अमेरिका और CCP के संबंध दिन प्रतिदिन और बिगड़ते जा रहे हैं और दोनों में खटास बढ़ती जा रही है। अब अमेरिका ने एक नया प्रयोग करते हुए बीजिंग को संबोधित करने वाले शब्दों के चयन में परिवर्तन किया है।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ सहित शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों के लिए, शी जिनपिंग अब “चीन के राष्ट्रपति” नहीं हैं, बल्कि वे “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के महासचिव” हैं। इसका अर्थ है कि अब अमेरिका शी जिनपिंग को राष्ट्रपति नहीं बल्कि General Secretary of the CCP कह कर संबोधित करेगा। इसके अलावा, अपने प्रेस ब्रीफिंग में पोम्पिओ ने CCP को दोषी ठहराना शुरू किया है, न कि चीन को।
कई लोगों के लिए, यह परिवर्तन एक महत्वहीन प्रतीकवाद की तरह लग सकता है, लेकिन सीसीपी और चीन के बीच लोगों को अंतर बता कर अमेरिका एक स्पष्ट संदेश दे रहा है। अमेरिका यह बताने की कोशिश कर रहा है कि दुनिया में चीन या चीन के लोगों के खिलाफ कोई दुश्मनी नहीं है, बल्कि CCP और उसके नेताओं के प्रति है। अमेरिका इस माध्यम से चीन में बैठी सत्तावादी शासन की ओर संकेत कर रहा है जो आम जनता से बुनियादी स्वतंत्रता को छिन चुका है और दशकों से उनका शोषण कर रहा है।
गुरुवार को पोम्पिओ ने घोषणा की, “जनरल सेक्रेटरी शी जिनपिंग एक दिवालिया सर्वसत्तात्मक विचारधारा में विश्वास करने वाले हैं।“ जुलाई के महीने में यह पंद्रहवीं बार था जब अमेरिकी विदेश मंत्री ने चीनी राष्ट्रपति के लिए CCP के उनके पद का उपयोग किया।
यहां तक कि चीनी विस्तारवादी रवैये पर भी पोम्पिओ चीन के बजाय सीसीपी को दोष देते दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए अपनी लंदन यात्रा के दौरान, पोम्पिओ ने कहा, “हमने देखा कि कैसे हांगकांग की स्वतंत्रता को कुचल दिया है। हमने CCP को अपने पड़ोसियों पर धौंस जमाते देखा, दक्षिण चीन सागर में गुंडागर्दी करते देखा तथा भारत को घातक टकराव के लिए उकसाते देखा है।” यहाँ पर भी पोम्पिओ का ध्यान चीन नहीं, बल्कि CCP पर था।
इससे पहले, ट्रम्प ने COVID-19 को लेकर कोरोना की जगह “चीनी वायरस” शब्द का इस्तेमाल किया, जबकि पोम्पिओ ने “वुहान वायरस” का इस्तेमाल किया। इससे स्वाभाविक रूप से इस महामारी को फैलाने में चीन का दोष सामने आ जाता है लेकिन पोम्पिओ अब और अधिक विशिष्ट हो गए हैं।
एक आधिकारिक भाषण में, उन्होंने कहा, “लेकिन आज हम सभी अभी भी मास्क पहने हुए हैं और महामारी के कारण शवों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं क्योंकि CCP अपने वादों में विफल रही है। यही नहीं हम हर सुबह हांगकांग और शिनजियांग में जनता के दमन की खबरों को पढ़ रहे हैं। “
सिर्फ पोम्पिओ ही नहीं बल्कि ट्रम्प प्रशासन में अन्य शीर्ष अधिकारी जैसे एफबीआई के निदेशक Christopher Wray, अटॉर्नी जनरल William Barr और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार Robert O’Brien ने भी शी जिनपिंग को “महासचिव” और चीन को CCP के नाम से संबोधित करने लगे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके मंत्री पोम्पिओ चाहते हैं कि दुनिया और चीन के लोगों को यह समझ आना चाहिए कि कोई Sinophobia नहीं है, लेकिन निरंकुश सीसीपी से खतरों के बारे में सभी को पता होना चाहिए।
हांगकांग स्थित एक अमेरिकी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि शब्दावली में बदलाव “प्रत्येक मुद्दे के बारे में स्पष्ट रूप से बोलने का प्रयास है, ताकि सीसीपी के बारे में भ्रम न रहे और वह बच कर न निकल पाये।
यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमिशन (USCC) के अध्यक्ष Robin Cleveland ने का कहना है कि, “यह एक सत्य है कि वह (शी जिनपिंग ) एक उदार लोकतंत्र के राष्ट्रपति नहीं हैं जहां राष्ट्रपति चुन कर सत्ता में आता है और उसे जनता का समर्थन प्राप्त होता है।” उन्होंने कहा कि “वह एक तानाशाह है जो आत्म–सेवा करने वाली पार्टी के शीर्ष पद पर बैठा है।“ इस तरह क्लीवलैंड ने निष्कर्ष निकाला कि ये शब्द मायने रखते हैं।
पोम्पिओ दुनिया को बताना चाहते हैं कि अमेरिका चीन के लोगों के साथ दुश्मनी नहीं कर रहा है। ट्रम्प प्रशासन उन चीनी लोगों के प्रति सहानुभूति रखता है जो CCP और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से सहमति नहीं रखते हैं।
एक प्रेस ब्रीफिंग में, पोम्पिओ ने कहा, “CCP चीनी लोगों के साथ जो करता है वह काफी बुरा है, लेकिन दुनिया को भी बीजिंग की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए।“
अमेरिका चीन के उन लोगों तक पहुंच बनाना चाहता है जो एक निरंकुश सीसीपी के सबसे बड़े शिकार हैं। यही कारण है कि पोम्पिओ ने CCP के बारे में टिप्पणी की थी, “सबसे बड़ा झूठ CCP यह फैलाती हैं कि वे 1.4 बिलियन लोगों के लिए बोल रहे हैं। वही लोग जो बोलने के लिए 24 घंटे निगरानी में रखे जाते हैं और उत्पीड़न का सामना करते हैं। सच तो यह है कि CCP को किसी भी दुश्मन से ज्यादा चीनी लोगों की राय या उनके मत से डर लगता है कि कहीं उनकी सत्ता पर से पकड़ न चली जाए।”
यहां तक कि व्हाइट हाउस के पूर्व रणनीतिकार स्टीव बैनन ने भी हाल ही में दावा किया था, “यह CCP है, न कि चीन, जिसे ट्रम्प हराना चाहते है”।
अमेरिका चीन की CCP और जनता के बीच एक मतभेद पैदा करना चाहता है। यह शीत युद्ध-काल की रणनीति है जिसे सोवियत यूनियन को विघटित करने में वाशिंगटन ने बड़े पैमाने पर उपयोग किया था। CCP भी सोवियत यूनियन की तरह अलग अलग क्षेत्रों में कमजोर है जैसे तिब्बत, हांगकांग, शंघाई और शिनजियांग। इन सभी क्षेत्र में CCP के प्रति विरोधात्मक भावना सबसे पहले भड़कने की प्रबल संभावना है। इसके बाद सीसीपी के कब्जे वाले क्षेत्र सात टुकड़ों में टूट सकते हैं।
इस प्रकार युद्ध की रेखाएँ खींची जा चुकी है। ट्रम्प और पोम्पिओ CCP और उसके सैन्य दल PLA से सामना के लिए कमर कस चुके हैं। इस युद्ध में चीन नहीं, बल्कि CCP पराजित होगा और चीन कम्युनिस्ट सत्तावाद से मुक्त हो जाएगा।