चंद्रिका राय- बिहार के लोकप्रिय यादव नेता और लालू के समधी,अब लालू को देंगे पटखनी

भोजपुरी क्षेत्र में लालू को अपनों से ही चुनौती मिलने वाली है

चंद्रिका राय

इस बार के बिहार चुनाव में एक बात तो स्पष्ट है – लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के लिए ये चुनाव कहीं से भी सरल नहीं है। काँग्रेस को छोड़कर सभी पार्टियां उसका दामन छोड़ चुकी है, असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर रावण जैसे लोग अब उन्हें खुलेआम चुनौती दे रहे हैं, और तो और अब उनके खुद के समधी भी उनके विरुद्ध मैदान में उतर आए हैं। हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल को एक तगड़ा झटका देते हुए चंद्रिका राय सत्ताधारी जद [यू] में आ गए हैं।

परंतु ये चंद्रिका राय कौन है, और इनके आरजेडी छोड़ने से लालू यादव को किस प्रकार का नुकसान होने वाला है? चंद्रिका राय एक प्रभावशाली नेता रहे हैं, जिनके पिता दारोगा प्रसाद राय एक समय बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। अब गुरुवार को वे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने अपने दामाद तेज प्रताप यादव तथा समधी लालू यादव पर आक्रामक होते हुए बोला, “दोनों भाई (तेजस्वी, तेजप्रताप) बिहार में सरकार बनाने का दावा करते हैं, लेकिन वे अब तक सेफ सीट खोज रहे हैं। बिहार में उनके लिए कोई भी सीट सुरक्षित नहीं रहेगी। राजद अब गरीबों की पार्टी नहीं रही। आज राजद पैसे वालों की पार्टी हो गई है। व्यावसायिक पार्टी बनकर रह गई है। पैसे लेकर टिकट बेचे जा रहे हैं। कार्यकर्ताओं की कोई पूछ नहीं है।’’

वैसे चंद्रिका राय अपने मत में गलत भी नहीं हैं, क्योंकि पुत्रमोह के कारण ही पिछले वर्ष लालू प्रसाद यादव को लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी। पहली बार ऐसा हुआ था कि आरजेडी बिहार लोकसभा चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई। इसके पीछे का प्रमुख कारण बताते हुए चंद्रिका राय ने कहा, “लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद के बड़े बेटे ने घूम-घूम कर दल के प्रत्याशियों को हराया। मेरा भी खुला विरोध किया। मैंने शिकायत भी की, लेकिन लालू जी या उनकी पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की। खेत खाय गदहा और मार खाय कोई और। सजा गदहा को न मिलनी चाहिए।’’

अब सेफ सीट की बात चंद्रिका राय ने यूं ही नहीं कही है। बिहार राज्य में जो भोजपुरी बहुल [अर्थात भोजपुरी बोलने वाले] क्षेत्र हैं, वहाँ अक्सर यादव समुदाय के वोट बहुत मायने रखते हैं, क्योंकि जिस पार्टी के लिए उन्होंने अपना मत डाला, सरकार उसी की बनती है। चंद्रिका राय इस क्षेत्र में एक लोकप्रिय नेता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चंद्रिका राय को दरकिनार कर लालू यादव ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है, क्योंकि चंद्रिका राय का जेडीयू में शामिल होना, माने भारी मात्रा में यादव समुदाय के वोट जेडीयू के पाले में जाना और यादव समुदाय को पारंपरिक रूप से आरजेडी का आधारशिला माना जाता है।

इस बीच यह खबर भी आई कि चंद्रिका राय की बेटी ऐश्‍वर्या राय अपने पति तेज प्रताप यादव या देवर तेजस्‍वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ सकतीं हैं। इसपर भड़कते हुए तेज प्रताप यादव ने चंद्रिका राय और उनके परिवार का उपहास उड़ाते हुए कहा, “चंद्रिका राय की सामने खड़े होने की औकात नहीं और चले हैं मुकाबला करने। नारी का सम्मान करने के कारण  हम [ऐश्वर्या के लिए]चुप हैं। जिसे मुकाबला करना हो आए और करे। तेज प्रताप डरने वाला नहीं। हम तो चंद्रिका राय को जानते तक नहीं। हिम्मत है तो चंद्रिका राय आकर मेरे गेट पर मुकाबला करें, जनता चंद्रिका राय को नहीं लालू यादव को चाहती है।’’

सच कहें तो यादव परिवार के इसी स्वभाव के कारण अब राजद के विश्वसनीय नेता भी उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं, और चंद्रिका राय पहले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने आरजेडी का साथ छोड़ा है। कुछ ही महीनों पहले बिहार के कद्दावर नेता और RJD के उपाध्यक्ष तथा लालू यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने RJD के उपाध्यक्ष पद  से इस्तीफा दे दिया है। ये वही रघुवंश प्रसाद हैं,जिन्होंने लालू के साथ मिलकर आज RJD जो कुछ भी है, उसे खड़ा किया है। मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि रघुवंश प्रसाद पूर्व सांसद रामा सिंह को RJD में शामिल किए जाने के कारण नाराज हुए हैं। इसके अलावा वे इस बात से भी काफी नाराज़ थे कि जिस पार्टी के लिए उन्होने अपना सर्वस्व अर्पण किया, उसे अब लालू यादव ने अपने अकर्मण्य पुत्रों को सौंप दिया।

अब रघुवंश प्रसाद सिंह के बाद जिस तरह से चंद्रिका राय ने पार्टी छोड़ी है, उससे एक बात तो साफ है कि आरजेडी की हालत भी वही होने वाली है, जो 2016 में असम राज्य में काँग्रेस की और 2017 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की हुई थी। दोनों मामलों में पुत्रमोह के कारण योग्यता की बलि चढ़ाई गई थी, जिसके कारण दोनों पार्टियां बुरे तरीके से हारी, और अब यही हाल बिहार में आरजेडी का होने वाला है।

 

 

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