“प्लीज़ कोई मेरे साथ ट्रेड डील कर लो”, भारत के RCEP फैसले ने दुनियाभर में चीन को हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया है

इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने लगाना!

RCEP

वर्ष 2019 में भारत द्वारा Regional Comprehensive Economic Partnership यानि RCEP से बाहर होने के फैसले ने भारत को आर्थिक तौर पर काफी राहत पहुंचाई है। हालांकि, रोचक बात यह भी है कि भारत के इस फैसले से चीन को बड़ी आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। चीन RCEP के जरिये दुनिया के सबसे बड़े trading bloc पर कब्जा करना चाहता था, लेकिन भारत के एक फैसले ने RCEP के भविष्य को दांव पर लगा दिया। अब आलम यह है कि RCEP समझौता पक्का ना होने के कारण चीन अन्य देशों के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर भी बैकफुट पर आ गया है, और अब ईयू और अमेरिका जैसे देश अधिक रियायतों के साथ ट्रेड डील करने को लेकर चीन पर दबाव बना रहे हैं।

बता दें कि RCEP के तहत इसके दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित था। इन देशों में दुनिया की कुल आबादी का 45 प्रतिशत हिस्सा रहता है, और इन देशों का आपसी व्यापार दुनिया के कुल व्यापार का 40 प्रतिशत है। इन देशों की कुल GDP 21.3 ट्रिलियन है। अगर भारत RCEP डील पर हस्ताक्षर कर लेता, तो चीन को आसानी से दुनिया के 40 प्रतिशत व्यापार पर सीधे तौर पर प्रभाव डालने का अवसर मिल जाता और वैश्विक व्यापार में चीन का कद बढ़ जाता। उसके बाद चीन के लिए अमेरिका और EU जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता साइन करना बेहद आसान होता, क्योंकि व्यापारिक समझौते से जुड़ी वार्ता में चीन का दबदबा होता।

हालांकि, आज चीन की दुर्दशा ऐसी है कि चीन EU के साथ भी ट्रेड डील नहीं कर पा रहा है। चीनी विदेश मंत्री Wang Yi खुद इटली, नेदरलैंड, नॉर्वे, फ्रांस और जर्मनी के दौरे पर हैं, तो वहीं CCP के विदेशी मामलों के सचिव Yang Jiechi भी ग्रीस और स्पेन और शायद पुर्तगाल के दौरे पर जाने वाले हैं। स्पष्ट है कि बीजिंग जल्द से जल्द ट्रेड डील करना चाहता है ताकि उसे कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर कोई राहत मिले।

RCEP डील ना होने के कारण EU और अमेरिका जैसे देश यह भलि-भांति जानते हैं कि चीन पर जल्द से जल्द कोई मुक्त व्यापार समझौता करने का दबाव है। ऐसे में EU अब चीन से अधिक से अधिक रियायत चाहता है, और चीन की भी मजबूरी है कि समझौते को पक्का करने के लिए उसे ये सभी रियायतें EU को ऑफर करनी ही पड़ेंगी। EU की आधिकारिक website के मुताबिक “EU चीन के साथ संबंध बढ़ाने का इच्छुक है। हालांकि, EU चाहता है कि वह WTO का सदस्य देश होने के नाते पारदर्शिता अपनाए और हमारे intellectual property rights की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्धता दिखाये”। EU यह भी चाहता है कि ट्रेड डील करने से पहले चीन उसके साथ निवेश संधि पर हस्ताक्षर करे और EU में निवेश को बढ़ाने का वादा करे। आसान शब्दों में कहें तो EU अब चीन को पूरी तरह निचोड़ने का प्लान बना चुका है।

इसी प्रकार अमेरिका भी चीन के साथ फेज़-2 की ट्रेड डील की वार्ता को रद्द कर चुका है। अमेरिका भी चीन के साथ अधिक से अधिक रियायत के साथ ट्रेड डील करना चाहता है। भारत के एक फैसले से किस प्रकार चीन को दुनिया के साथ FTAs करने में बड़ी समस्या पेश आ रही है, वह अब दुनिया के सामने है। अपने RCEP के एक फैसले से भारत ने एक तीर से दो निशाने लगाने का काम किया है, एक तो अपने बाज़ार को चीनी आक्रमण से बचाया है, तो वहीं चीन को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चोट पहुंचाई है।

Exit mobile version