“आपस में नहीं, चीन से लड़ो”, भारत अब क्षेत्र के दो बड़े शत्रुओं- जापान और रूस को चीन के खिलाफ एकजुट कर रहा है

दुश्मन का दुश्मन दोस्त! इसलिए अब रूस और जापान बनेंगे दोस्त और चीन बनेगा enemy number-1

जापान

भारत की वर्तमान विदेश नीति का पैनापन और इसकी कारगरता सभी छोटे-बड़े देशों को काफी आकर्षित कर रही है। इसी नीति का एक अनोखा उदाहरण पेश करते हुए भारत अब रूस और जापान को एक साथ लाना चाहता है। भारत इस समय चीन की हेकड़ी को ठिकाने लगाने के लिए, Indo Pacific Initiative को बल दे रहा है, जिससे  दक्षिण पूर्वी एशिया के देश और भारत मिलकर चीन से मिल रही चुनौती को ध्वस्त कर सकें। इस योजना में जापान तो भारत के साथ है ही और अब भारत ने वियतनाम जैसे देश को इसमें आमंत्रित कर चीन को खुलेआम चुनौती भी दे दी है।

अब भारत चाहता है कि, रूस भी इस नेक अभियान का हिस्सा बने। लेकिन ये काम इतना भी आसान नहीं है, क्योंकि जापान और रूस के बीच दशकों से तल्खी व्याप्त है। कुरील द्वीप समूह जापान और रूस के बीच में विवाद का विषय रहा है। साल 1855 में रूस और जापान के बीच शिमोडा का समझौता हुआ था, जिसमें जापान को कुरील द्वीप समूह के चार दक्षिणी द्वीप दिये गए थे और रूस ने उत्तरी द्वीप समूह अपने नियंत्रण में ले लिया था।

लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को हराने के बाद रूस ने दक्षिणी द्वीप समूह पर भी कब्जा कर लिया था और यहाँ रह रहे जापानी निवासियों को उनके देश में प्रत्यर्पित कर दिया गया था। तभी से टोक्यो और मॉस्को के बीच के संबंध मधुर नहीं रहे हैं।

इसके अलावा शीत युद्ध के समय जापान अमेरिका का सहयोगी बन गया था, जिसके कारण रूस के साथ जापान के संबंध कभी पुनर्स्थापित नहीं हो पाये। ऐसे में भारत का मानना है कि, दोनों को अपनी गलतफहमियों को दूर कर अपने समान शत्रु (चीन) के विरुद्ध मोर्चा संभाल लेना चाहिए।

भारत जिस प्रकार से रूस और जापान को एकजुट करने में लगा हुआ है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि नई दिल्ली का कूटनीतिक कद कितना बढ़ चुका है। मेन्स्ट्रीम मीडिया ने अक्सर ये भ्रम फैलाया है कि एक ओर भारत को रूस से अपनी मित्रता कायम रखनी है और दूसरी ओर उसे लोकतांत्रिक दुनिया का साथ भी नहीं छोड़ना है।

लेकिन यहीं पर वे भूल कर गए, क्योंकि भारत ने जापान और रूस को एक कर चीन के विरुद्ध मोर्चा खोलने का एक सुनहरा अवसर दिया है, जिसे वो अपने हाथ से कतई फिसलने नहीं देना चाहेंगे। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो भारत, रूस और जापान की तिकड़ी न केवल चीन को उसी के भाषा में जवाब देने में सक्षम होगी, बल्कि कूटनीतिक सफलता की एक अद्भुत मिसाल भी पेश करेगी।

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