ट्रम्प का Middle East कारवां – पूर्ववर्ती शासकों ने मिडिल ईस्ट को बिगाड़ा, अब ट्रम्प संवार रहे हैं

डोनाल्ड ट्रम्प पश्चिम एशिया में बहुत प्रभावी रहे हैं

अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के इतिहास के शायद सबसे विवादास्पद राष्ट्रपति रहे हैं। अपने चुनाव के पूर्व से अब तक उन्हें किसी न किसी विवाद में घसीटा गया है। ट्रंप की छवि ऐसी बनाई गई है जैसे वे शांति के विरोधी हैं। वहीं उनके पूर्ववर्ती बराक ओबामा को शांति के लिए नोबल पुरस्कार मिला था। लेकिन क्या वाकई ट्रंप जैसे दिखाए जाते हैं, वैसे हैं? या बराक ओबामा की नीतियों ने विश्व में शांति स्थापित की ?

वास्तव में परिस्थितियां उसके बिल्कुल विपरीत हैं जैसा प्रचारित किया गया है। ओबामा का शासन भयंकर नीतिगत गलतियों का शासन था। उनकी गलत नीतियों का नतीजा पूरे मध्य एशिया और यूरोप को भुगतना पड़ा।

वस्तुतः ट्रंप ने अमेरिका की “शेरिफ ऑफ वर्ल्ड” या विश्व की पुलिसिंग करने की नीति को ही बदल दिया। बता दें कि अमेरिका में पुलिस अधिकारी शेरिफ कहलाते हैं और इसी से विदेश नीति में इस शब्द का चलन हुआ है।

इस नीति के अनुसार अमेरिका हर ऐसे देश में सैन्य हस्तक्षेप करता था जहां उसे मानवाधिकार का उल्लंघन होता दिखाई देता था। इसीलिए दुनिया में उसकी पुलिस की भूमिका रही है।

परंतु वास्तविकता यह थी कि अमेरिका इस नीति का इस्तेमाल अपने हितों को साधने और अपने विरोधीयों को खत्म करने के लिए करता था भले ही वे उसके लिए कोई वास्तविक खतरा न हों।

इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं अमेरिका ने मानवाधिकार के नाम पर इराक और लीबिया जैसे देशों में सैन्य हस्तक्षेप किया जबकि चीन के मानवाधिकार उल्लंघन को अनदेखा करते हुए वहां बड़ी मात्रा में निवेश किया।

अमेरिका की अदूरदर्शी नीतियों ने इराक में ISIS को जन्म दिया। इराक़ आबादी के लिहाज से शिया बाहुल्य वाला देश था लेकिन उसपर सुन्नियों द्वारा संचालित बाथ पार्टी का शासन था। सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में सुन्नी सेना से लेकर प्रशासन तक पूरी स्टेट मशीनरी में काबिज थे। जब अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को मारा तो वहाँ लोकतंत्र की स्थापना कर दी। लोकतंत्र जो बहुमत का शासन है, उसने सुन्नियों को पूरी तरह से शक्ति से बाहर कर दिया। जैसे ही अमेरिका ने अपनी सेना वहां से हटाई सुन्नियों ने मिलकर वहां की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

इसी सुन्नी धड़े की वजह से ISIS का जन्म हुआ। ISIS एक साधारण आतंकी संगठन न होकर, पूरी सरकारी मशीनरी था। जिसमें अर्थव्यवस्था से लेकर कूटनीति तक सबके जानकर थे और उन्हें सद्दाम के शासन में पहले से पर्याप्त तजुर्बा भी हासिल था।

ये सारी मुसीबत सिर्फ दो मूर्खतापूर्ण निर्णयों के कारण हुई। पहली इराक में सैन्य हस्तक्षेप और दूसरी असमय वहां से अमेरिका की सेना का हट जाना। पहला निर्णय जॉर्ज बुश जूनियर का था जबकि दूसरा बराक ओबामा का थ।

अमेरिका में आम प्रचलित धारणा की विश्व शांति के लिए अमेरिका के लिए युद्ध आवश्यक थे, उसे भी ट्रंप ने तोड़ दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के लिए ये युद्ध लड़े गए तो आज कौन सा उन देशों में मानवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा, बल्कि यह पहले से अधिक हो गया है। ट्रंप ने इराक को आतंक का अड्डा कहा था और साथ ही यह भी कहा था कि अगर सद्दाम हुसैन जिंदा होता तो वह एक भी आतंकी को पैदा न होने देता। उन्हें तुरंत मार देता। यह सुनने में अटपटा भले लगे लेकिन यह सत्य है कि आज इराक़ में पहले से अधिक हिंसा और मानवाधिकार हनन हो रहा है, और यह भी सत्य है कि सद्दाम का शासन इराक़ के लिए भले अभिशाप था लेकिन आज के हालात से फिर भी बेहतर था। उसने अपने विरोधियों को मरवाया लेकिन कभी आतंकवाद को पनाह नहीं दी।

मध्य एशिया को ट्रम्प के पूर्ववर्तियों ने कैसे बर्बाद किया इराक़ इसका बस एक ही उदाहरण नहीं है। इसी प्रकार बराक ओबामा ने लीबिया में भी कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को अपदस्थ कर दिया। इस बार भी मानवाधिकार उल्लंघन ही कारण था। लेकिन नतीजा यह हुआ कि आज लगभग एक दशक होने वाला है और सीरिया अभी भी गृहयुद्ध में उलझा है। यही हाल सीरिया में हुए जहां बशर अल असद को हटाने के प्रयास में इराक़ जैसे ही शक्ति शून्यता के हालात पैदा हुए और ISIS का वहाँ भी प्रभाव बन गया।

जब ट्रंप शासन में आये तो इराक़, लीबिया और सीरिया में ISIS अपनी शक्ति के चरम पर था। पूरी दुनिया से मुसलमान उसमें भर्ती होने के लिए जा रहे थे। शरणार्थियों के जत्थे भागकर यूरोप की ओर जा रहे थे। पूरे यूरोप में शरणार्थी समस्या बन गए थे।

ट्रंप ने इस परिस्थिति से मध्य एशिया को निकाला। उन्होंने ISIS की शक्ति को खत्म किया। सीरिया में एक शांतिपूर्ण माहौल पैदा होने की संभावना है, यद्यपि अब भी यह तय नहीं कि यह शांति दीर्घकालिक होगी, लेकिन इतना तय है कि वहाँ अब पहले से बेहतर हालात हैं। ISIS को कुर्दों ने अमेरिका की सहायता से हरा दिया है और अब कम से कम तुर्की-कुर्दों तथा कुर्दों और सीरिया की सरकार के बीच शांति स्थापना की उम्मीद की जा सकती है, जो आज से 5 साल पहले असंभव दिखता था। वहीं इराक़ में भी अब शांति स्थापित हो गई है।

निश्चित रूप से अब भी यह नहीं कहा जा सकता कि इन सुधरते हालातों के कब तक ऐसे ही बने रहने की संभावना है लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जो इस ओर संकेत करता है कि अब संभवतः मध्य एशिया में शांति होगी।

इसमें सबसे महत्वपूर्ण है ट्रंप प्रशासन की मध्यस्थता के कारण संभव हुआ इज़राइल और UAE का समझौता। इस समझौते के बाद अरब जगत और इजरायल के ऐतिहासिक शत्रुता का अंत होना भी संभव लग रहा है। ये दोनों पक्ष अब मध्य एशिया की स्थिरता और संवृद्धि के लिए प्रयास करेंगे।

आज चीन ट्रंप को वैश्विक शांति का जबकि ट्रंप के विरोध बाइडन और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता लोकतंत्र का विरोधी करार दे रहे हैं। परंतु सत्य यह है कि ट्रंप ने सफलतापूर्वक वैश्विक शांति की स्थापना में योगदान दिया है।

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