कल तक भारत को अपने फैसलों पर अंजाम भुगतने की धमकी देने वाला चीन अब शांति की बात करने लगा है। भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले ड्रैगन ने कहा है कि, भारत के साथ विवादित सीमा पर शांति बनाए रखना और भारत के साथ रणनीतिक विश्वास को गहरा करना उसकी कूटनीतिक प्राथमिकताओं में से एक है। चीन की तरफ से यह बयान तब आया है जब RIC यानि, रूस, भारत और चीन के बीच नवंबर में बैठक होने की खबर है। स्पष्ट है कि, बीजिंग नहीं चाहता कि इस बैठक में वह बाकी दोनों देश के सामने आक्रामक हो कर जाए क्योंकि इससे उसे भारी नुकसान हो सकता है। शायद इसलिए अब वह शांतिदूतों की तरह बयान दे रहा है।
दरअसल, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, झाओ लिजियन ने, बीजिंग की कूटनीतिक प्राथमिकताओं के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में कहा कि, “चीन-भारत संबंध के लिए दोनों पक्षों को सीमा क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा को संयुक्त रूप से सुरक्षित रखना चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों का एक स्थिर और मजबूत आधार बनाए रखना चाहिए।“ चीनियों के रुख में आए इस बदलाव का कारण RIC समिट से जोड़कर देखा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि, इस बार इस समिट में उसके लिए परिदृश्य अलग होगा।
बता दें कि, भारत और चीन के साथ एक बार फिर से RIC की बैठक आयोजित करने की योजना, रूस में तैयार हो रही है। इस बैठक की, G-20 बैठक के दौरान होने की संभावना है जो इसी वर्ष नवंबर में सऊदी अरब में आयोजित होनी है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि, कोरोना के बाद से चीन का भारत और रूस दोनों देशों के साथ तनाव बढ़ा हुआ है और ऐसे समय में यह RIC की बैठक होने से चीन को घेरे जाने का डर है। चीनी सरकार इसी कारण अब एकदम से शांतिदूत की तरह बातें कर रही है।
अगर यह बैठक उम्मीद के अनुसार होती है, तो इस बार पिछली बैठक से माहौल बिल्कुल अलग होगा। कोरोना के बाद से ही पूरे विश्व में चीन के खिलाफ भावना भड़क चुकी है, तो वहीं भारत में गलवान घाटी में हमले के बाद ड्रैगन के खिलाफ गुस्सा सातवें आसमान पर है। तब से भारत ने चीन के खिलाफ कई कड़े एक्शन लिए हैं।
यही कारण है कि, इस बैठक में बीजिंग का पक्ष काफी कमजोर रहने की संभावना है। जहाँ एक तरफ लद्दाख में PLA की हरकतों से भारत आक्रोशित है, तो रूस भी चीन की विस्तारवादी नीति से खुश नहीं है। चीन भारत के साथ बॉर्डर विवाद को खत्म करने का इच्छुक नहीं है और भारत एक भी कदम पीछे नहीं हटने वाला है। शायद इसीलिए अब चीनी सरकार ने यह बयान दिया है कि, वह भारत के साथ बॉर्डर विवाद को द्विपक्षीय स्तर से सुलझाना चाहती है और भारत के साथ रिश्ते, उसके भविष्य की प्रथिमिकताओं में से है। चीन यह जनता है कि, भारत और रूस एक अच्छे साझीदार हैं और उसने इन दोनों के सामने थोड़ी सी भी आक्रामकता दिखाई तो उसे ही लेने के देने पड़ जाएंगे। ऐसी स्थिति में उसने शांति की बात करना ही उचित समझा है।
रूस भी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान है। Vladivostok मुद्दा, आर्टिक क्षेत्र में चीनियों का बढ़ता प्रभुत्व और मध्य एशिया के देशों, जैसे तजाकिस्तान पर बीजिंग की नजर से रूस आक्रोशित है। कुछ ही दिनों पहले रूस ने चीन पर जासूसी करने का आरोप लगाया था और अपने एक शोधकर्ता पर CCP को खुफिया जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया था। चीन आर्कटिक क्षेत्र में भी अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में है। इन्हीं कारणों से रूस भी उससे नाराज चल रहा है।
हालांकि, चीन के इस बयान के बावजूद दोनों देशों को उससे सावधान होना होगा क्योंकि, चीन “मुंह में राम बगल में छुरी” जैसी हरकतें हमेशा से करता आया है। मौका मिलते ही चीन पीठ में छुरा घोपने से पीछे नहीं हटता। एक तरफ चीन भारत को ये संदेश देने की कोशिश कर रहा कि, वह दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना चाहता लेकिन दूसरी तरफ लद्दाख में अपने कदम पीछे नहीं हटा रहा। RIC की बैठक से पूर्व, इस तरह के बयान बेशक ही रूस और भारत को लुभाने और सम्बन्धों में मिठास लाने के लिए हैं। लेकिन इन दोनों देशों को चीन की इस लल्लो-चप्पो से सावधान रहना होगा और अपनी आक्रामकता से पीछे नहीं हटना होगा।