“फ्रांस का जूता और एर्दोगन का सिर”, भू-मध्य सागर में तुर्की को Knock out करने के लिए फ्रांस की नेवी तैयार

फ्रांस से पंगा लेना एर्दोगन को बहुत भारी पड़ गया

तुर्की

पूर्वी मेडिटेरेनियन में वर्चस्व की लड़ाई ने एक नया मोड़ लिया है। तुर्की की गुंडई से परेशान हो ग्रीस और साइप्रस जैसे देशों ने अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियों से सहायता की गुहार लड़ाई। इन याचनाओं को सुनकर एक देश तुरंत साइप्रस में अपने जेट्स और युद्धपोत भेजने की व्यवस्था कर रहा है, और वह कोई और नहीं, यूरोपीय महाशक्ति फ्रांस है।

फ्रांस ने हाल ही में एक अहम निर्णय में पूर्वी मेडिटेरेनियन क्षेत्र में तुर्की की दादागिरी को मुंहतोड़ जवाब देने हेतु अपने फाइटर जेट्स एवं युद्धपोत तैनात करने की दिशा में काम कर रहा है। बीबीसी वर्ल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, “फ्रांस पूर्वी मेडिटेरेनियन में तुर्की के तेल एवं प्राकृतिक गैस खोजने के नाम पर होने वाली दादागिरी का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए दो राफेल फाइटर जेट्स एवं एक नौसैनिक को साइप्रस के जल क्षेत्र के निकट तैनात करने का निर्णय किया है।फ्रांसीसी राष्ट्राध्यक्ष इम्मैनुएल मैक्रोन ने तुर्की को चेतावनी दी है कि वह पूर्वी मेडिटेरेनियन सागर से दूर रहे। उन्होने ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस को आश्वासन दिया है कि फ्रांस की सेना तुर्की की दादागिरी नहीं चलने देगी।“

परंतु फ्रांस को तुर्की के विरुद्ध आखिर ऐसा आक्रामक रुख क्यों अपनाना पड़ा? आखिर तुर्की ने ग्रीस और साइप्रस के साथ पूर्वी मेडिटेरेनियन क्षेत्र में ऐसा क्या किया है जो फ्रांस को मामला सुलझाने के लिए बीच में आना पड़ा? दरअसल तुर्की ने पूर्वी मेडिटेरेनियन में अनुसंधान और खनिज पदार्थों की खोज हेतु अपने जहाज़ भेजे थे। लेकिन ये जहाज़ उन्होने उन क्षेत्रों में भेजे, जो विवादित हैं और जहां ग्रीस और साइप्रस अपने अपने दावे करते हैं। इस बारे में फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रकाश डाला है।

दरअसल, turkey  मिडिल ईस्ट का चीन है, जिसका प्रमुख उद्देश्य है दूसरा खिलाफत स्थापित करना अन्य देशों की भूमि और उनके जल क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाना। प्रारम्भ में ग्रीस ने बात बढ़ने के डर से तुर्की के विरुद्ध आक्रामक रुख नहीं अपनाया था, परंतु जब turkey ने ग्रीस के उन क्षेत्रों पर भी दावा करना शुरू कर दिया, जिन्हे ग्रीस ने EEZ यानि विशेष आर्थिक ज़ोन घोषित किया था, तो ग्रीस को मजबूर होकर NATO और अन्य वैश्विक ताकतों के समक्ष गुहार लगानी पड़ी है।

अब फ्रांस के पूर्वी मेडिटेरेनियन के दंगल में प्रवेश करने से तुर्की की न केवल मुसीबतें बढ़ेंगी, बल्कि उसे दोतरफा बेइज्जती का सामना करना पड़ेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि पूर्वी मेडिटेरेनियन एकमात्र क्षेत्र नहीं है जहां फ्रांस ने तुर्की के विरुद्ध मोर्चा संभाला है। पिछले कुछ वर्षों से लीबिया में चल रहे गृह युद्ध में इस वर्ष turkey ने हस्तक्षेप किया है। एक ओर तुर्की GNA यानि Government of National Accord को लीबिया कब्ज़ाने के लिए उकसा रहा है, तो लीबियन नेशनल आर्मी को फ्रांस सहित वैश्विक ताकतों का समर्थन प्राप्त है।

हाल ही में जब तुर्की ने अपनी सीमाएं  लांघते  हुए लीबिया में  फ्रांस को चुनौती देने का प्रयास किया, तो फ्रांस ने अपने राफ़ेल फाइटर जेट्स को तत्काल प्रभाव से लीबिया में तैनात कराया।  में अपने ख्वाबों को यथार्थ में बदलने के लिए प्रयासरत एर्दोगन को हाल ही में करारा झटका लगा जब लीबिया में स्थित तुर्की के अल-वतीय एयरबेस को फ्रांसीसी मूल के राफेल लड़ाकू विमानों द्वारा तबाह कर दिया गया। इस हमले में तुर्की के कई प्लेन, ड्रोन और फिक्स विंग एयरक्राफ्ट बर्बाद हो गए और कुछ रिपोर्ट ने ये तक दावा किया है कि हमलें में  कई सैनिक भी घायल हुए हैं। लीबियन नेशनल आर्मी ने इस हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा कि उन्होंने तुर्की के अल-वतीय एयरबेस में तैनात एमआईएम-23 हॉक एयर डिफेंस सिस्टम को तितर बितर कर दिया। लीबियन नेशनल आर्मी द्वारा की गई एयर स्ट्राइक्स ने ये कारनामा करके दिखाया, जिसकी पुष्टि लीबियाई मीडिया के हवाले से रशिया टुडे ने भी की।

अब सच कहें तो तानाशाह एर्दोगन ने भी ठीक वही गलती की है जिसके कारण चीन आज संसार में हंसी का पात्र बना हुआ है और वह है अपने शत्रु को कमतर आंकना। जब तुर्की ने ग्रीस और साइप्रस के जल क्षेत्र में घुसपैठ की, तो उन्हे लगा कि वह क्या ही कर लेंगे। परंतु अब फ्रांस के मोर्चा संभालने से तुर्की को लेने के देने पड़ सकते हैं।

 

 

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