पाकिस्तान में एक समस्या हमेशा रही है कि वह अपनी विदेश नीति का निर्धारण करते समय अपनी क्षमताओं का सही आंकलन नहीं कर पाता। यही कारण है कि, आज यह देश चीन के चंगुल में ऐसा फंसा है, कि उसके अस्तित्व पर ही संकट बन गया है। चीन एक ऐसा देश है, जो किसी भी धर्म/पंथ का विरोधी है। तो पाकिस्तान का इस्लामिक एजेंडे के प्रति लगाव और साथ ही साथ चीन जैसे पंथ-विरोधी देश के प्रति प्रेम का दोहरा खेल, इसकी बर्बादी का कारण बन सकता है।
यदि पाकिस्तान की क्षमताओं की बात करें तो उसकी आर्थिक हालत इतनी खराब है कि, वह भारत का किसी भी मामले में मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन भारत के साथ प्रतिद्वंदिता के चक्कर में उसने अपनी मुसीबतें और बढ़ा ली हैं। यह जग जाहिर है कि, पाकिस्तान अपने इस्लामिक एजेंडे के तहत कश्मीर को अपना हिस्सा बनाना चाहता है। भारत द्वारा आर्टिकल 370 और 35 A के हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान ने मुस्लिम जगत में अपने लिए मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर ही समर्थन मांगा था। लेकिन उसकी तमाम कोशिशों पर मुस्लिम जगत की दो सबसे बड़ी शक्तियों, UAE और सऊदी अरब ने ही पानी फेर दिया। नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान ने उनसे भी सम्बन्ध ख़राब कर लिए।
पाकिस्तान के लिए इस समय सबसे आवश्यक है कि उसे आसान शर्तों पर लोन मिले जिससे वह अपनी डूबती हुई अर्थव्यवस्था को बचा सके। यह उसे सऊदी अरब और UAE ही उपलब्ध करवा सकते थे। इसके पहले भी सऊदी और ने आसान शर्तों पर लोन देकर कई बार पाकिस्तान की मदद की थी। लेकिन पाकिस्तान ने अपनी मूर्खता के कारण तुर्की से सम्बन्ध बढ़ा लिए, जो इन दोनों अरब देशों का सबसे बड़ा विरोधी है।
नतीजा यह हुआ कि, सऊदी ने पाकिस्तान को दिया कर्ज़ तो वापस माँगा ही, साथी वहां से मिलने वाले तेल के आयात से भी पाकिस्तान को हाथ धोना पड़ा। अरब देशों की तरह तुर्की कोई बड़ी आर्थिक शक्ति नहीं है, ऐसे में जब पाकिस्तान पर लोन वापस करने के लिए सऊदी का दबाव बढ़ा तो उसे चीन की मदद लेनी पड़ी।
इसके बाद और भी साफ़ हो गया है कि पहले से ही चीन के कर्जे में डूबा पाकिस्तान अपनी घिसी-पिटी विदेश नीति के कारण चीन पर और बुरी तरह से निर्भर होने वाला है। पाकिस्तान का यह हाल तब है जब पहले ही चीन द्वारा प्रस्तावित CPEC योजना 87 बिलियन डॉलर की हो चुकी है। इस प्रोजेक्ट की कीमत के चलते यह पाकिस्तान के आर्थिक हितों को साधने के बजाए उसकी अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाने वाला है।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान की आतंरिक स्थिरता भी उसके चीन प्रेम के कारण खतरे में आ गई है। बलूचिस्तान और सिंध में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है जो CPEC के लिए खतरे की घंटी है। इसका नतीजा यह होगा कि जो गुस्सा पाकिस्तान में चीन के खिलाफ है, अब वही गुस्सा उनके अंदर अपनी सरकार के लिए हो जाएगा।
चीन जो उइगर मुसलमानों पर अत्याचार करता है वह पाकिस्तान में स्थित अपनी आर्थिक इकाइयों में भी आम पाकिस्तानियों को उत्पीड़न का शिकार बनाता रहता है। हाल ही में खबर आयी थी कि एक पाकिस्तानी नागरिक को चीनियों ने नमाज पढ़ने के कारण पीट दिया था। इतना ही नहीं, चीनी आर्थिक इकाइयों में कार्यरत चीनी नागरिकों ने पाकिस्तान की सेना के लोगों के साथ मारपीट भी की थी। इतना सबकुछ होने के बावजूद पाकिस्तानी सरकार चीन के नागरिकों खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सकी। तो, इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वह चीन की सरकार के बढ़ते दबदबे को क्या ही रोक पाएगी।
एक ओर पाकिस्तान अपने इस्लामिक एजेंडे को लेकर चलता है और कश्मीरी मुसलमानों के अधिकारों की बात करता है तो वहीं दूसरी ओर अपने ही देश में चीनी नागरिकों द्वारा अपने ही नागरिकों पर उनके मुस्लिम होने के कारण होने वाले हमलों को रोक नहीं पाता। यह उसकी दोहरी नीति की असफलता और उसके कारण जन्मी मुसीबतों को दर्शाता है।
वास्तव में जो देश मुस्लिम जगत के सर्वमान्य नेता हैं उनसे इस्लामाबाद दूर होता जा रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री के बयान ने इस अलगाव को बिलकुल स्पष्ट कर दिया। पाक का सऊदी और UAE जैसे देशों से अलग होना और चीन के नजदीक जाना उसकी विदेश नीति की अब तक की सबसे बड़ी असफलता है। ऐसा लगता है कि धार्मिक एजेंडे पर चलने वाला पाकिस्तान जल्द ही चीन का एक इस्लाम-विरोधी उपनिवेश बन जाएगा।