भारत चीन बॉर्डर पर अब बेशक शांति हो गयी हो, लेकिन चीन की चालबाजी का जवाब देने के लिए भारत को दुनियाभर से समर्थन मिलने का दौर अब भी जारी है। हाल ही में फ्रांस की रक्षा मंत्री ने भारत के रक्षा मंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि फ्रांस की सेना भारत को अपना समर्थन देने के लिए तैयार है। अब उसके बाद अमेरिका की ओर से भी बड़ा संकेत मिला है कि अगर भविष्य में भारत-चीन के बीच कोई जंग होती है तो अमेरिका हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठेगा, बल्कि वह भारत का साथ देगा। इसके बाद यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि युद्ध की स्थिति में अमेरिका चीन के खिलाफ भारत के साथ लड़ने के लिए अपने सैनिक भी भेज सकता है। अमेरिका के अधिकारी का यह ऐलान अपने-आप में चीन के होश उड़ाने के लिए काफी है।
दरअसल, सोमवार को व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ मार्क मेडोस ने कहा कि “हमारा संदेश बिल्कुल साफ है। ऐसा नहीं होगा कि सर्वाधिक शक्तिशाली सेना होने के बावजूद हम दूर खड़े होकर हालात को चीन या किसी के हाथ में जाने दें। चाहे वो जिस क्षेत्र में हो। इसलिए यह साफ होना चाहिए कि हमारी सेना सबसे ताकतवर है और रहेगी”। आगे उन्होंने भारत के पक्ष में बड़ा बयान देते हुए कहा “भारत के साथ कहीं भी विवाद की स्थिति में हम मजबूती से खड़े रहेंगे। दक्षिणी चीन सागर में अपनी उपस्थिति और मजबूत करने के लिए ही अमेरिका ने वहां दो विमान वाहक पोत तैनात किए हैं”।
यानि अमेरिका की ओर से संदेश साफ है कि अगर चीन ने भारत पर जंग थोपने की कोशिश की, तो अमेरिका की ओर से भी उसे युद्ध का भरपूर मज़ा चखाया जाएगा। वो ऐसा मज़ा होगा जिसे चीन की आने वाली पीढ़ी भी कभी नहीं भूलेंगी। राष्ट्रपति ट्रम्प के शासन के दौरान भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी कभी बढ़ी है, जिसका नतीजा यह है कि रक्षा मामलों पर अब दोनों देश एक दूसरे का खुलकर साथ दे रहे हैं।
बता दें कि भारत और अमेरिका मिलकर योजनबद्ध तरीके से चीन का बड़ा टेक बाज़ार बर्बाद करने में लगे हैं। एक तरफ अमेरिका जहां हुवावे और ZTE को बर्बाद करने के लिए कदम उठा चुका है, तो वहीं भारत देश में 59 चीनी एप्स को ब्लॉक कर चीनी उद्योगपतियों की जेब पर कैंची चला चुका है। जब अमेरिका ने अपने यहाँ से सेमीकंडक्टर (चिप) के एक्सपोर्ट पर बैन लगाया था तो हुवावे ने एक बयान में कहा “अब इस कंपनी के अस्तित्व पर संकट आन खड़ा हुआ है”। इसके अलावा हुवावे के अध्यक्ष ने कहा था कि अब अपना अस्तित्व बचाए रखना ही हुवावे की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
जब भारत ने चीनी एप्स को बैन किया तो अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भारत की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था “हम भारत के फैसले का स्वागत करते हैं। ये ऐप्स चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के जासूसी करने वाले देश चीन का पिछलग्गू बनकर काम कर रही थीं”।
भारत को समर्थन के रूप में अमेरिका द्वारा यह दूसरा सबसे बड़ा कदम है। इससे पहले अमेरिका के विदेश मंत्री ने ही यह बयान दिया था कि वह अपने साथियों की रक्षा के लिए और चीन का मजबूती से मुक़ाबला करने के लिए एशिया और इंडो-पेसिफिक में अपने सैनिकों की संख्या को बढ़ाएगा। बता दें कि अमेरिकी नेवी के दो बड़े युद्धपोत और एयरक्राफ्ट कैरियर पहले ही दक्षिण चीनी सागर में तैनात हैं। ऐसे में अब जब अमेरिका के उच्च अधिकारी ने युद्ध के दौरान भारत का समर्थन की बात कही है तो यहाँ चीन के लिए बड़े खतरे की घंटी बज चुकी है। शायद यही एक कारण हो सकता है कि चीन ने अपनी भलाई सोचते हुए पहले ही बॉर्डर पर से अपने सैनिकों को पीछे बुलाने का फैसला ले लिया है।