टेक क्षेत्र पर प्रभुत्व के लिए जारी अमेरिका-चीन के बीच की लड़ाई अब अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। चीनी टेक कंपनियों को ट्रम्प प्रशासन की ओर से चेतावनी दी जा रही है। ट्रम्प ने TikTok पर से चीनी प्रभाव को खत्म करने के पहले ही पूरे इंतजाम कर लिए हैं। संभावित TikTok-Microsoft डील के बाद अब यह कंपनी चीनी कंपनी नहीं बल्कि अमेरिकी कंपनी कहलाएगी। ट्रम्प सरकार का संदेश साफ है- अमेरिका अपने आप को इन चीनी एप्स से सिर्फ बचाएगा ही नहीं, बल्कि अब इन एप्स द्वारा नियंत्रित बने-बनाए बड़े बाज़ार पर कब्जा भी करेगा।
ET के मुताबिक, राष्ट्रपति ट्रम्प ने TikTok को 45 दिनों का ultimatum दिया है। अगर TikTok इन 45 दिनों में अपने आप को अमेरिकी निवेशकों या अमेरिकी कंपनी के हवाले नहीं कर पाती है तो TikTok को प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, ट्रम्प ने यह भी कहा है कि इस डील से अमेरिकी सरकार को भी “अच्छा-खासा पैसा” मिलना चाहिए। ट्रम्प के मुताबिक Tiktok को सफलता अमेरिका की वजह से ही मिली है।
अमेरिका के इस फैसले से चीन और खासकर चीनी मीडिया बहुत गुस्से में है। Global Times के एडिटर Hu Xijin ने ट्विटर पर विलाप करते हुए लिखा “ये खुली चोरी है। दुनिया और भगवान यह देख रहे हैं कि कैसे राष्ट्रपति ट्रम्प अमेरिका को एक Rogue देश में बदल रहे हैं।”
This is an open robbery. The world is watching and God is watching that how President Trump is turning the once great America into a rogue country. pic.twitter.com/FaL3MkwsYe
— Hu Xijin 胡锡进 (@HuXijin_GT) August 4, 2020
Microsoft ने कहा है कि वह अमेरिका, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में TikTok के सभी operations को अपने अधिकार में लेगा और किसी भी अमेरिकी का data अमेरिका से बाहर नहीं जाने देंगे। विदित हो कि, ट्रम्प Tiktok को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर चुके हैं। ऐसे में अगर कोई अमेरिकी कंपनी TikTok को खरीद लेती है तो अमेरिकी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
हालांकि, अमेरिका-चीन की यह जंग सिर्फ TikTok तक ही सीमित नहीं है। अमेरिका में काम कर रही कई चीनी एप्स ट्रम्प सरकार के रडार पर हैं। अमेरिका में अलीबाबा, Tencent (Wechat) जैसी एप्स भी निशाने पर हैं। हाल ही में अमेरिकी सांसदों के एक ग्रुप ने अपनी सरकार से भारत की तर्ज पर चीनी एप्स प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया था। अमेरिकी कांग्रेस के 25 सदस्यों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लिखी एक चिट्ठी में कहा था “अब वक्त आ गया है कि अमेरिका को भी भारत जैसा सख्त फैसला लेना चाहिए और देश में टिकटॉक समेत चीनी कंपनियों के अन्य ऐप्स पर बैन लगा देना चाहिए। जून में भारत ने चीन के खिलाफ बड़ा कदम उठाया, राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर टिकटॉक जैसी कई मोबाइल ऐप पर बैन लगा दिया। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का एक ही मकसद है कि लोगों का डाटा इकट्ठा किया जाए और जानकारी जुटाई जाए, जिसके खिलाफ भारत सरकार ने फैसला लिया है। हालांकि, सिर्फ भारत के यूजर्स का data ही खतरे में नहीं है, बल्कि अमेरिका के यूजर्स भी इसी तरह के खतरे का सामना कर रहे हैं”।
हालांकि, राष्ट्रपति ट्रम्प अब इन एप्स के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहे हैं। एप्स के पास दो विकल्प हैं- या तो वे हुवावे की तरह ही देश से प्रतिबंधित हो जाएँ या फिर वे अपने आप को बचाने के लिए TikTok की तरह खुद को बेच दें। ऐसे में अब चीनी एप्स अपने आप को बेचना ही पसंद करेंगी। ऐसा लगता है कि अब ट्रम्प को चीनी कंपनियों को बर्बाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। बल्कि अब चीन के टेक बाज़ार पर कब्जा करने में उनकी ज़्यादा रूचि दिखाई दे रही है, जिसे चीनी मीडिया बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।
ट्रम्प और PM मोदी जैसे नेता चीन के प्रभावी टेक सेक्टर को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। चीनी एप्स को बैन कर जो रीत पीएम मोदी ने शुरू की थी, अमेरिका भी अब उसी रीत का पालन करता दिखाई दे रहा है। अमेरिका में इस साल चुनाव भी होने हैं, ऐसे में वे चीन के खिलाफ बड़े से बड़े कदम उठाकर अपनी जनता को लुभाना चाहते हैं। ट्रम्प ने इस माध्यम से दुनिया को यह भी संदेश दे दिया है कि टेक क्षेत्र का इकलौता शहंशाह सिर्फ अमेरिका ही रहने वाला है, कोई दूसरा देश नहीं।