राजस्थान की राजनीति में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। कल सचिन पायलट ने BJP में जाने के किसी भी सवाल को सिरे से नकार दिया। इससे अब राजस्थान की राजनीति और दिलचस्प हो गयी है। अब पायलट के पास एक ही रास्ता बचा है और वह रास्ता है शरद पवार, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी की राह पर चलते हुए अपनी नई पार्टी बनाने का। अगर सचिन पायलट यह कदम उठाते हैं तो राजस्थान से कांग्रेस का सफाया होना तय हो जाएगा। कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है कि जब भी किसी राज्य में उसकी पार्टी का कोई बड़ा नेता उसका साथ छोड़ता है और अपनी नई पार्टी बनाता है तो उस राज्य में कांग्रेस कभी वापसी नहीं कर पाई है। अगर चुनावों के मद्देनजर देखें तो राजस्थान में हर विधान सभा चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन होता है और बारी-बारी से कांग्रेस तथा BJP को बहुमत प्राप्त होती है। परंतु अब अगर सचिन पायलट अपनी अलग पार्टी बनाते हैं तो मुक़ाबला त्रिकोणीय हो जाएगा लेकिन सफाया कांग्रेस का होगा क्योंकि पायलट कांग्रेस के वोटरबेस में ही सेंध मारेंगे जिससे कांग्रेस का सफाया होता तय है।
सचिन पायलट जिस प्रकार लोकप्रिय नेता हैं, उससे न सिर्फ कांग्रेस का वोट कटेगा बल्कि राजस्थान से कांग्रेस की विदाई भी तय हो जाएगी। देश भर में कई ऐसे उदाहरण है जिससे यह समझा जा सकता है कि अगर कोई बड़ा नेता कांग्रेस को छोड़ कर अपनी नई क्षेत्रीय पार्टी बनाता है तो वहाँ से कांग्रेस का पत्ता कट जाता है।
पश्चिम बंगाल
सबसे पहला उदाहरण पश्चिम बंगाल का है। जब पश्चिम बंगाल में दशकों तक कम्युनिस्ट का शासन रहा तब कांग्रेस प्रमुख रूप से विपक्षी पार्टी हुआ करती थी। परंतु पार्टी के रवैये को देखते हुए और अपनी महत्वकांक्षा को पूरा न होता देख 26 वर्षों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य ममता बनर्जी ने 1998 में कांग्रेस से अलग हो कर बंगाल की अपनी पार्टी, “तृणमूल कांग्रेस” बनाई थी। आज पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों का सफाया हो चुका है और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं लेकिन कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं रहा है। हालत ये है कि आज राज्य में टीएमसी, बीजेपी और कम्युनिस्ट के बाद कांग्रेस का नंबर आता है।
महाराष्ट्र
इसी तरह महाराष्ट्र में शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ मिल कर कांग्रेस में सोनिया गांधी के विरोध करने के कारण पार्टी से बाहर निकाले जाने के बाद 25 मई 1999 को एनसीपी का गठन किया था। आज शरद पवार महाराष्ट्र के सबसे बड़े राजनीतिक किंग मेकर हैं। हालत यह है कि कांग्रेस को सत्ता में आने के लिए शरद पवार का सहयोग लेना पड़ता है। कभी हर राज्य में एक मजबूत जनाधार और सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस पार्टी यहाँ चौथे स्थान पर है और इस बार के विधानसभा चुनाव में 288 में से केवल 42 सीटें ही जीत सकी थी।
आंध्र प्रदेश
ऐसा ही आंध्र प्रदेश में भी हुआ जहाँ से कांग्रेस का सफाया हो चुका है। यदि जगन मोहन रेड्डी के पिता जीवित होते तो आज जगन कांग्रेस में होते क्योंकि जगन के पिता कांग्रेस के एक जाने माने नेता थे। पिता के असामयिक निधन के बाद जगन को कांग्रेस में अहमियत नहीं मिली और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर YSR Congress का गठन किया। आज 175 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 151 सदस्य के साथ जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। यही नहीं, वे आंध्र प्रदेश की 25 लोक सभा सीटों में से 22 सीटों पर जीत दर्ज कर केंद्र की राजनीति में भी अपनी पार्टी की प्रासंगिकता बना चुके हैं। राज्य में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो चुका है। स्पष्ट है कांग्रेस ने यदि जगन की महत्वाकांक्षाओं को समझा होता तो शायद राज्य में उसका सफाया न हुआ होता।
ओड़ीसा
ठीक इसी तरह ओड़ीसा से भी कांग्रेस का सफाया हुआ। ओड़ीशा में पिछले दो दशक से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक एक कांग्रेसी नेता थे। वर्ष 1960 में उन्होंने ओड़ीशा कांग्रेस का अध्यक्ष पद ग्रहण किया तथा उनके नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी ने 140 में से 82 सीटें जीतीं थी। परंतु 1963 में उन्होंने कामरेड योजना के तहत पद से इस्तीफा दे दिया इसके बाद 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के ऊपर इन्दिरा गांधी से तनातनी के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर “उत्कल कांग्रेस” क्षेत्रीय पार्टी बनाई थी। उसके बाद उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिल गए जिससे ओड़ीसा में जनता पार्टी का वर्चस्व बढ़ गया और कांग्रेस नगण्य होती गयी। इसके बाद उनके बेटे नवीन पटनायक ने अपनी अलग पार्टी “बीजू जनता दल” बनाई और आज भी शासन में हैं लेकिन कांग्रेस कहीं भी रेस में नहीं है।
इन चारों उदाहरण से से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी बड़े नेता का कांग्रेस से अलग होने के बाद अपनी नई पार्टी बनाने से उस राज्य में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाता है। राजस्थान में हर पाँच वर्ष बाद सत्ता बदलती है और यह एक बार BJP तो एक बार कांग्रेस को मौका मिलता है परंतु सचिन पायलट के नई पार्टी गठन करने के बाद कांग्रेस का सफाया हो जाएगा। वर्ष 2013 में हार के बाद यह पायलट ही थे जिन्होंने पाँच बर्ष मेहनत कर कांग्रेस को अगले चुनाव में जीत दिलाई थी। उनके जाने से कांग्रेस को ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई वह कभी नहीं कर पाएगी और एक दो सीटों तक सिमट कर रह जाएगी।