सऊदी अरब, ईरान या तुर्की नहीं, Muslim World का इकलौता शहंशाह है UAE

भारत के सहयोग से UAE इस्लामिक दुनिया पर राज करेगा

मुस्लिम दुनिया में अक्सर प्रभाव और प्रभुत्व को लेकर कुछ देशों के बीच खींचतान चलती रहती है। इनमें प्रमुख है सऊदी अरब, UAE, ईरान और तुर्की! मौजूदा समय में मुस्लिम दुनिया पर सऊदी अरब और UAE जैसे देशों का कुछ हद तक प्रभुत्व कायम है। हालांकि, इस प्रभुत्व को हाल ही में तुर्की से बड़ी चुनौती मिली है। मुस्लिम दुनिया में अंदरूनी समस्याएँ कुछ कम नहीं है। सऊदी अरब से लेकर तुर्की और ईरान तक, हर जगह आर्थिक समस्याएँ देखने को मिल रही हैं। इसके अलावा ईरान जैसे देशों के लिए तो अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण सांस लेना भी मुश्किल कर दिया गया है। इन हालातों में सिर्फ UAE ही ऐसा देश बचता है जो आने वाले दशकों में मुस्लिम वर्ल्ड का अघोषित शहंशाह बन सकता है।

खाड़ी के अन्य देशों के उलट UAE काफी पहले से ही अपनी इकॉनमी को diversify करने की योजना पर काम कर रहा है, जिसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था मुस्लिम दुनिया में आज सबसे संतुलित और स्थिर है। पहले UAE की अर्थव्यवस्था पूर्णतः तेल पर ही निर्भर थी। वर्ष 2009 में UAE की 85 प्रतिशत इकॉनमी तेल पर आधारित थी, जबकि 11 वर्षों पर आज यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से भी कम है। वर्ष 2030 तक UAE ने तेल पर अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता को खत्म करने का निश्चय किया हुआ है। इसके लिए UAE बड़े पैमाने पर अपने शहरों में infrastructure से जुड़े प्रोजेक्ट्स चला रहा है। अकेले वर्ष 2018 में UAE ने दुबई के infrastructure बजट को 46.5 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था।

UAE खाड़ी के चुनिन्दा ऐसे देशों में से एक है, जो कूटनीतिक तौर पर मजबूत देश हैं। UAE के अमेरिका, पश्चिमी देशों समेत भारत के साथ अच्छे संबंध हैं। UAE space सेक्टर में भी भारत के साथ मिलकर काम कर रहा है। वर्ष 2018 में भारत और UAE की स्पेस एजेंसियों ने UAE के मार्स मिशन पर साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया था। बता दें कि UAE ने हाल ही में अपना mars मिशन सफलतापूर्वक लॉंच किया है। कुल मिलाकर UAE आने वाले दशक में भी अपने आर्थिक प्रभाव को कायम रखने के लिए एक सोची समझी नीति का पालन करता दिखाई दे रहा है।

UAE के मुक़ाबले मुस्लिम दुनिया के बाकी देशों का भविष्य उतना उज्ज्वल दिखाई नहीं देता। सऊदी अरब, मुस्लिम दुनिया में आज जिसकी सबसे ज़्यादा तूती बोलती है, उसकी अर्थव्यवस्था बेहाल हो चुकी है। दरअसल, सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पेट्रोलियम के निर्यात पर निर्भर है, परंतु कोरोना के बाद आए मंदी के कारण पेट्रोलियम के दामों में भारी गिरावट दर्ज की गयी। इससे खाड़ी देशों को अपने खर्च में कटौती करने के पर मजबूर होना पड़ा। इसी क्रम में सऊदी अरब की सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो वहां के नागरिकों में असंतोष फैलाने के लिए और अपनी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने के लिए पर्याप्त है।

बता दें कि सऊदी की आर्थिक हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि सऊदी अरब ने कमजोर होती अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए Citizen’s Account Program से 2 मिलियन लोगों को निकाल दिया है। बता दें कि 2017 में लागू किए Citizen’s Account Program के तहत सऊदी परिवारों को मासिक रूप से आर्थिक मदद दी जाती थी और नागरिकों के खातों में रुपये जमा किए जाते थे।

कोरोना के कारण पहले ही पर्यटन ठप पड़ा हुआ है। इस खाड़ी देश को मक्का और मदीना में श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगाने से दोहरा झटका लगा है, और वहाँ से भी राजस्व नहीं आ रहा है। पर्यटन होने से वाली कमाई से लेकर रोजगार भी बंद पड़ा है। ऐसी स्थिति में अब सरकार ने Citizen Account Program के तहत मिलने वाली मदद से भी लोगों को बाहर निकालना पड़ रहा है। इस तरह के झटके के बाद सऊदी अरब की जनता का असंतोष अब अपने आखिरी चरम पर पहुंच चुका है।

ईरान और तुर्की की आर्थिक हालत भी कुछ खास नहीं है। हागिया सोफिया घटना और लीबिया गृहयुध में हस्तक्षेप के कारण तुर्की लगातार विवादों में आया हुआ है। तुर्की और ग्रीस का बॉर्डर विवाद भी बढ़ा हुआ है। इसका नतीजा यह है कि अब निवेशकों ने तुर्की से अपना पैसा बाहर निकालना शुरू कर दिया है। तुर्की की बदहाल होती अर्थव्यवस्था का एक और नमूना यह है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बद अब दोबारा तुर्की की करन्सी लीरा अपनी value खोती जा रही है। देश में महंगाई दर रिकॉर्ड तोड़ 12 प्रतिशत तक जा पहुंची है।

यही हाल ईरान का भी है। वर्ष 2015 में ईरान न्यूक्लियर डील के बाद जब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम किया गया था, तो ईरान की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2016 में 10 प्रतिशत से ज़्यादा की दर से विकास हुआ था। हालांकि, वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा इस डील को रद्द करने और दोबारा कड़े प्रतिबंध लगाने की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती जा रही है। वर्ष 2019 में IMF ने अनुमान लगाया था कि ईरान की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

ऐसे में इस्लामिक वर्ल्ड में सिर्फ UAE ही ऐसा देश बचता है, जो कि नेतृत्व के लिए जिम्मेदार के साथ-साथ सक्षम भी दिखाई देता है। UAE लगातार भारत के साथ सहयोग को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि इस देश में बड़े पैमाने पर भारतीय आबादी रहती है। UAE भारत के सहयोग से आगामी दशक में इस्लामिक दुनिया में शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकता है, और उसका वह हकदार भी है।

वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने CAATSA लाकर उन सभी देशों को भी प्रतिबंध की धमकी दी, जो ईरान के साथ अपने आर्थिक रिश्ते बरकरार रखना चाहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकतर देशों ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया और ईरान के ऑयल एक्सपोर्ट में भारी कमी देखने को मिली। वर्ष 2018 में ईरान जहां 2.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल एक दिन में एक्सपोर्ट करता था, तो वहीं आज ईरान सिर्फ 0.25 मिलियन बैरल कच्चे तेल से भी कम तेल एक्सपोर्ट कर पाता है।

 

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