कुछ महीनों पहले जब भारत ने RCEP समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था, तो देश के कुछ तथाकथित अर्थशास्त्रियों ने इसे सरकार की सबसे बड़ी गलती बताया था। ऐसे अर्थशास्त्री, जो अक्सर हर क्षेत्र के expert पाये जाते हैं, यह दावा कर रहे थे कि भारत इस विशाल समूह का हिस्सा ना बनकर एक बड़े अवसर को गंवा रहा है। हालांकि, कोरोना के बाद उत्पन्न हालातों ने यह साबित कर दिया कि भारत सरकार का वह फैसला बेहद उपयुक्त और लाभकारी था।
दरअसल, भारत के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत बड़ी ही तेजी से दक्षिण एशियाई देशों और चीन के साथ अपने मौजूदा ट्रेड डेफ़िसिट को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस वर्ष अप्रैल-जुलाई महीनों के दौरान भारत ने चीन को पिछले वर्ष के मुक़ाबले 31 प्रतिशत ज़्यादा एक्स्पोर्ट किया। इसी प्रकार वियतनाम, मलेशिया जैसे देशों में भी भारत ने पिछले साल के मुक़ाबले ज़्यादा निर्यात किया।
इसका परिणाम यह निकला है कि भारत ने पिछले कई सालों में पहली बार किसी तिमाही में ट्रेड सरप्लस रिकॉर्ड किया है। अप्रैल से लेकर जून महीने तक भारत का ट्रेड सरप्लस 14 बिलियन डॉलर था। इस दौरान देश के इम्पोर्ट्स 40 प्रतिशत तक कम हुए जबकि एक्स्पोर्ट्स में सिर्फ 22 प्रतिशत की कमी रिकॉर्ड की गई। लॉकडाउन के दौरान भी भारत की IT और फार्मा क्षेत्र की कंपनियाँ काम करती रही, जिसके कारण इन दोनों क्षेत्रों में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
Crisil एजेंसी के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में भारत का चीन के साथ ट्रेड डेफ़िसिट तेजी से कम हुआ है, जबकि चीन को होने वाले एक्स्पोर्ट्स में तेजी देखी गयी है। कोरोना के कारण देश में अभी डिमांड बढ़ी नहीं है, जिसके कारण इम्पोर्ट्स कम ही हैं।
इसी के साथ Crisil के मुताबिक भारत के दक्षिण एशियाई देशों को होने वाले एक्सपोर्ट में भी बढ़त देखने को मिली है, जबकि पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, UK को होने वाले एक्स्पोर्ट्स में कमी आई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पश्चिम के अधिकतर देश अभी कोरोना संकट से उबर नहीं पाये हैं।
जिस समय में हमारे पश्चिमी देशों को होने वाले एक्स्पोर्ट्स में कमी देखने को मिल रही है, उस समय चीन, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, दक्षिण कोरिया एवं ब्राज़ील जैसे देशों में भारत के निर्यात बढ़ रहे हैं, जो दिखाता है कि RCEP पर हस्ताक्षर न करना भारत के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है। पिछले वर्ष पीएम मोदी 2 नवम्बर को जब थाईलैंड के दौरे पर गए थे, तो सब की नज़र इस बात पर टिकी थी कि भारत RCEP डील पर हस्ताक्षर करता है या नहीं। RCEP के तहत इसके दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित था, और ये सभी देश चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द इस डील पर साइन कर दे लेकिन तब भारत की ओर से पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया था कि, भारत किसी भी डील पर साइन करने से पहले अपने हितों को देखेगा और अभी उनकी अंतरात्मा इस डील पर साइन करने के लिए उन्हें इजाजत नहीं देती है।
RCEP छोड़ने के भारत के पास कई कारण थे। अगर भारत RCEP समझौता करता तो भारतीय बाजार में सस्ते चाइनीज सामान की बाढ़ आ जाती। RCEP राष्ट्रों के साथ भारत का व्यापार घाटा 105 बिलियनडॉलर है, जिसमें से अकेले चीन का 54 बिलियन डॉलर है। मुख्य रूप से भारतीय बाजारों में चीनी वस्तुओं और न्यूज़ीलैंड के डेयरी उत्पादों पर मुख्य चिंता है,जिनसे घरेलू उत्पादकों के हितों को चोट पहुंचेगी। अगर भारत यह व्यापार समझौता कर लेता तो सरकार की मेक इन इंडिया पहल को नुकसान होना तय था। RCEP यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी में 10 आसियान देशों के अलावा 5 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं। समझौता करने वाले देशों के बीच मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिलता है। लिहाजा, भारत के समझौते में शामिल होने से चीन को भारतीय बाजार में पैर पसारने का अच्छा मौका मिल जाता।इस बात का अंदाजा हम चीन और ASEAN के बीच हुए ACFTA यानि आसियान-चीन मुक्त व्यापार समझौता से लगा सकते है कि किस तरह चीन अपने पैर पसारता है। आसियान में चीन का व्यापार “1995-2017 के बीच 5-6 गुना“ बढ़ गया। यह दर्शाता है कि आस-पास के बाजारों की तुलना में चीनी कंपनियों को आसियान बाजारों तक अधिक छूट मिली है और वह अधिक फायदा उठाता है।
भारत के RCEP में शामिल ना होने के फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित हुआ है। यही कारण है कि कोरोना के बाद अब भारत के एक्स्पोर्ट्स में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। भारत ने इन देशों को साफ संदेश दे दिया है कि अगर भारत के साथ व्यापार करना है, तो भारत से सामान भी खरीदना होगा!