प्यारे न्यारे दुलारे ओली जी,
आपकी गुलु-गुलु की कथाएँ सुन कर चित्त आनंदित हुआ, आशा है वृद्धावस्था में आपके इन्द्रिय और सभी शारीरिक अवयव सम्यक् रूप से काम कर रहे होंगे। ओली जी आप एक आदर्श पुरुष हैं, एक प्रेरणास्रोत हैं और एक युगपुरुष हैं। आप अब तक समझ ही गए होंगे कि मैं ये पत्र केवल और केवल आपका महिमामंडन करने के लिए लिख रहा हूँ।
हे अजातशत्रु ओली जी भारतीय मीडिया ने आपके निजी जीवन को जिस अशोभनीय तरीके से प्रदर्शित किया है, मैं उसकी घोर भर्त्सना करता हूँ। आपके कोरोना के उत्पत्ति को लेकर दिये गए बयानों को जैसे अतार्किक बताया गया वो न केवल निंदनीय है, वरन हास्यास्पद भी। आप ने आपके कथित सत्तापलट को लेकर जो बयान दिये वे अत्यंत तार्किक थे, और मुझे तो व्यक्तिगत रूप से मार्मिक भी लगे। फिर आपने बाढ़ को लेकर एक वक्तव्य दिया जो वृद्धावस्था में भी आपकी मेधाशक्ति के उत्कृष्टता की परिचायक है और भगवान श्री राम को लेकर आपने जो बयान दिया वो लोमहर्षक, विलक्षण, अप्रतिम और महान संभावनाओं से युक्त है।
हे चिरंजीवी ओली जी, मैं कोरोना, और गुलु-गुलु की गहराइयों में नहीं उतरूँगा, क्योंकि आपने अपने विलक्षण तर्क से सम्पूर्ण चराचर को स्तब्ध कर दिया है। मैं बाढ़ के संबंध में भी कोई टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि आपकी सत्यवादिता वंदनीय है और तथ्य को सत्यापित करने में कोई आपका सानी नहीं है। मैं केवल प्रभु श्री राम पर की गयी आपकी टिप्पणियों पर थोड़ा प्रकाश डालूँगा। जब बात श्रीराम और रामायण की हो तो प्रारम्भ हमेशा दोहे से करना चाहिए तो मैं जो की एक निम्नस्तरीय कवि भी हूँ, दो पंक्तियाँ लिख कर आपका अभिनंदन करना चाहूँगा।
ओली ब्रह्मपिशाच सदृश निकलेगी तेरी झांकी
राम जी नेपाल के थे, जय जय हो यांकी
हे वृद्ध पुरूषार्थियों में अग्रगण्य ओली जी, आपने अपने श्रीमुख से कहा कि अयोध्या नेपाल में था और भारत ने नकली अयोध्या का निर्माण करवाकर श्रीराम के विरासत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया जैसा कि भारत ने लीपुलेख और काला पानी पर किया है। मैं आपको इस ऐतिहासिक तथ्यावलोकन के लिए साधुवाद देता हूँ। ये भारत द्वारा रचा ऐतिहासिक षड्यंत्र था जो शुरू महर्षि वाल्मीकि से होता है जो संभवतः मोदी जी के सांस्कृतिक सलाहकार थे।
महर्षि वाल्मीकि बारंबार “जंबुद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे” दोहराते हुए कहते हैं:
इक्ष्वाकूणामिदं तेषां रज्ञां वंशे महात्मनाम् |
महदुत्पन्नमाख्यानं रामायणमिति श्रुतम् ||
वैसे तो आप संस्कृत के महापंडित हैं जैसे के अधिकतर वामी विद्वान होते हैं, मैं आपकी मानस-वंदना करते हुए इस श्लोक का शब्दार्थ बताता हूँ। महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं इक्ष्वाकु के महान और पूजनीय वंश में ही रामायण नामक इतिहास की उत्पत्ति होती है।
हे वीरवृद्ध ओली जी, फिर वाल्मीकि जी कहते हैं:
कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् |
निविष्टः सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान् ||
अर्थात, कोशल नामक एक धन धान्य से सम्पन्न एक अति सुंदर राज्य है जो सरयू के किनारे स्थित है।
हे सिंह सदृश ग्रीवा वाले महान ओली जी, फिर वाल्मीकि जी कहते हैं:
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता |
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ||
उस राज्य में अयोध्या नामक एक महान जनपद है जो स्वयं मनु द्वारा निर्मित है।
महर्षि वाल्मीकि के श्लोकों और आपके प्रलयंकारी कथन को मिश्रित करें तो तीन चीज़ें सिद्ध होती हैं।
- भारत ने ना सिर्फ नेपाल से अयोध्या का हरण किया वरन सरयू नदी और कोशल राज्य का भी हरण किया।
- मानवों के उत्पत्ति-स्रोत माने जाने वाले मनु ऋषि भी मूलतः नेपाल के ही थे।
- और तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात – क्योंकि मनु नेपाल के हैं इसलिए सम्पूर्ण मानव जाति नेपाल से ही आई।
भारत के इस ऐतिहासिक आडंबर को जो त्रेतायुग से चली आ रही है उसका रहस्योद्घाटन करने के लिए आपको प्रणाम।
हे हो-यांकी चित्तनाथ ओली जी, आपका यह प्रयास आपको एक महान सत्यानवेशी, दर्शनशास्त्री और इतिहासकार बनाता है। आशा है आप भारतीय मीडिया के कटाक्षों से भीत नहीं होंगे वरन मेरे जैसे अनुयायियों के द्वारा लिखित श्लाघन को ही गंभीरता से लेंगे। आशा करता हूँ कि आप ऐसे ही महान सिद्धांतों का जीवन भर प्रतिपादन करते रहेंगे।
हे मिथुनस्वरूप ओली जी, आपका यह अनन्य भक्त आपसे आज्ञा लेगा। आपकी गुलु-गुलु की कथाएँ सुनने को व्यग्र रहूँगा।
जय श्री राम