क्या अब ईरान के अंत की शुरुआत हो चुकी है?
क्या अब ईरान के अंत की शुरुआत हो चुकी है? पिछले कुछ दिनों में कई ऐसी घटनायें हुई हैं, जो लगातार इसी बात की ओर इशारा कर रही हैं। एक तरफ अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहे ईरान ने चीन के साथ मिलकर आगामी 25 वर्षों के लिए रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी का ऐलान कर दिया, तो वहीं अब ईरान ने भारत के साथ रिश्तों को बिगाड़ने वाला एक बड़ा फैसला लिया है। The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान ने चाबहार रेल प्रोजेक्ट से भारत को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Iran के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने ईरानी राष्ट्रपति रूहानी के साथ मिलकर चाबहार रेल प्रोजेक्ट को विकसित करने का समझौता किया था। यह प्रोजेक्ट 1.4 बिलियन डॉलर की लागत का होना था। हालांकि, इसके चार सालों बाद ईरान ने यह कहकर भारत को बाहर का रास्ता दिखा दिया है कि भारत इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में रूचि नहीं दिखा रहा था। अब Iran खुद इस रेल प्रोजेक्ट को विकसित करेगा।
हालांकि, क्या ईरान के इस कदम का नई दिल्ली में स्वागत किया जाएगा? बिलकुल नहीं! भारत चाबहार पोर्ट के जरिये अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक पहुंच बनाने की योजना पर काम कर रहा है, जिसे Iran के इस कदम के बाद गहरा धक्का लग सकता है। पहले से ही वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ चुके ईरान ने अपने इस कदम से एक और बड़ी शक्ति यानि भारत को अपना दुश्मन बना लिया है। हालांकि, ईरान के इस कदम के पीछे चीन का हाथ भी हो सकता है, जिसने हाल ही में आने वाले 25 वर्षों में चीन में 400 बिलियन डॉलर निवेश करने का प्लान बनाया है।
चीन और ईरान ने हाल ही में अपनी रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की है, जिसके जरिये चीन ईरान के कई अहम क्षेत्रों में बड़ा निवेश कर सकता है। टेलिकॉम सेक्टर से लेकर बैंकिंग सेक्टर और एनर्जी सेक्टर तक, चीन Iran के सभी क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमाने की पूरी तैयारी कर चुका है। चीन-ईरान की यह साझेदारी ऐसे समय में पनप रही है, जब चीन खुद दुनियाभर में isolation का शिकार बनता जा रहा है। चीन ने दुनिया की सभी बड़ी ताकतों के साथ पंगा लिया हुआ है और Iran तो पहले ही अमेरिका के प्रतिबंधों की मार झेल रहा है। ऐसे में चीन के साथ साझेदारी Iran को थोड़े समय के लिए तो भा सकती है, लेकिन लंबे समय में ईरान के लिए यह साझेदारी घातक साबित हो सकती है।
चीन के पैरों में पड़ने की IRAN की भी अपनी क्या मजबूरीयां हैं?
चीन के पैरों में पड़ने की ईरान की भी अपनी मजबूरीयां हैं। दरअसल, अभी ईरान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को तुरंत आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। वर्ष 2016 में राष्ट्रपति ट्रम्प के आने के बाद Iran के खिलाफ अमेरिकी नीति और ज़्यादा सख्त हुई है। वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने बड़ा फैसला लेते हुए राष्ट्रपति ओबामा के समय वर्ष 2015 में साइन हुए Iran न्यूक्लियर डील से बाहर आने का फैसला लिया। इसके साथ ही अमेरिका ने Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act यानि CAATSA के माध्यम से ईरान, रूस और नॉर्थ कोरिया पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया था। वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा इस डील को रद्द करने और दोबारा कड़े प्रतिबंध लगाने की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती जा रही है। वर्ष 2019 में IMF ने अनुमान लगाया था कि Iran की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
ईरान एक तेल समृद्ध देश है जिसकी अर्थव्यवस्था को मूलतः क्रूड ऑयल के एक्सपोर्ट से ही सहारा मिलता था। लेकिन वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने CAATSA लाकर उन सभी देशों को भी प्रतिबंध की धमकी दी, जो Iran के साथ अपने आर्थिक रिश्ते बरकरार रखना चाहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकतर देशों ने Iran से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया और Iran के ऑयल एक्सपोर्ट में भारी कमी देखने को मिली। वर्ष 2018 में ईरान जहां 2.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल एक दिन में एक्सपोर्ट करता था, तो वहीं आज ईरान सिर्फ 0.25 मिलियन बैरल कच्चे तेल से भी कम तेल एक्सपोर्ट कर पाता है। Iran की ऐसी हालत तब हुई है जब भारत और चीन जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियां भी ईरान पर इस प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थीं। ईरान को इन देशों के साथ होने से भी कोई खास फायदा नहीं पहुँच पाया।
ईरान के घरेलू हालात भी कुछ ठीक नहीं हैं। ईरान में लगभग 30 प्रतिशत युवा बेरोजगारी दर बताई जाती है, जिसके कारण वहां के युवा भी सरकार से बेहद परेशान हैं। वर्ष 2009 में Iran में एक बड़ा सरकार विरोधी प्रदर्शन हुआ था। हजारों लोग तत्कालीन कट्टरपंथी राष्ट्रपति अहमदी नेजाद के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनावों में धांधली की थी। तब सरकार ने बेहद सख्त तरीके से उस आंदोलन को कुचल दिया था, जिसे तब “हरित क्रांति” कहा जा रहा था। हालांकि, ईरान के युवाओं में सरकार विरोधी मानसिकता में कोई कमी नहीं आई है। वे अपने देश में 1953 से पहले वाला लोकतन्त्र चाहते हैं, जहां युवाओं और महिलाओं को सभी तरह के अधिकार मिलते हों।
जिस देश के युवा सरकार से परेशान हो, जिस देश के पास अमेरिका और भारत जैसे दुश्मन हों, जिस देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा चुकी हो और आखिर में, जिस देश के पास चीन जैसा दोस्त हो, उस देश का बर्बाद होना तय है। ईरान अब इन सभी पैमानों पर खरा उतरता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के साथ पंगा लेकर Iran ने अपने अंत की शुरुआत कर दी है।