एक एक करके अमेरिका चीन के जटिल खुफिया नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहा है। ट्रम्प प्रशासन ने अब उन चीनी जासूसों पर धावा बोल दिया है, जो विद्यार्थियों के भेस में अमेरिका के शैक्षणिक क्षेत्रों में चीन के लिए काम कर रहे थे। इससे अमेरिका का उद्देश्य स्पष्ट है – उन चीनी जासूसों का भंडाफोड़ करना जो चीन के लिए अमेरिका की बौद्धिक संपत्ति चोरी करने में जुटे हुए हैं।
चीनी जासूसों पर अमेरिका की वर्तमान कार्रवाई में जुटी अमेरिका की एफ़बीआई एजेंसी का संदेश स्पष्ट है – कहीं भी छुपे हो, हम तुम्हें ढूंढकर ही दम लेंगे। जिस भी चीनी विद्यार्थी के संबंध सीसीपी या फिर चीनी सेना से स्पष्ट पाये जाते हैं, उनपर अमेरिका तगड़ी कार्रवाई से भी नहीं हिचकिचाएगा। अमेरिका को शक है कि चीनी विद्यार्थी के भेस में जासूस इस समय अमेरिका में चीन के विभिन्न दूतावासों में छुपे हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए जुआन टेंग के केस को ही देख लीजिये। टेंग ने दावा किया कि वे चीनी सेना से जुड़ी हुई नहीं थी। परंतु जांच पड़ताल में सामने आया कि उसके कई फोटो चीनी सेना के पोशाक में पाये गए, और फिर पता चला कि वे चीन के एयर फोर्स मिलिट्री चिकित्सा विश्वविद्यालय में काम कर चुकी है। फिलहाल वह कथित तौर पर सैन फ्रांसिस्को के चीनी दूतावास में छुपी हुई है।
अब अमेरिकी प्रशासन बिना दूतावास के अनुमति के कोई कार्रवाई तो नहीं कर सकता। परंतु डोनाल्ड ट्रम्प ने स्पष्ट कर दिया कि चीनी दूतावासों को कभी भी बंद किया जा सकता है, और इसी दिशा में काम करते हुए ह्यूस्टन में स्थित चीनी महादूतावास को बंद करने के निर्देश भी जारी किए हैं। ह्यूस्टन में स्थित चीनी महादूतावास को इसलिए बंद कराया गया क्योंकि उसपर अमेरिकी बौद्धिक संपत्ति और अमेरिका की निजी जानकारी को भारी मात्रा में चोरी करने का आरोप लगा है। डोनाल्ड ट्रम्प का निर्णय व्यर्थ भी नहीं गया, क्योंकि ह्यूस्टन से फायर फाइटर स्क्वाड को कॉल आई कि चीनी दूतावास में कागज जलाए जा रहे हैं। अब ये विरोध में तो निस्संदेह नहीं जलाए जा रहे होंगे।
परंतु टेंग अकेली ऐसी ‘जासूस’ नहीं है। अमेरिकी प्रशासन ने चेन सॉन्ग नामक चीनी रिसर्चर की जमानत याचिका का भी विरोध किया, क्योंकि उसे भी वीजा के धोखाधड़ी में पकड़ा गया है। इन दोनों के अलावा दो और व्यक्तियों को इन्हीं आरोपों के आधार पर कैलिफोर्निया और ड्यूक विश्वविद्यालय से पकड़ा गया है। ये मुद्दा काफी शुरू से अमेरिका के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द रहा है, लेकिन इस बार चीन ने सभी सीमाएं लांघ दी थी, जिसके कारण अमेरिका को भी कड़े कदम उठाने को विवश होना पड़ा था।
स्वयं एफ़बीआई के मुखिया क्रिस्टोफर व्रे ने कहा, “यह घटनाएँ मेरे देश के लिए एक बहुत बड़े खतरे के समान है, क्योंकि इससे न सिर्फ हमारी बौद्धिक संपत्ति, अपितु हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी खतरे मैं आ सकती है”। इसी बारे में आगे बात करते हुए क्रिस्टोफर ने बताया कि हर 10 घंटे में एफ़बीआई चीन से संबंधित जांच पड़ताल शुरू करती है। इसी दिशा में टॉम कॉटन और मारशा ब्लैकबर्न ने चीनी विद्यार्थियों, विशेषकर वैज्ञानिक क्षेत्र से जुड़े विद्यार्थियों के वीज़ा पर रोक लगाने का सुझाव, जिसपर ट्रम्प प्रशासन काम भी कर रहा है।
अब अमेरिका को समझ में आ गया कि यदि उसे चीन की हेकड़ी को मिट्टी में मिलाना है, तो उसे चीन के जासूस नेटवर्क को ध्वस्त करना होगा, जिसकी शाखाएँ अमेरिका तक में फैली हुई हैं। जिस तरह से चीनी विद्यार्थियों के भेस में जासूस छुपे हुए हैं, उससे अमेरिका के शैक्षणिक व्यवस्था से लेकर बौद्धिक संपत्ति, रक्षा एवं अर्थव्यवस्था तक खतरे में है। ऐसे में अमेरिका के पास चीन के नेटवर्क के सम्पूर्ण विनाश के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, और जिस तरह से अमेरिका अभी काम कर रहा है, वो अमेरिकी सुरक्षा के लिए शुभ संकेत है।