चार महीनों से भी कम समय में अब अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं और लिबरल गैंग पूरे जोर शोर से इस बात का ढिंढोरा पीटने में लगी है कि ट्रम्प इस बार चुनावों में हारने वाले हैं। अलग-अलग opinion polls और ratings के हिसाब से लिबरल यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं। सबसे रोचक बात यह है कि लिबरल पक्ष ने कुछ इसी तरह का अभियान वर्ष 2016 में भी चलाया था, और इसका नतीजा क्या रहा था, ये सब को पता ही है।
लिबरलों का अभियान वही है, बस वर्ष 2016 में जहां Hilary Clinton थीं, तो आज उनकी जगह Joe Biden ने ले ली है। लिबरल मीडिया तो यह तक दावे करने लगी है कि Joe Biden के चुनाव जीतने के 80 प्रतिशत अनुमान है।
इसी तरह New York Times भी पीछे नहीं है। NYT के मुताबिक “6 बड़े राज्यों में ट्रम्प Biden से बुरी तरह पिछड़ रहे हैं”।
हम NYT को याद दिलाना चाहेंगे कि यही अखबार वर्ष 2016 में Hilary Clinton की जीते के 85 प्रतिशत अनुमान जता रहा था, और हुआ क्या?
और सिर्फ NYT ही नहीं, CNN, NBC, ABC और अन्य लिबरल मीडिया चुनावों से पहले ही हिलरी क्लिंटन को विजयी घोषित कर चुकी थी। चार साल हो गए हैं। इन अखबारों और TV चैनलों का वही रवैया है। आज इन्हें Joe Biden में अपने लिए आशा की किरण दिखाई दे रही है।
CNN के मुताबिक “Biden का रिकॉर्ड अब तक का सबसे बेहतर है”। ABC के मुताबिक “Biden आगे निकले, ट्रम्प से लोग नाखुश”, इंका अभियान वर्ष 2016 वाला ही है।
जैसा भारत में होता है ना, जहां चुनावों से पहले The Wire जैसे पोर्टल वो कारण गिनाते हैं जिसकी वजह से हर चुनाव में BJP हारने वाली होती है, और जैसे ही BJP चुनाव जीतती है, वैसे ही वही लोग कारण बताते हैं कि आखिर BJP को किन कारणों से जीत मिली! अमेरिका की लिबरल मीडिया भी बिलकुल इसी फॉर्मेट पर चलती है।
इसी प्रकार वर्ष 2016 से पहले लिबरल मीडिया हिलरी पर ही दांव लगा रही थी, लेकिन जब चुनावी नतीजे घोषित हुए, तो लिबरलों के होश उड़ गए। लेफ्ट ब्रिगेड के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था। बस फिर क्या था, ट्रम्प के चुनाव जीतने के बाद यही लोग सड़कों पर निकल पड़े और उनकी जीत को झूठा बताने का प्रयास करने लगे। ट्रम्प भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा बनते हुए चुनाव जीते थे, जिस प्रक्रिया के तहत ओबामा 8 साल अमेरिका के राष्ट्रपति रहे थे। उसके बाद लिबरलों से ऐसी कहानियाँ बनाई कि रूस की सहायता से अमेरिका में ट्रम्प की सरकार बनी है।
ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में वो कर दिखाया है, जो उन्होंने वर्ष 2016 में वादा किया था। ऊर्जा, व्यापार के मामले में उनकी नीतियाँ अमेरिका के हित में रही हैं। वे “अमेरिका पहले” की नीति को आगे लेकर बढ़े थे, जिसके बाद उन्होंने चीन की अमेरिका विरोधी नीतियों को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए। अमेरिका-चीन की ट्रेड वॉर उसी का परिणाम था।
यही कारण था कि कोरोना से पहले ट्रम्प की राजनीतिक स्थिति बेहद मजबूत थी। अर्थव्यवस्था उछाल पर थी और उनका दोबारा राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा था। इस साल की शुरुआत में Trump की अप्रूवल रेटिंग 49 प्रतिशत पर थी, जो कि उनकी आज तक की सबसे ज़्यादा अप्रूवल रेटिंग्स थी। हालांकि, जैसे-जैसे अमेरिका में कोरोना का कहर बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनकी अप्रूवल रेटिंग भी 38 प्रतिशत पर आ गई। कोरोना के बाद अमेरिका के लोग ट्रम्प के खिलाफ हो गए थे, और उन्हें सत्ता से हटाने का मन बना चुके थे। हालांकि, बाद में लिबरलों द्वारा आयोजित George Floyd दंगों के बाद दोबारा Trump के पक्ष में हवा बनती गयी।
ट्रम्प की विदेश नीति कमाल की रही है। जो लड़ाई उन्होंने चीन के खिलाफ अकेले शुरू की थी, आज उस लड़ाई में भारत, UK, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश भी अमेरिका का साथ दे रहे हैं। अमेरिका को उन्होंने “दोबारा महान” बनाने का वादा किया था, जहां तक चीन को बर्बाद करने की दिशा में कदम उठाने की बात है, ट्रम्प ने अपना यह वादा भी पूरा किया है, क्योंकि आज चीन की हालत ऐसी कर दी गयी है कि अमेरिका के मुक़ाबले में कोई दूसरा देश दिखाई ही नहीं देता।
अमेरिका का वामपंथी गुट अंधा है, या कहिए आँखों पर पट्टी बांधकर बैठा है। उन्हें सच्चाई से नहीं, अपने एजेंडे से मतलब है। जब वर्ष 2020 के चुनावों के नतीजे आएंगे, तो दोबारा इन लिबरलों के होश उड़ेंगे। क्या पता इस बार ये लिबरल भारत पर अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने का आरोप लगा दें। खैर इतना तय है है कि अमेरिका दोबारा इन चुनावों में हारने जा रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे वे वर्ष 2016 में हारे थे।