग दिखाये हैं।
पाकिस्तानी प्रशासन की ओर से अभी ये खबर आई है कि कुलभूषण जाधव ने याचिका पर पुनः विचार के लिए कोई आवेदन नहीं किया, परंतु उसने दया याचिका के लिए अर्ज़ी दायर की है, जिसपर सरकार विचारधीन है। अर्थात कुलभूषण जाधव ने कथित तौर पर अपने अपराध स्वीकार किए हैं, और अब वो दया याचिका दायर कर रहा है, ताकि उसे मृत्युदण्ड न मिले।
बता दें कि कुलभूषण जाधव एक पूर्व भारतीय नौसैनिक अफसर हैं, जिन्होंने सेवानिर्वृत्ति के बाद ईरान में समुद्र व्यापार में अपना भाग्य आज़माना प्रारम्भ किया। 2016 में उन्हें पाकिस्तानी इंटेलिजेंस यानि ISI के अफसरों ने अगवा कर बलूचिस्तान के रास्ते पाकिस्तान लाये, और उनपर पाकिस्तान के विरुद्ध जासूसी करने के आरोप लगाकर एक फर्जी कोर्ट के जरिये मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई।
परंतु जैसे ही कुलभूषण के साथ हो रहे अत्याचारों की खबर भारत सरकार को लगी , तो भारत सरकार तुरंत एक्शन मोड में आते हुए पाकिस्तान के मृत्युदण्ड के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय यानि आईसीजे में अपील दायर की, जिसके लिए भारतीय अधिवक्ता हरीश साल्वे ने केवल एक रुपये की फीस ली। 2017 में भारत को पहली सफलता तब मिली जब अन्तरिम तौर पर आईसीजे ने सज़ा पर रोक लगाई, और आखिरकार हरीश साल्वे की मेहनत रंग लाई, जब 2019 में आईसीजे ने सर्वसम्मिति से भारत के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया, और न केवल मृत्युदण्ड पर रोक लगाई, अपितु पाकिस्तान को कोंसुलर सेवा न देने का दोषी पाते हुए कुलभूषण को तत्काल प्रभाव से कोंसुलर सेवा देने का आदेश दिया।
परंतु पाकिस्तान के वर्तमान स्वभाव को देखकर ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि वे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की बात सुनने को भी तैयार है। अगर आप सरबजीत सिंह के मामले पर ध्यान दें, तो आप जानेंगे कि विश्वासघात करना तो पाकिस्तानियों का दूसरा प्रोफेशन है। हालांकि, इस मामले में आईसीजे की कोई भागीदारी नहीं थी, पर पाकिस्तान उसी तरह से दुनिया और भारत को उल्लू बना रहा था, जैसे वह अभी कुलभूषण जाधव के मामले में कर रहा है। पाकिस्तान ने एक समय कथित तौर पर सरबजीत सिंह को रिहा करने का भी निर्णय सुनाया था, परंतु ऐन वक्त पर निर्णय बदलते हुए उसने कहा कि सरबजीत सिंह नहीं, बल्कि सुरजीत सिंह रिहा हुआ है। सरबजीत सिंह पर 2013 में कोट लखपत जेल में अज्ञात हमलावरों ने घातक हमला किया, जिसके कारण सरबजीत को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था।
ऐसे में पाकिस्तान से कुलभूषण जाधव के मामले में किसी प्रकार की समझदारी की आशा करना ही अपने आप में एक हास्यास्पद ख्याल है। इस समय पाकिस्तान चारों ओर से घिरा हुआ है। भारत की सेनाएँ भी काफी चौकन्नाी हैं और ऐसे में पाकिस्तान की एक गलती उसे आने वाले समय में बहुत भारी पड़ सकती है। ऐसे में कुलभूषण जाधव के बारे में दुनिया को भ्रमित कर वह अपना उल्लू सीधा करना चाहता है, लेकिन अब दुनिया उसकी बातों में आने वाली नहीं। अब भारत को पाकिस्तान के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाकर कुलभूषण जाधव को सकुशल भारत लाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।