चीन को अब रूस से हाल ही में एक और झटका प्राप्त हुआ है। रूस ने चीन को प्रस्तावित S-400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति निलंबित कर दी है, क्योंकि रूस की दृष्टि में अब चीन इनके योग्य नहीं है। अभी कुछ ही दिनों पहले रूस ने चीन पर जासूसी करने का आरोप लगाया था। इसके बाद S- 400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति जो पहले होल्ड पर थी, उसे अब चीन के लिए पूर्णतया निलंबित कर दिया है।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार चीनी समाचार पत्र सोहु ने यह सिद्ध किया है कि रूस ने चीन को होने वाली S-400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति निलंबित की है। बता दें कि एस- 400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो अपने निशाने को 400 किलोमीटर की दूरी से भी मारकर गिरा सकती है।
परंतु रूस ने ऐसा निर्णय क्यों लिया? इसके पीछे यूए वायर ने चीनी मीडिया के हवाले से कहा, “ इस बार रूस ने चीन को दी जाने वाली S-400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति रोक दी है। ये चीन के भले के लिए ही है। शस्त्र खरीदना रसीद लेकर सामान खरीदने जितना आसान तो नहीं है। चीन को यदि अपने व्यक्ति भेजने है ट्रेनिंग के लिए, तो रूस को भी काफी तकनीकी विशेषज्ञों को नियुक्त करना पड़ेगा। रूस के मिसाइल न भेजने के पीछे का कारण काफी नेकदिल है। रूस को चिंता है कि एस 400 मिसाइल की ऐसे समय में डिलीवरी चीन द्वारा वुहान वायरस को खत्म करने की मुहिम को बेपटरी कर देगी, और रूस कभी ऐसा नहीं होने देगा”।
ऐसा मज़ाक केवल चीन ही कर सकता है। रूस द्वारा एस 400 मिसाइल की आपूर्ति को निलंबित करने के पीछे ऐसा बेतुका कारण कोई नहीं दे सकता। सच तो यह है कि रूस भी भली भांति जानता है कि चीन के हाथ में एस 400 देना मानो बंदर के हाथ में ग्रेनेड थमाने के बराबर है। वैसे भी रूस द्वारा चीन को S-400 मिसाइल सिस्टम न भेजने के पीछे एक नहीं, अनेक कारण है।
अभी कुछ हफ्तों पहले चीन ने अपना असली रंग दिखाते हुए रूस के Vladivostok शहर पर अपना दावा ठोकने की हिमाकत की थी। दरअसल, चीनी सोशल मीडिया Weibo पर जैसे ही रूसी दूतावास की ओर से व्लादिवोस्टॉक की 160वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में एक पोस्ट डाली गयी, जिससे चीनी यूजर्स, चीनी पत्रकारों और चीनी राजदूतों को बहुत पीड़ा पहुंची। उन्होंने जल्द ही यह दावा करना शुरू कर दिया कि व्लादिवोस्टॉक ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा रहा है, और व्लादिवोस्टॉक पर रूस का कब्जा अवैध है। उन्होंने यह भी दावा किया कि वर्ष 1860 में जब अंग्रेजों और फ्रांसियों के हाथों चीन की हार हो गयी थी, तो रूस ने व्लादिवोस्टॉक पर कब्जा जमा लिया था। ज़मीन माफ़िया चीन की ओर से सबसे पहले यह दावा CGTN के पत्रकार ने किया। उन्होंने ट्विटर पर अपना रोष प्रकट करते हुए लिखा “चीन में रूसी दूतावास की इस पोस्ट का बिलकुल भी स्वागत नहीं है। व्लादिवोस्टॉक का इतिहास यह है कि वर्ष 1860 में रूस ने यहाँ सैन्य कार्रवाई कर इसे अपने में मिला लिया था। लेकिन यह रूस के कब्ज़े से पहले चीन का हेशनवाई शहर था”।
इसके अलावा चीन ने भारत को दिये जाने वाले एस 400 मिसाइल सिस्टम में भी अड़ंगा लगाने का प्रयास किया था। चीन ने अपने मुखपत्र People’sDailyके माध्यम से यह एजेंडा थोपने की कोशिश की कि अगर रूस चीनियों के दिल में स्थान पाना चाहता है तो भारत को ऐसे संवेदनशील मौके पर S-400 की आपूर्ति न करे। People’s Daily ने फेसबुक के एक ग्रुप ‘Society for Oriental Studies of Russia’ पर लिखा कि एक्स्पर्ट्स कहते हैं कि अगर रूस को चीनियों के दिल में स्थान बनाना है तो भारत को हथियार न बेचे। इस मीडिया हाउस ने यह भी लिखा कि चीन से बॉर्डर विवाद के कारण भारत जल्द से जल्द 30 Fighter Jets खरीदना चाहता है जिसमें मिग 29 और सुखोई 30MKI शामिल हैं।
चीन के इस प्रोपेगैंडा को देख कर यह समझा जा सकता है कि वह भारत और रूस के बढ़ते संबंधो से किस प्रकार बेचैन हो चुका है और अब उसे यह डर सता रहा है कि कहीं रूस भारत को S-400 न दे दे। इसलिए वह अपनी मीडिया के द्वारा S-400 की आपूर्ति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। परंतु उसकी यह कोशिश नाकाम हो चुकी है और रूस तथा भारत के रक्षा मंत्री ने यह संकेत दिया है कि रूस भारत को S-400 की आपूर्ति समय से पहले कर सकता है, और हुआ भी यही। राजनाथ सिंह के मॉस्को दौरे के बाद रूस ने यह सुनिश्चित किया की भारत को समय से पहले एस 400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति की जाएगी।
एक ओर भारत को समय से पहले S-400 मिसाइल सिस्टम देना, और दूसरी ओर चीन की लाख गिड़गिड़ाने करने के बाद भी उसे यह सिस्टम न देना एक बार फिर दर्शाता है कि रूस के लिए कौन महत्वपूर्ण है। वह उसी का साथ देगा, जो उसकी पीठ में छुरा न घोंपे, और चीन की वर्तमान हालत को देखते हुए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि उसने इस बार गलत देश से पंगा लिया है।