फर्जी NGO हों या फिर नकली पर्यावरणविद, ये लोग शुरू से ही देश के विकास में रोड़ा अटकाते आए हैं। अब इन NGOs की नज़र भारत के पूर्वोतर राज्यों पर पड़ चुकी है और वहाँ चल रहे विकास कार्यों को चीन की मदद से बाधित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी प्रकार के कई सिविल सोसाइटी ग्रुप केंद्र सरकार के रडार पर आ चुके हैं और सरकार इन सबके खिलाफ एक्शन लेने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कई सिविल सोसाइटी ग्रुप्स के ऊपर चीन की मदद से पूर्वोतर राज्यों में विकास कार्यों को रोकने या उनके काम में रोड़ा अटकाने का आरोप लगा है। यह सभी प्रोजेक्ट्स कोयला खनन, हाइड्रो पावर, जल आपूर्ति, पर्यटन और सड़क विकास से जुड़े हैं। इस मुद्दे को नागालैंड के राज्यपाल आरएन रवि ने प्रकाशित किया था। उन्होंने कहा था कि चीन देश के अंदर पूर्वोतर के विकास कार्यों के ऊपर मत बदलने की कोशिश कर रहा है। चीन Pressure Groups की मदद से ऑपरेट कर रहा है और developmental Projects में देरी करवा रहा है। बता दें कि आरएन रवि पहले deputy NSA रह चुके हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में मेघालय, नागालैंड और मणिपुर के लिए road connectivity सहित कई लंबित परियोजनाएं हैं, जो चीन समर्थक लॉबी के विरोध के कारण अधर में लटकी हुई हैं।
बता दें कि हाल ही में असम में कोल इंडिया लिमिटेड की एक इकाई, नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स (एनईसी) को Dehing Patkai Wildlife Sanctuary क्षेत्र में विरोध प्रदर्शनों के कारण अस्थायी रूप से अपने संचालन को रोकना पड़ा है। चीन की नजर पूर्वोतर राज्यों में को रहे विकास कार्यों पर पड़ चुकी है और वह किसी भी तरह उन्हें रोकना चाहता है। सिर्फ Pressure Groups ही नहीं बल्कि चीन अराकन विद्रोहियों तथा उग्रवादी संगठनों की भी भारत में प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाने के लिए मदद कर रहा है। Wion की रिपोर्ट के मुताबिक, अराकन आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं।
पिछले 5 वर्षों में पूर्वोतर राज्यों में विकास कार्यों को काफी बल मिला है। लगभग सभी राज्यों में कई एयरपोर्ट्स का निर्माण कर बाकी देश से जोड़ने के प्रोजेक्ट्स से ले कर असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले 9.15 किलोमीटर लंबे पुल तक के प्रोजेक्ट्स को पूरा किया गया है। मोदी सरकार पूर्वोत्तर में रेल नेटवर्क के विकास को लेकर 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है। अरुणाचल प्रदेश में 11 रेलवे परियोजनाएं प्रगति पर हैं जो जल्द ही राज्य का चेहरा बदल देंगी और चीन को इसी बात से डर लग रहा है। यही कारण है कि वह अपने द्वारा संचालित pressure Groups, NGOs और सिविल सोसाइटी ग्रुप से विकास कार्यों में देरी करवाना चाहता है।
बता दें कि विदेशी चंदो के बल पर भारत में कई ऐसे संगठन हैं जो पर्यावरण बचाने की आड़ में हर विकास कार्य में बाधा बनते हैं और भारत में विकास दर को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। वर्ष 2014 में सामने आई intelligence bureau की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अमनेस्टी, ग्रीनपीस और action aid जैसे गैर-सरकारी संगठन विदेशी सरकारों के पैसों के दम पर भारत में कोयले और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे। शायद यही कारण था कि वर्ष 2015 में भारत ने ग्रीसपीस को अपने सारा सामान समेटकर भारत से दफा हो जाने को कहा था। पिछले कुछ सालों में हम कई ऐसे उदाहरणों को देख चुके हैं जब इन विदेशी संगठनों ने भारत में विकास कार्यों और उद्योगों के खिलाफ अभियान छेड़ा हो।
पिछले वर्ष महीनों लंबे चले विरोध प्रदर्शनों के बाद तमिलनाडु सरकार ने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से वेदांता ग्रुप को तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट प्लांट को सील करने का आदेश दिया था। सिर्फ इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के रत्नागिरि में 3 लाख करोड़ रुपयों का नानर रिफाईनरी प्रोजेक्ट से लेकर महाराष्ट्र में ही आरे मेट्रो रेल प्रोजेक्ट तक, हर जगह इन नकली पर्यावरणविदों की वजह से ही प्रोजेक्ट्स में या तो देरी देखने को मिली है, या फिर इन्हें हमेशा के लिए रद्द करना पड़ा है।
हालांकि, पूर्वोतर राज्यों के विकास कार्यों को रोकने वाले संगठन के केंद्र सरकार की नजर में आ चुके हैं और सरकार कड़े निर्णय लेने से नहीं पीछे नहीं हटेगी क्योंकि पूर्वोतर राज्यों का विकास पीएम मोदी की लिस्ट में सबसे ऊपर आता है।