दक्षिण चीन सागर में इतने साल तक उत्पात मचाने के बाद अब बीजिंग शांति का पाठ पढ़ाना चाहता है। अमेरिका द्वारा दबाव बनाए जाने पर चीन अब इस क्षेत्र की समस्या निपटाने हेतु एक वैध समझौते की राह देख रहा है। यूं तो चीन का वैध समझौतों से उतना ही वास्ता है जितना ISIS का मानवता से, लेकिन चूंकि अमेरिका उसकी चटनी बनाने पर तुला हुआ है, इसलिए अब चीन को भी सयाना बनना पड़ रहा है।
SCMP की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अगस्त के प्रारम्भ में ASEAN के सदस्य देशों के राजनयिकों को आमंत्रित किया, ताकि एक वैध समझौते पर बातचीत हो, और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के प्रभाव को रोका जा सके। रिपोर्ट के अनुसार ASEAN के सदस्य देशों के राजनयिकों से मिलने वाले चीनी अफसर ने ये भी कहा कि वे बीजिंग के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करे। अमेरिका का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि हम किसी और देश को इस बातचीत का हिस्सा बनते नहीं देख सकते।
बीजिंग के इस कायाकल्प से निस्संदेह उन देशों को काफी राहत मिलेगी, जो चीन की गुंडई से बेहद परेशान थे, और उनके अनुसार यह निर्णय आखिरकार दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में शांति लाएगी। लेकिन चीन का असल मकसद इस समझौते के जरिये अमेरिका के प्रभाव को कम करना है, जिसने चीन की गुंडई का पुरजोर विरोध किया है। ऐसे में बीजिंग के पास एक वैध कोड ऑफ कंडक्ट पर काम करने के अलावा कोई और चारा नहीं है।
यूं तो ASEAN के सदस्य देश 1996 से ही चाहते थे कि दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्रों में गतिविधियों के लिए एक स्पष्ट दिशा निर्देश तैयार हो, लेकिन चीन का इससे दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। 2002 में एक अस्थायी समझौताअवश्य हुआ था, लेकिन इसे 2011 तक स्वीकृत नहीं किया गया। इसके अलावा चीन की दक्षिण चीन सागर में गुंडई ने अनेकों देशों की नाक में दम करके रखा था।
नवंबर 2019 में बीजिंग ने वादा किया था कि वह 2021 तक एक वैध कोड ऑफ कंडक्ट का खाका तैयार कर लेगा, परंतु पिछले समय से बीजिंग की गतिविधियों को देखते हुए ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था। क्या वियतनाम, क्या फिलीपींस, बीजिंग दक्षिण चीन सागर से सटे हर देश से गुंडागर्दी करने पर तुला हुआ था। लेकिन अब ASEAN के राजनयिकों की माने तो बीजिंग इस बार इस समस्या के लिए एक ठोस समाधान निकालना चाहता है।
दरअसल, चीन भली भांति जानता है कि यदि दक्षिण चीन सागर का मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चला गया, तो चीन की नौसेना का अमेरिकी नौसेना के सामने कोई मुक़ाबला नहीं होगा। यह तो कुछ भी नहीं, अमेरिका के पास भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसी शक्तियों का भी समर्थन है, और यदि ये चारों मिल गए, तो चीन की शामत आनी तय है।
सिंगापुर के NT यूनिवर्सिटी के रिसर्च फैलो कॉलिन कोह के अनुसार वर्तमान अमेरिकी समीकरण एक तरह से ASEAN के सदस्यों के लिए वरदान की तरह है, क्योंकि अब इससे उनके पास चीन पर COC के लिए कूटनीतिक दबाव बनाने का एक सुनहरा अवसर उपलब्ध है।
ASEAN ने जून माह में ही अपनी कूटनीतिक ताक़त का प्रदर्शन करते हुए एक बयान जारी किया था, जिसमें उन्होने कहा था, “हम पुनः ये बात सिद्ध करना चाहते हैं कि समुद्री विवादों के निस्तारण के लिए 1982 का यूएन समुद्री समझौता ही हमारा आधार है”। अब जिस प्रकार से चीन ASEAN से बातचीत की गुहार लगा रहा है, ये अमेरिका के प्रयासों का ही प्रभाव है, जो आने वाले दिनों में दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए काफी शुभ संकेत दे सकता है।