“आ गया बकरा हलाल होने”, यूरोप में समर्थन जुटाने गए चीनी विदेश मंत्री की जबरदस्त धुनाई कर दी गयी

ओहो! ये तो Syllabus में था ही नहीं!

चीनी विदेश मंत्री

विश्व में कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग पड़ रहे चीनी विदेश मंत्री यांग ली आजकल यूरोप की यात्रा पर हैं। वे इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे के अलावा फ्रांस और जर्मनी की यात्रा करेंगे। उनका उद्देश्य है, चीन के लिए अधिक से अधिक समर्थन जुटाना और इस काम के लिए उनके पास यूरोपीय देशों से बेहतर कोई और विकल्प नहीं था। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी यात्रा सफलता के साथ शुरू होगी लेकिन हुआ इसका बिलकुल उलट।

चीनी विदेश मंत्री ने अपनी यात्रा की शुरुआत  इटली से की जो पश्चिमी यूरोप का एकमात्र देश है जिसने चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को स्वीकार किया है। किंतु यांग ली की आशाओं के विपरीत आर्थिक मुद्दों पर सहयोग की बात के साथ-साथ इटली ने उइगर मुसलमानों और हांगकांग में लागू हुए नए सुरक्षा कानून का मुद्दा भी उठाया और चीनी विदेश मंत्री के लिए एक असहज स्थिति पैदा कर दी।

इतना ही नहीं, हांगकांग से निष्कासित मानवाधिकार कार्यकर्ता और लोकतंत्र समर्थक  नाथन लॉ ने इटली के विदेश मंत्री से अनुरोध किया कि वे अपने चीनी समकक्ष के सामने इस मुद्दे को उठाएं। बता दें कि हांगकांग एक समय  ब्रिटिश उपनिवेश था इसीलिए यूरोप के साथ उसके पारंपरिक संबंध रहे हैं।

इटली के विदेश मंत्री ने भी बयान देते हुए कहा, “रोम हांगकांग की परिस्थिति का गंभीरता से अवलोकन कर रहा है।” साथ ही उन्होंने नया सुरक्षा कानून पारित होने के बाद हांगकांग में  मूलभूत स्वतंत्रता एवं अधिकारों को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। इसके बाद चीनी विदेश मंत्री यांग ली असहज  अवश्य हो गए लेकिन उन्होंने अपनी सरकार के फैसले का बचाव भी किया।  उन्होंने बयान देते हुए कहा कि, यह कानून देश विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए आवश्यक था।

दरअसल चीन यूरोप से नरमी की उम्मीद कर रहा था क्योंकि अमेरिका के साथियों में यूरोपीय देश ही अब तक ऐसे रहे हैं जिन्होंने चीन के विरुद्ध कोई सख्त बयान नहीं दिया है। अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा चीनी टेक कंपनी हुआवे पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी, यूरोपीय देशों ने हुआवे पर प्रतिबंध नहीं लगाया। यही कारण था कि, चीन के विदेश मंत्री यांग ली को इस बात की उम्मीद थी कि, यूरोपीय देश अमेरिका-चीन तनाव के बावजूद भी ये उसका साथ देंगे। दरअसल यूरोप का बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के प्रति लगाव चीन को इस बात के लिए आश्वस्त कर रहा था कि उसकी वहाँ कोई खास आलोचना नहीं होगी।

चीनी विदेश मंत्री का अगला दौरा नीदरलैंड का है और नीदरलैंड पहले ही यूरोप में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त कर चुका है। पिछले वर्ष उसने इसी बाबत चाइना स्ट्रेटेजिक पेपर 2019  प्रकाशित किया था। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि, नीदरलैंड में भी यांग ली को इन्हीं परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

बता दें कि चीन को इस समय  नीदरलैंड की अत्यधिक आवश्यकता है। अमेरिका के दबाव के कारण वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक चिप के निर्माता चीन से दूरी बना चुके हैं। ऐसे में चीन की कोशिश है कि, वह नीदरलैंड को इस बात पर मना ले ताकि वे इलेक्ट्रॉनिक चिप का निर्यात चीन को करना शुरू करें। हालांकि, कुछ खबरों के मुताबिक, नीदरलैंड में डच लेजिस्लेटर फॉरेन अफेयर्स कमिटी,  जो  विदेश मामलों से जुड़ी नीदरलैंड की संसदीय समिति है, उसकी कोशिश है कि वह यांग ली  के सामने हांगकांग के मुद्दे को उठाया जाए।

बहरहाल, जर्मनी की यात्रा के दौरान यांग ली के लिए इतनी मुश्किल नहीं खड़ी होंगी, ऐसा इसलिए क्योंकि जर्मनी यूरोपीय यूनियन की एक महाशक्ति होने के बाद भी चीन के प्रति अब तक सॉफ्ट स्टांस रखे हुए है। उसका प्रयास है कि, यूरोपीय यूनियन अमेरिका और चीन के बीच चल रहे शीत युद्ध का भाग ना बने।  लेकिन फिर भी जैसा रुख बाकी यूरोपीय देशों का है इस बात से पूर्णतः इंकार भी नहीं किया जा सकता कि, जर्मनी में यांग ली किसी विपरीत परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।

वहीं नॉर्वे की बात करें तो वह भी इटली और नीदरलैंड की तरह ही हांगकांग के नए सुरक्षा कानून को लेकर पहले ही अपनी चिंताएं व्यक्त कर चुका है। हांगकांग के मुद्दे पर 26 देशों ने चीन को नया सुरक्षा कानून न लागू करने का आग्रह किया था। उन देशों में नॉर्वे भी एक था।

लेकिन यांग ली को सबसे कठिन समय फ्रांस में बिताना होगा। फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रोन ने पिछले वर्ष ही कहा था,“चीन को लेकर यूरोपीय भोलापन समाप्त हो चुका है।” मैक्रॉन के इस बयान से यह साफ जाहिर था कि, वो आवश्यकतानुसार चीन के विरुद्ध आने वाले समय में बेहद सख्त रुख भी अपना सकते हैं। गलवान झड़प के बाद भारत के साथ चीन के बढ़ते तनाव के दौरान भी फ्रांस ने भारत का साथ दिया था। ऐसे में फ्रांस दौरे से चीनी विदेश मंत्री को क्या लाभ होगा, यह तो समय ही बताएगा।

जो भी हो, यह तो साफ है कि, चीन ने जिस यात्रा को डैमेज कंट्रोल के लिए शुरू किया था, वह उसके लिए अपमान से भरी हुई है। चीन जिस तरह दक्षिण चीन सागर में हर देश को डराकर अपनी बात मनवाता है, इस कारण उसे यूरोप में कड़ी आलोचना झेलनी पड़ रही है। यूरोपीय देशों का यह व्यवहार उसके महाशक्ति होने के भ्रम को तोड़ रहा है।

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