कोरोना के बाद वैश्विक स्तर पर होने वाले बदलाव में भारत की भूमिका अहम रहने वाली है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन का वर्चस्व था। इन्हीं क्षेत्रो में से एक WHO भी है जहां एक बड़े बदलाव की आवश्यकता है जिससे ताइवान जैसे देश शामिल हो सके। ताइवान भी इसी उम्मीद में बैठा है कि भारत उसे WHO की सदस्यता दिलाने में मदद करेगा, जिससे वह और बड़े स्तर पर अन्य देशों की मदद कर पाएगा। ताइवान के कार्यकारी Ambassador Jack CH Chen ने कहा है कि भारत Taiwan को WHO की सदस्यता दिलाने और भागीदारी में मदद करेगा।
दरअसल, Ambassador Jack CH Chen ने Wion से इंटरव्यू के दौरान यह बातें कही। उन्होंने ताइवान की WHO में भागीदारी की उम्मीद जताते हुए कहा कि, “हमें उम्मीद है कि WHO के कार्यकारी बोर्ड के नए अध्यक्ष के रूप में भारत यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि WHO सचिवालय Taiwan की भागीदारी से संबंधित मुद्दों पर विचार करते समय एक पेशेवर, तटस्थ रुख बनाए रखे।” यानि अपनी अध्यक्षता में भारत चीन के प्रभाव को समाप्त कर Taiwan की भागीदारी के लिए WHO सचिवालय को दबाव मुक्त बनाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि,“भारत Taiwan के उन क्षेत्रों में भी भागीदारी को सुनिश्चित करने में मदद करेगा जिससे विश्व स्वास्थ्य सभा में Taiwan को पर्यवेक्षक का दर्जा मिले और सभी WHO बैठकों, तंत्रों और गतिविधियों में ताइवान को शामिल किया जा सके। इससे ताइवान और दुनिया भर में लोगों का स्वास्थ्य और कल्याण भी सुनिश्चित होगा।” भारत जिस तरह से Taiwan के साथ रिश्तों को बढ़ा रहा है उससे भारत की WHO में ताइवान की मदद की उम्मीदें बढ़ी हुई है।
बता दें कि चीन द्वारा शुरू से ही Taiwan को दबाया जाता रहा है। चीन यह कहता रहा है कि अगर Taiwan स्वयं को कभी भी औपचारिक रूप से स्वतंत्र घोषित करता है तो वह उस पर बल प्रयोग करेगा। बीजिंग हमेशा जोर देकर कहता है कि यह द्वीप उसके क्षेत्र का हिस्सा है, और अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों पर अपनी ‘वन चाइना’ नीति का पालन करने के लिए दबाव डालता है।
WHO में भी चीन इस देश को सदस्य के तौर पर शामिल करने का विरोध करता रहा है। कोरोना के समय में भी पहले तो WHO ने चीन के दबाव में आ कर ताइवान द्वारा कोरोना वायरस जैसे नए वायरस के बारे में दिसंबर 2019 में दी गई रिपोर्ट को नजरअंदाज किया जिससे इस वायरस ने महामारी का रूप लिया। इसके बाद 18 मई को कोरोना के मुद्दे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का 73वां सम्मेलन बुलाया गया था, लेकिन Taiwan की लाख कोशिशों के बावजूद उसे इस बैठक में हिस्सा लेने का न्यौता नहीं दिया गया। यह सब चीन की ही करतूत थी। Taiwan के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने इस पर दुख जताते हुए कहा था कि दुनिया एक बार फिर चीन के दबाव में झुक गयी है।
परंतु अब भारत की मदद से ताइवान WHO में अपनी भागीदारी तय कर सकता है। भारत का यह कदम उसके और Taiwan के बीच बढ़ते रिश्तों को एक नया आयाम देगा। चीन Taiwan को लेकर शुरू से ही बेहद संवेदनशील रहा है। इसी को लेकर वर्ष 1954 में भारत और चीन के बीच जो पंचशील समझौता हुआ था, तो उसमें इस बात पर दोनों देशों ने सहमति जताई थी कि वे एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी नहीं करेंगे। परंतु अब भारत ने One China Policy को कूड़े में फेंक ताइवान के साथ दोस्ती कर ली है। भारत सरकार ने चीनी कंपनीयों द्वारा FPI निवेश को लेकर बनाए जा रहे नए कानूनों के दायरे से Taiwan को बाहर रखने का फैसला लिया था। यही नहीं ताइवान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भारत की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो सांसदों ने भी हिस्सा लिया था। ताइवान के साथ बढ़ते रिश्तों से यह संभव है कि ताइवान को सभी वैश्विक मंचों पर एक साथी मिल जाएगा जिससे वह अपनी आवाज बुलंद कर सकेगा।