“बैंड, बाजा, बारात बंद करो”, भारत में राफेल के लैंड होते ही लिबरलों के कलेजे के उड़े परखच्चे

अरे रे, इनकी कोशिश कोई काम नहीं आयी

Rafale

आखिरकार वो घड़ी आ ही गई, जिसकी असंख्य भारतीयों को वर्षों से प्रतीक्षा थी। अत्याधुनिक Rafale फाइटर जेट की पहली आधिकारिक खेप अम्बाला एयरबेस पर आ चुकी है, और वह जल्द ही सेवा में उपस्थित होगी। इसी उपलक्ष्य में पीएम मोदी ने राफ़ेल फाइटर जेट्स का स्वागत करते हुए ट्वीट किया, “राष्ट्ररक्षासम पुण्यम,  राष्ट्ररक्षासम व्रतम,  राष्ट्ररक्षासम यज्ञों, दृष्टो नैव च नैव च॥ नभ: स्पृशम दीप्तम…..स्वागतम!”

परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हें अब भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि Rafale फ़ाइटर जेट्स भारत में आधिकारिक रूप से आ गये हैं। इस बिरादरी ने राफ़ेल जेट्स की डिलिवरी को रोकने के लिए न जाने कैसे-कैसे हथकंडे अपनाए, यहाँ तक कि सेना और सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठाये। लेकिन अब जब राफ़ेल जेट्स आ चुके हैं, तो यही लोग अब किसी भी तरह राफ़ेल के आने की खुशी से ध्यान हटाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।

उदाहरण के लिए कांग्रेस का ट्वीट थ्रेड देख लीजिये। पार्टी ने ट्वीट किया, “भारतीय वायुसेना को Rafale जेट्स के लिए बधाई। कांग्रेस की मेहनत और परिपक्व नीतियों के कारण ही आज राफ़ेल फाइटर जेट्स भारतीय वायुसेना का हिस्सा हैं। कांग्रेस की मेहनत पर यदि भाजपा पानी न फेरती, तो आज भारत के पास 36 नहीं, 126 Rafale जेट्स होते, ये राफ़ेल जेट्स 2016 तक भारत के पास होते, और सबकी कीमत सिर्फ 526 करोड़ होती”।

 

हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं, ऐसा वाकई में कांग्रेस पार्टी ने अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से बताया है, लेकिन यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि ये ट्वीट कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट से हूबहू मेल खाता है। जनाब ने ट्वीट किया था, “राफ़ेल मिलने पर बधाई, पर मेरे पास कुछ सवाल हैं। हर एयरक्राफ्ट 526 करोड़ के बजाए 1670 करोड़ रुपये के मूल्य की क्यों है? 126 एयरक्राफ़्ट के बजाए केवल 36 एयरक्राफ्ट ही क्यों खरीदे गए? एक दिवालिया अनिल को इस प्रोजेक्ट की कमान क्यों सौंपी गई, और एचएएल को क्यों नहीं?” 

मतलब दुनिया चाहे सोलर पावर स्पेस शटल से अन्तरिक्ष की सैर करने लगे, पर जनाब का रिकॉर्ड वहीं का वहीं अटका है। लेकिन राहुल अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है, उनके पार्टी में ऐसे कई भरे पड़े हैं। उदाहरण के लिए दिग्विजय सिंह के ट्वीट को ही देख लीजिये जहां वो लिखते हैं, “एक राफ़ेल की कीमत कांग्रेस सरकार ने 746 रुपये तय की थी लेकिन ‘चौकीदार’ महोदय कई बार संसद में और संसद के बाहर भी मांग करने के बावजूद आज तक एक Rafale कितने में खरीदा है, बताने से बच रहे हैं, क्यों? क्योंकि चौकीदार जी की चोरी उजागर हो जाएगी। “चौकीदार” जी, अब तो उसकी कीमत बता दें! 

 

इसके बाद प्रारम्भ होता है वामपंथियों के रुदन का वो सिलसिला, जिसे देख आप भली भांति समझ सकते है कि राफ़ेल के आने से उन्हें खुद कितनी पीड़ा हुई है। कांग्रेस द्वारा घोटाले के खोखले दावों को सिद्ध करने के लिए इन्होंने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया था, लेकिन उनकी एक न चली। अब वे चाहते हैं कि भारतवासी Rafale के आने की खुशियां न मनाए।

शुरुआत की राजदीप सरदेसाई ने, जिन्होंने लिखा है, “अच्छा हुआ Rafale भारत आ गया, वायुसेना को अच्छे एयरक्राफ़्ट की आवश्यकता थी, पर क्या हम इसका बैंड बाजा बारात से स्वागत बंद कर सकते हैं? ये सिर्फ फ़ाइटर प्लेन है, कोई वैक्सीन नहीं!” 

अब बात भारत को नीचा दिखाने की हो और रोहिणी सिंह अपना हाथ न बंटाए, ऐसा हो सकता है क्या? मोहतरमा ने तुरंत एक ट्वीट करते हुए लिखा, “हम अब ऐसे समय में रहने लगे हैं जहां शासन से ज़्यादा ‘उत्सव’ मायने रखते हैं”।

इसी बीच एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार निधि राज़दान ने भी राफ़ेल मामले पर तंज कसते हुए ट्वीट किया, “पेश है भारतीय मीडिया का OTT कवरेज [ओवर द टॉप]!”

परंतु यदि किसी को सबसे ज़्यादा तकलीफ हुई है, तो वे हैं हमारे वन एंड ओनली, पत्रकारिता के मसीहा, सच्चाई के प्रहरी, जनता के वफादार, राजा रविश कुमार। अपने प्राइम टाइम पर रविश कुमार भावनाओं में ऐसा बह गए, कि उनका व्यंग्य, व्यंग्य कम, हास्य कवि सम्मेलन की एक धमाकेदार परफॉर्मेंस ज़्यादा लग रही थी। रवीश कुमार के बयानों को सुन आप भी पेट पकड़ पकड़ हंसने लगेंगे।

जनाब फरमाते हैं, “जैसे 5 अगस्त को जब शिलान्यास के उल्लास में भारत डूबा होगा, तब वह दिन अपने आप ऐतिहासिक होगा। 500 साल बाद ऐसा ऐतिहासिक 5 अगस्त आने जा रहा है। आज 29 जुलाई है, लेकिन देखिये 5 की किस्मत। अम्बाला में जो Rafale विमानों का अवतरण हुआ, उनकी संख्या भी 5 है। यही वो तर्क प्रणाली है, जिससे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में पढ़ने वालों के दिन बन जाते हैं। काश, नौ और दो का जोड़ भी पाँच होता, तो और मज़ा आता। दो और दो का जोड़ भी पाँच होता है, नहीं होता तो मुहावरा नहीं बनता। खौर, आप सभी ने अपनी सोच में अच्छे दिन की समझ का दायरा छोटा कर लिया है जबकि आपको उससे भी बड़ा और व्यापक दिन दिया जा रहा है”।

 

सच कहें तो राफ़ेल के मुद्दे पर इन लोगों का दुख देखते ही बनता है, क्योंकि इनके लाख कुतर्कों एवं अनेकों फर्जी मुकदमों के बावजूद  ये लोग राफ़ेल को भारत आने से कोई नहीं रोक पाया। अब जब Rafale भारत आ ही गया, तो केवल भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर रह रहे शत्रु अब चैन की नींद दोबारा नहीं सो पाएंगे।

Exit mobile version