चीन और पाकिस्तान का भाईचारा अब गंभीर खतरे में है और कारण है बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA)। एक तरफ चीन पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है कि वह बीएलए के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र ले जाए और उसे सुरक्षा परिषद में एक वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करवाए। वहीं, पाकिस्तान डर रहा है कि अगर बलूचिस्तान का मामला अंतराष्ट्रीय स्तर पर गया तो पाकिस्तान के काले कारनामों की पोल भी खुल जाएगी।
दरअसल, साल 2011 में बना BLA बलूच लोगों का एक संगठन है जो बलूचिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है। BLA को पाकिस्तान, ब्रिटेन और अमेरिका में पहले ही आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है। फिर भी पाकिस्तान इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से घबरा रहा है। उसे इस बात का डर है कि इस मुद्दे को UN में ले जाने से इसका अंतर्राष्ट्रीयकरण होना तय है और अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान में किए जा रहे मानवाधिकारों के हनन का मामला भी सबके सामने आ जाएगा। इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि इस मामले को आतंरिक रूप से ही संभाला जाए। लेकिन चीन Balochistan Liberation Army के लगातार हमलों से चिढ़ा हुआ है और चाहता है कि पाकिस्तान जल्द से जल्द इस संगठन पर कार्रवाई करे।
चीन को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी से चिढ़ है, क्योंकि वह चीन के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट CPEC को लगातार निशाना बना रहे हैं। बीजिंग ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में 62 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जो चीन के कब्जे वाले शिनजियांग को पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जोड़ता है। यह एक रणनीतिक निवेश है जिससे वह हिन्द महासागर पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। चीन ग्वादर बन्दरगाह के जरिये अपना नौसैनिक बेस तैयार करना चाहता है ताकि अरब सागर और हिन्द महासागर में भी उसका वर्चस्व स्थापित हो सके। यह बन्दरगाह चीन को पश्चिमी एशिया और अफ्रीकी देशों के साथ आसानी से जोड़ देगा।
परंतु, पिछले कुछ समय से बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी ने पाकिस्तान के साथ-साथ चीन और चीनी नागरिकों को भी निशाना बनान शुरू कर दिया है। BLA की मजीद ब्रिगेड ने विशेष रूप से चीनी नागरिकों और चीनी-वित्त पोषित परियोजनाओं पर हमला किया है।
इसकी शुरुआत नवम्बर 2018 में ही हो गई थी जब बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने कराची में चीनी दूतावास पर हमला किया था। उस वक्त बीएलए ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि वो बलूच जमीन पर चीनी सेना के विस्तारवादी प्रयासों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। निस्संदेह ही CPEC का सबसे अहम भाग ग्वादर बंदरगाह है और बलोच समुदाय के लोगों का मानना है कि चीन उनके प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करता है जिससे वो आने वाले समय में प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों की प्रचुरता वाली अपनी जमीन खो देंगे। यदि ऐसा जारी रहा तो वो दिन भी दूर नहीं होगा जब बाहरी लोगों के कारण उनकी अपनी पहचान पूरी तरह से दब जाएगी।
अब ऐसा लग रहा है कि BLA के लगातार हमलों से चीन तंग आ चुका है और इसलिए अब अपने ‘all weather allies’ पाकिस्तान को BLA के खिलाफ एक्शन लेने की बात कर रहा है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के महासचिव शी जिनपिंग की इमरान खान को धमकी का अर्थ स्पष्ट है- या तो पाकिस्तान BLA को एक आतंकी संगठन घोषित करे या चीन द्वारा हो रहे निवेश में कटौती के लिए तैयार रहे। इससे अब पाकिस्तान दुविधा में पड़ा हुआ है क्योंकि अगर वह BLA के मामले को संयुक्त राष्ट्र में लाता है तो इससे पूरे विश्व का ध्यान बलूच विद्रोहियों पर आकर्षित होगा। अगर वह BLA के मुद्दे को टालने की कोशिश करता है तो चीन जैसे साथी की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा जो कर्ज में डूबे पाकिस्तान के लिए एक बहुत बुरी खबर होगी। यही नहीं, इससे भी बदतर स्थिति तब हो सकती है, जब चीन पाकिस्तान को अपने ऋण जाल में फंसा कर उसकी जमीन हड़प लेगा। CPEC की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और अंत में चीन इस्लामाबाद को इतना कर्ज दे देगा कि पाकिस्तान के पास अपनी जमीन देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।
इसके साथ ही अगर BLA पाकिस्तान में चीन पर हमला करता रहा तो है, तो यह पूरी संभावना है कि शी जिनपिंग बीएलए से निपटने के लिए पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान प्रांतों को ही अपने हाथों लेने की कोशिश करेंगे और जमीन हड़प लेंगे। चीन पहले ही दिखा चुका है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए बलूचिस्तान में exclusive colonies स्थापित कर सकता है।
पाकिस्तान अभी भी एक संप्रभु देश है, लेकिन बीएलए की बढ़ती ताकत और चीन की दबाव रणनीति अंततः इस्लामाबाद के अपने क्षेत्र पर नियंत्रण को कमजोर करने वाली है। इस टकराव की स्थिति में या तो बलूचिस्तान एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा या फिर पाकिस्तान चीन का उपनिवेश बन जाएगा।