दिल्ली, महाराष्ट्र में माहमारी पर मीडिया में हाय-तौबा, बिहार के बिगड़ते हालात पर चुप्पी क्यों?

आखिर नीतीश कुमार के नाम पर मीडिया हाउस को सांप क्यों सूंघ जाता है ?

नीतीश कुमार

PC: Patrika

कोरोनावायरस महामारी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेहद लचर और घटिया कार्यशैली को उजागर कर दिया है। नीतीश कुमार ने बिहार की जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है।  देश में कुल मामलों के एक मिलियन तक पहुंच गए हैं और बिहार लगातार देश के अगले सबसे बड़े हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कोरोनावायरस संक्रमण के लिए सकारात्मकता दर 5.7 प्रतिशत है जोकि राष्ट्रीय औसत 7.6 प्रतिशत से कम है। परन्तु अगर टेस्टिंग रेट को राज्य में बढ़ाया गया तो ये संख्या और अधिक होगी।

बिहार के बिगड़ते हालात पर मीडिया की चुप्पी हैरान कर देने वाली है। जो मीडिया हाउस नॉएडा में कोरोनावायरस की तैयारी को लेकर आये दिन शोर मचाती है, उसे बिहार के नीतीश कुमार की लापरवाही नजर नहीं आ रही। मुख्यधारा की मीडिया को ये समझना चाहिए कि केवल दिल्ली और महाराष्ट्र में बढ़ रहे कोरोनावायरस के मामले को रिपोर्ट करने से देश को इस लड़ाई को जीतने में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि इस महामारी से पूरा देश ग्रसित है और बिहार स्वास्थ्य व्यवस्था और महामारी से निपटने में सबसे खराब प्रदर्शन कर रहा है।

बिहार में तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस के चलते बिहार में एक बार फिर से 31 जुलाई तक पूर्ण लॉकडाउन लगाना पड़ा है। पटना के आसपास के 14 जिलों में सकारात्मकता दर पिछले दो हफ्तों में 4 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। राज्य की राजधानी में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) में कोरोनावायरस की टेस्टिंग कर रहे डॉक्टर एसके शाही ने इसपर कहा कि,  ‘बिहार हालात चिंताजनक है’।

“क्यों करें विचार जब ठीके तो हैं नीतीश कुमार”, वास्तव में सही नारा चुनाव के दौरान दिया गया था क्योंकि कोरोनावायरस महामारी के बीच ये साबित भी हो रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न मीडिया को कोई अपडेट देते हैं और न ही राज्य में हालात को सुधारने के लिए किसी रणनीति का उल्लेख करते हैं। इसके विपरीत राज्य को उसके हालात पर छोड़कर वप मुख्यमंत्री आवास पर आराम फरमा रहे हैं।

यदि लालू के शासनकाल गुंडा राज था तो सुशासन बाबू का शासनकाल वीवीआईपी कल्चर की मानसिकता से ग्रसित है।

जहां राज्य पीड़ित है वहीं, वैश्विक महामारी के बीच नीतीश कुमार लगातार वीआईपी संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार जब नीतीश कुमार की भतीजी भी कोरोना संक्रमित पायी गयी तो बिहार के मुख्यमंत्री ने पटना शहर के पश्चिम में स्थित है 1 एनी मार्ग में स्थित अपने आधिकारिक निवास स्‍थान के पास एक आधुनिक कोविड 19 अस्पताल को बनवा दिया। यहां 6 डॉक्टरों और 3 नर्सों की एक टीम को तीन शिफ्ट में इस अस्पताल में प्रतिनियुक्त किया गया।

राज्य के प्रति बिहार सरकार की उदासीनता सोशल मीडिया पर कई वीडियो के जरिये भी सामने आयी है। मायागंज अस्पताल में भर्ती अभिषेक मंडल और उसके पिता का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें दोनों ने अपनी दशा के बारे में बताया है कि कैसे अभिषेक के पिता को भर्ती करने के बाद भी न ठीक से कोई देखने वाला है और न ही कोई सुविधा। बेटा अस्पताल के अधिकारीयों के चक्कर लगा रहा है पर कोई सुनने वाला नहीं है।

ऐसे ही एक और चौंकाने वाले वीडियो सामने आया जो COVID  टेस्टिंग सेंटर से सम्बंधित था जहां केवल 50 व्यक्तियों का ही टेस्ट किया जा रहा है वो भी इसलिए क्योंकि पार्टी हाई कमान से उनका कनेक्शन है।

लालू यादव के गुंडा राज से लेकर सुशासन बाबू के राज के हालातों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। नीतीश कुमार को न मजदूरों की चिंता थी और न ही अन्य राज्यों में फंसे अपने लोगों की।

जब मजदूरों ने अनुरोध किया तब भी नीतीश कुमार ने उनके अनुरोध को अनदेखा कर सीधे न वापस बुलाने की बात कही थी। यहां तक कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विपरीत Nitish Kumar ने किसी बस या रहने की कोई व्यवस्था मजदूरों के लिए नहीं की थी। मीडिया ने भी इस गंभीर मुद्दे पर न कोई आक्रोश जताया और न ही ‘सुशासन बाबू’ से कोई सवाल पूछे और न ही उनकी कोई जवाबदेही तय की।

अभी हाल ही में जब सत्तरघाट ब्रिज से 2 किलोमीटर दूर छोटे ब्रिज का अप्रोच केवल पानी के तेज बहाव से कट गया तो भी मीडिया ने इसपर नीतीश कुमार की लापरवाही और उनके गैर जिम्मेदाराना व्यवहार पर कोई प्रकाश न डालना ही उचित समझा। यहां भी मीडिया ने Nitish Kumar की बजाय ब्रिज को बनाने वाले इंजीनियर और कामगारों पर सवाल उठाये

इतना कुछ होने का बावजूद भाजपा बेशर्मी से सुस्त शासन वाले Nitish Kumar के साथ खड़ी जो बेहद शर्मनाक है। अब बीजेपी को नीतीश कुमार का दामन छोड़कर खुद खुलकर मैदान में उतरना चाहिए परन्तु बीजेपी ने भी मौन धारण कर रखा है। हालांकि, मीडिया की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है कि आखिर वो नीतीश कुमार के राज्य की लचर और सुस्त व्यवस्था के खिलाफ कुछ खुलकर क्यों नहीं कहती? आखिर ये चुप्पी किस बात की है।

 

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