वुहान वायरस की महामारी ने दुनिया को चीन और उसके बर्बर शासक शी जिनपिंग के विरुद्ध एक कर दिया है। लेकिन चीन के विरुद्ध जो लड़ाई अमेरिका के नेतृत्व में हो रही थी, वो अब भारत के नेतृत्व में हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब चीन विरोधी अभियान का नेतृत्व अपने हाथों में लिया है, और पिछले कुछ हफ्तों से इस दिशा में काफी सार्थक कदम भी उठाए हैं।
अमेरिकी मीडिया पोर्टल ब्रेट्बार्ट ने इसी परिप्रेक्ष्य में एक लेख प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है, “भारत के मोदी ने चीन के प्रमुख विरोधी के तौर पर ट्रम्प को पछाड़ा”। दिलचस्प बात तो यह है कि इस लेख का किसी ने कोई विरोध नहीं किया , क्योंकि विरोध के लिए यहाँ कोई कारण भी नहीं है। जैसे-जैसे चीन और भारत के बीच की तनातनी बढ़ रही है, भारत ने यह जता दिया कि यह पहले वाला भारत नहीं है।
भारत ने ये स्पष्ट कर दिया है कि वह एक शान्तिप्रिय देश है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह अपनी आत्मरक्षा में शत्रु को मुंहतोड़ जवाब देने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाएगा। गलवान घाटी के हमले से ये बात सिद्ध भी हुई है कि आवश्यकता पड़ने पर भारत के जवान शत्रु को उसी की माँद में पछाड़ भी सकते हैं। अभी हाल ही में 59 चीनी एप्स को प्रतिबंधित कर केंद्र सरकार ने इस दिशा में एक सराहनीय कदम भी उठाया है।
परंतु चीन को हर क्षेत्र में पछाड़ने की शुरुआत बहुत पहले ही हो गई थी। इसकी शुरुआत भारत ने बहुत पहले ही कर दी थी, जब चीन ने ऑस्ट्रेलिया के साथ ट्रेड वॉर शुरू करते हुए ऑस्ट्रेलिया के जौ इम्पोर्ट्स पर प्रतिबंध लगाया था। ऐसे में भारत ने सहायता का हाथ बढ़ाते हुए न केवल ऑस्ट्रेलिया को अपनी ओर किया, बल्कि उसे चीन के विरुद्ध निर्णायक युद्ध में अपना अहम साझेदार भी बनाया। इसके अलावा भारत ने चीन से बाहर निकल रही विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने हेतु भी काम किया था। भारत ने चीन से आने वाली विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने हेतु यूरोपीय देश लक्ज़म्बर्ग से दोगुने साइज़ की भूमि आवंटित करने का भी आशवासन दिया था।
यही नहीं, भारत की सर्वोच्च व्यापारी बॉडी यानि CAIT अथवा कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने यह घोषणा की थी कि वह दिसंबर 2021 तक चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान चीन को पहुंचाएंगे।
भारत के पदचिन्हों पर चलते अमेरिकी फेडरल कम्युनिकेशन कमिशन ने 30 जून को आधिकारिक तौर पर चीनी टेलीकॉम कंपनियों Huawei और ZTE से सभी नाते तोड़ते हुए इन्हे राष्ट्र के लिए खतरा बताया। अब इससे स्पष्ट पता चलता है कि इस समय चीन विरोधी अभियान का नेतृत्व कौन कर रहा है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने 2016 में चीन को बर्बाद कर देने के वादे पर अमेरिकी सत्ता में अपनी जगह बनाई थी। ट्रम्प प्रशासन ने इस दिशा में अहम कदम उठाते हुए चीन के विरुद्ध ट्रेड युद्ध भी छेड़ा। कभी वे कोरोनावायरस को चीनी वायरस कहते हैं, तो कभी वे चीन से व्यापार डील के नाम पर उइगर समुदाय के विरुद्ध हो रहे अत्याचार को उठाते हैं। परंतु पीएम मोदी ने उनसे दो कदम आगे बढ़ाते हुए युद्ध के मैदान में जवाब के देने के साथ व्यापारिक झटका भी दे रहे हैं।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी ने डोनाल्ड ट्रम्प को चीन के विरुद्ध वैश्विक अभियान का नेतृत्व करने में पछाड़ दिया है। पीएम मोदी ने भले ही चीन के विरुद्ध अभियान में फूँक फूँक के कदम रखा हो, लेकिन जब चीन अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा था, तब उन्होंने चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए ये स्पष्ट जताया कि चीन की कोई भी नापाक हरकत को भारत अब और बर्दाश्त नहीं करेगा।