सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की निगरानी में क्या लाया गया, कई राजनीतिक पार्टियों के गले से पानी नहीं उतर रहा है। इसी परेशानी में कॉपरेटिव बैंकों का सबसे अधिक फायदा उठाने वाले NCP सुप्रीमो शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, जिसमे वो कहते हैं कि RBI कॉपरेटिव बैंकिंग को खत्म करना चाहता है। शरद पवार ने अपने पत्र में लिखा है कि सहकारी को प्राइवेट बैंकों में बदलने की सरकार की कोशिश सही नहीं है। साथ ही उन्होंने कॉपरेटिव बैंको को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बताई है।
I have written a letter to Hon. @PMOIndia Shri @narendramodi to express my deep concern about the preservation of the ‘Co-operative’ character of Co-operative banks having legacy of more than 100 years. pic.twitter.com/CZ6IBu4kZ1
— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) August 18, 2020
15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने संबधोन में कहा था कि मध्य वर्ग के हितों की रक्षा के लिए सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की निगरानी में लाया गया है।
उससे पहले केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था, जिसके अंतर्गत न केवल Banking Regulation Act, 1949 का संशोधन होगा बल्कि सभी शहरी सहकारी बैंक अब स्पष्ट रूप से आरबीआई के दायरे में आएंगे। इस सरकारी निर्देश का असर करीब 1500 से अधिक सहकारी बैंकों पर अवश्य पड़ेगा।
शरद पवार ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में सरकार के इस कदम की तारीफ की है और कहा है कि सहकारी बैंकों में भी वित्तीय अनुशासन होना चाहिए, लेकिन साथ ही साथ शरद पवार यह नहीं चाहते हैं कि सहकारी बैंकों पर रिजर्व बैंक निगरानी रखे। उन्होंने पत्र में लिखा कि 100 साल पुराने और देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाले सहकारी बैंकों पर बेवजह की पाबंदियां न लगाई जाए।
आखिर कॉपरेटिव बैंको के RBI की निगरानी में रहने से शरद पवार इतने परेशान क्यों है?
NCP, आईएनएलडी और राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियां सहकारी बैंक यानि Cooperative Banks को अपने शासन में कई बार नोट छापने की मशीन में परिवर्तित किया है, जिससे आवश्यक धन की आपूर्ति होती थी। परंतु अब और नहीं, क्योंकि केंद्र सरकार ने एक झटके में इन पार्टियों का यह सुख भी उनसे छीन लिया है। इसलिए शरद पवार तिलमिलाए हुए हैं और पीएम मोदी को पत्र लिखा है।
शहरी सहकारी बैंकों के माध्यम से NCP जैसी पार्टियां काले धन को सफ़ेद करती थीं। इन बैंकों का वार्षिक राजस्व हजारों करोड़ रुपयों का होता था। चूंकि, इनका प्रबंध अक्सर स्थानीय नेताओं के हाथ में होता था, इसलिए ये बैंक कई घोटालों का केंद्र भी होता था। जब महाराष्ट्र में NCP शासन में थी, तभी से इन बैंकों द्वारा दिये जाने वाले लोन पर राज्य की गारंटी लागू होती थी। इसका अर्थ था कि क्षेत्रीय एनसीपी नेता जब मन चाहे तब करोड़ों रुपये का कर्जा ले सकता था और वे बकाया लौटाते भी नहीं थे। इस स्थिति में यदि बैंक डूब जाते, तो राज्य सरकार राज्य के कोषागार से धन निकालकर न केवल जमा करने वाले ग्राहकों के पैसों को सुरक्षित रखती, बल्कि बैंक को भी जैसे-तैसे बचा लेती थी।
सहकारी बैंकों का इस्तेमाल किस तरह काले धन को जमा करने के लिए किया जाता था इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पिछले वर्ष प्रवर्तन निदेशालय यानि ED ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर 25000 करोड़ रुपये का घोटाला करने का आरोप लगाया था। ईडी ने शरद, उनके भतीजे अजित पवार और 70 अन्य अफसरों के विरुद्ध PMLA के अंतर्गत महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक द्वारा क्षेत्रीय चीनी मिलों को लोन देने के नाम पर 25000 करोड़ रुपये का घोटाला करने का मुक़दमा दर्ज किया था।
MSC बैंक ने 2001 से 2011 के बीच स्थानीय सहकारी चीनी मिलों के पदाधिकारियों और निदेशकों को ऋण दिया और इसके कारण 25,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। इस मामले में शरद पवार ने कथित तौर पर चीनी मिल को कम दरों पर कर्ज दिया था और डिफॉल्टर की संपत्तियों को कौड़ियों के भाव बेच दिया था। शरद पवार के ऊपर आरोप है कि इन संपत्तियों को बेचने, सस्ते लोन देने और उनका पुनर्भुगतान नहीं होने से बैंक को 2007 से 2011 के बीच करोड़ों रुपये का नुकसान करवाया। महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्त मंत्री अजित पवार उस समय बैंक के डायरेक्टर थे।
शरद पवार ने सहकारी बैंकों से कमाए काले धन से ही महाराष्ट्र में अपनी पैठ जमाई, और आज सत्ता का सुख भी प्राप्त कर रहे हैं। पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम के बाद पवार परिवार, संभवतः देश का सबसे भ्रष्ट राजनीतिक परिवार है।
लेकिन बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में संशोधन से मोदी सरकार ने शरद पवार के साम्राज्य की नींव पर ही वार किया है। इससे न केवल सहकारी बैंकों के भ्रष्टाचार में भारी मात्रा में कमी आएगी, बल्कि इन बैंकों के जरिये काला धन उत्पन्न करने में जुटी पार्टियों को भी अब करारा झटका लगेगा। अब RBI के अधीन होने के कारण इन बैंकों के लेन देन में पारदर्शिता आयेगी और इनकी सघन निगरानी हो सकेगी क्योंकि एनसीपी की सारी फंडिंग का आधार ही उनके हाथ से निकल गया, ऐसे में पवार की बौखलाहट लाज़मी है।