जब से वुहान वायरस का प्रकोप दुनिया भर में फैला है, तभी से चीन के वास्तविक स्वरूप से अधिकांश देश भली-भांति परिचित है। कर्ज़ के मायाजाल में फंसाकर किसी देश का चीन कैसे शोषण करता है, ये किसी से छुपा नहीं है, और इसके शिकार हो चुके श्रीलंका, मालदीव जैसे देश तो चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल चुके हैं। अब इसी कड़ी में नाइजीरिया का भी नाम जुड़ चुका है, जहां कर्ज़ के मायाजाल में फँसने के कारण नाइजीरिया के वर्तमान प्रशासन को देशवासियों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, नाइजीरिया और चीन के बीच हुई एक संधि अब सवालों के घेरे में है। नाइजीरियाई संसद में विपक्षी सांसदों का दावा है कि जिस संधि पर नाइजीरिया की सरकार ने हस्ताक्षर किए थे, उसके खंड 8 [1] में ये स्पष्ट लिखा है कि यदि नाइजीरिया चीन का कर्ज़ चुकाने में असमर्थ रहा, तो चीन न केवल नाइजीरिया की राष्ट्रीय संपत्तियाँ हड़प सकता है, अपितु नाइजीरिया की स्वतन्त्रता भी खतरे में आ सकती है।
बता दें कि, 2018 में नाइजीरियाई नेशनल इन्फॉर्मेशन एण्ड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के इनफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण हेतु चीन के एक्सपोर्ट इम्पोर्ट बैंक ने 400 मिलियन डॉलर का कर्ज प्रदान किया था। लेकिन अब इस संधि पर नाइजीरिया के विपक्ष ने सवाल उठाया है, क्योंकि उन्हे भय है कि कहीं चीन अपने कर्जे के जाल में फंसाकर नाइजीरिया को उसी तरह अपना दास न बना ले, जैसे उसने पाकिस्तान और नेपाल को बना रखा है, और जिसके चंगुल में श्रीलंका और मालदीव जैसे देश भी फंसे थे। चीन इस समय नाइजीरिया का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर, और नाइजीरिया के 80 प्रतिशत कर्जे का लेनदार चीन ही है। ऐसे में नाइजीरियाई विपक्ष का भय स्वाभाविक भी है।
चीन के कर्ज़ का मायाजाल किस प्रकार से अफ्रीका में फैला है, इसके बारे में किसी को विशेष शोध करने की कोई आवश्यकता नहीं। अपनी debt-diplomacy के जरिये चीन छोटे और गरीब देशों को बड़े-बड़े कर्ज़ देकर उन्हें पहले दिवालिया करने और बाद में उनसे अपने हित में सौदे करने के लिए बदनाम है। हालांकि, वुहान वायरस की महामारी फैलने के बाद यह कर्ज़ गरीब अफ्रीकी देशों के बजाय खुद चीन के ही गले की फांस बनता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अफ्रीकी देश अब चीन पर उनके कर्ज़ को माफ करने का दबाव बना रहे हैं। यही नहीं, ये चीन की विश्व प्रसिद्ध debt-diplomacy के लिए एक बहुत बड़ा झटका साबित होगा। अगर debt ही नहीं रहेगा, तो चीन की debt-diplomacy कहाँ से इसे बढ़ावा दे पाएगी?
इतना ही नहीं, चीन की काली करतूतों का आभास कई अफ्रीकी देशों को पहले ही हो चुका था। तंज़ानिया, मैडागास्कर, केन्या, गिनी इत्यादि जैसे देशों ने तो खुलेआम चीन के विरुद्ध मोर्चा निकाल दिया है। उदाहरण के लिए तंजानिया के राष्ट्रपति ने पिछली सरकारों के समय चीन के साथ final किए गए 10 बिलियन डॉलर्स के एक प्रोजेक्ट को अप्रैल माह में रद्द कर दिया था। साथ ही तंजानिया के राष्ट्रपति ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की शर्तें इतनी बकवास थीं कि कोई पागल व्यक्ति ही इन शर्तों को मान सकता था।
इसके अलावा केन्या ने तो आक्रामक रुख अपनाते हुए अप्रैल माह में ही चीनी नागरिकों को तत्काल प्रभाव से देश को छोड़ने को कहा था। चीन के अत्याचारों के जवाब में केन्या के एक सांसद ने केन्या में मौजूद सभी चीनी नागरिकों को तुरंत देश छोड़ने के लिए कह दिया था। चीन में अफ्रीका के लोगों की पिटाई की videos पर प्रतिक्रिया देते हुए केन्या के सांसद मोसेस कुरिया ने कहा था- “सभी चीनी नागरिकों को हमारे देश से चले जाना चाहिए, वो भी तुरंत! जो वायरस तुमने वुहान की लैब में बनाया, उसके लिए तुम अफ्रीका के लोगों को दोष कैसे दे सकते हो? जाओ अभी निकलो”। तब और भी कई सांसदों ने केन्या के इस सांसद का समर्थन किया था। केन्याई सांसद चार्ल्स जगुआ ने मोसेस का समर्थन करते हुए फेसबुक पर लिखा था–
“अफ्रीकन लोगों के साथ चीन में जो हो रहा है, मैं उसकी निंदा करता हूं। मैं केन्या के लोगों से यह कहने से पीछे नहीं हटूंगा कि बाइबल का अनुसरण करते हुए उन्हें आंख दिखाने वालों को पलटकर आंख दिखाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।’
शायद इसीलिए अब नाइजीरिया भी जल्द से जल्द चीन द्वारा फैलाये गए कर्ज़ के मायाजाल से मुक्त होना चाहता है, जिसके लिए विपक्ष ने अभी से मोर्चाबंदी शुरू कर दी है, ताकि नाइजीरिया को वो समस्याएँ न झेलनी पड़े, जो कर्ज़ों के बोझ तले फँसकर श्रीलंका जैसे देशों को झेलनी पड़ी थी।