सही ही कहा था किसी ने, ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता खुद करे। चीन के विरुद्ध भारत अब पूरी तरह आक्रामक हो चुका है। गलवान घाटी में चीन द्वारा हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के पश्चात भारत ने अपनी नीतियों से स्पष्ट संदेश दिया है – चाहे कैसी भी स्थिति हो, भारत चीन की हेकड़ी से निपटने में स्वयं सक्षम है, और चीन चाहे जितना शक्तिशाली हो, वह अभेद्य बिलकुल नहीं है। भारत के इस नयी सोच से न केवल पूरी दुनिया प्रभावित है, अपितु यूरोप जैसा महाद्वीप भी भारत की इस नीति से आश्चर्यचकित है, और वह इस नीति पर विशेष ध्यान देना चाहते हैं।
यूरोप की थिंक टैंक एजेंसी यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ इस बात से चकित है कि भारत चीन के विरुद्ध अपनी लड़ाई लड़ने में खुद सक्षम है। EFSAS के अनुसार, “पैंगोंग त्सो में डिसइंगेजमेंट की शुरुआती प्रक्रिया में चाइनीज फिंगर 2 से फिंगर 5 इलाकों में पीछे हटे, लेकिन रिज लाइन पर तैनाती बनी रही। भारत जोर दे रहा है कि चीनी सैनिक फिंगर 5 से फिंगर 8 तक से हटें। भारत ने चीनी सैनिकों के पूरी तरह पीछे हटने तक अग्रिम इलाकों से हटने पर विचार से इनकार कर दिया है।”
परंतु यूरोपीय थिंक टैंक उतने पे ही नहीं रुकी। उन्होने आगे अपने बयान में बताया, ”2017 में डोकलाम की तरह, ड्रैगन की आक्रामकता के खिलाफ भारतीय राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की ओर से दिखाए गए दृढ़ता और संकल्प ने चीन को हैरान कर दिया है। जब तक सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बीतचीत के जरिए सहमति नहीं बन जाती, तनातनी लंबे समय तक रह सकती है। दूसरे शब्दों में, बेहद कठिन मौसम के बावजूद दोनों देश सर्दी में भी टिकने की तैयारी में हैं। भारत ने सियाचिन ग्लेशियर की तरह यहां बड़े पैमाने पर सैन्य सामान और रसद एकत्रित कर लिया है। भारत की ओर से तैयारी से पता चलता है कि भारत सीमा पर किसी गंभीर टकराव का मुकाबला करने के लिए काफी मजबूत है।“
शायद यूरोप की थिंक टैंक को इस बात का आभास नहीं है कि भारत ने चीन के साथ 1962 के अलावा भी कोई युद्ध लड़ा है। यदि कोई 1967 के भारत चीन युद्ध के पन्ने पलटकर देखे, तो पता चलेगा कि भारत के शौर्य के आगे चीन कैसे दुम दबाकर भागने को विवश हुआ था। गलवान घाटी के हमले के पश्चात भारत ने किसी भी देश से मदद की गुहार नहीं लगाई, अपितु स्वयं ही चीन की हेकड़ी को ठिकाने लगाने के लिए युद्धस्तर पर लड़ाई के लिए जुट गया।
चाहे चीनी उत्पादों के बहिष्कार के लिए एक सुनियोजित योजना तैयार करनी हो, या फिर डिजिटल मोर्चे पर चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाकर चीन को उसकी औकात दिखानी हो, भारत किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं रहा है। भारत के इसी स्वावलम्बी स्वभाव से अभिभूत होकर यूरोप समेत विश्व की महाशक्तियों ने निस्स्वार्थ भाव से भारत की सहायता करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए हैं। इसके अलावा CAIT नामक व्यापार संगठन ‘भारतीय सामान – हमारा अभिमान’ नामक एक व्यापक अभियान चलाने की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने के जरिये दिसंबर 2021 तक चीनी अर्थव्यवस्था को 1 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक झटका देने का लक्ष्य रखा है।
EFSAS ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि भारत के सब्र का चीन इम्तिहान न लें। EFSAS के बयान के अनुसार, “जहां भारत आशा करता है कि वर्तमान समस्या बातचीत से ही सुलझ जाए, तो वहीं उसने संभावित संघर्ष के लिए भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए भारत किसी भी हद तक जाने के लिए सक्षम है। ऐसे में बेहतर यही होगा कि चीन बातचीत के जरिये अपनी समस्या सुलझा ले, जिससे उसके सम्मान को कोई ठेस नहीं पहुंचेगी।“ इस बयान से स्पष्ट होता है कि चीन से निपटने के लिए भारत के तकनीक अब न केवल पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श है, बल्कि ये चीन को भी एक कड़ा संदेश देती है – कायदे में रहोगे तो फ़ायदे में रहोगे।