पिछले वर्ष आज ही के दिन सोनिया गांधी ने बतौर कांग्रेस की अन्तरिम अध्यक्ष कमान संभाली थी। इस निर्णय का प्रमुख उद्देश्य था एक ऐसे नेता को खोजना, जो काँग्रेस पार्टी की कमान संभाल सके। पर चूंकि पार्टी वंशवादियों से ही भरी हुई है, इसलिए ये उद्देश्य तो कतई पूरा नहीं हो सका। इसके कारण कई युवा कांग्रेस नेता वयोवृद्ध नेताओं की हेकड़ी के विरुद्ध विद्रोह कर बैठे हैं और कुछ ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे, भले ही इसके लिए पार्टी क्यों न त्यागनी पड़ी हो।
शशि थरूर ने इसी परिप्रेक्ष्य में अभी बताया था कि अब समय आ चुका है कि सोनिया गांधी को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त कर एक योग्य व्यक्ति को काँग्रेस की कमान सौंपने की। वरिष्ठ नेताओं के बार-बार मनाने पर भी राहुल गांधी ने बतौर पार्टी अध्यक्ष दोबारा जिम्मेदारियाँ संभालने से मना कर दिया है। ऐसे में अब एक ही व्यक्ति बचता है, जो कॉंग्रेस पार्टी की कमान संभालने योग्य है – प्रियंका गांधी वाड्रा।
सोनिया गांधी की बेटी और राहुल की छोटी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने पुराने निर्णय से आगे आते हुए 2019 में राजनीति में कदम रखा है। इस समय वे उत्तर प्रदेश में काँग्रेस पार्टी की सत्ता वापसी कराने पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं। ऐसे में किसी को कोई हैरानी नहीं होगी यदि सोनिया गांधी के पद छोड़ते ही प्रियंका गांधी को पार्टी की कमान सौंपी जाये। जब माँ वृद्ध हो चुकी हो और बड़ा भाई ज़िम्मेदारी संभालने से कतरा रहा हो, तो ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा ही पार्टी के लिए एकमात्र विकल्प बचती हैं। ऐसा लगता है मानो काँग्रेस हाइकमान इसी कार्य के लिए ताना बाना बुन रही थी, ताकि प्रियंका गांधी को जल्द से जल्द काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सके।
प्रियंका गांधी वाड्रा को निस्संदेह काँग्रेस से कोई विशेष विरोध देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि पार्टी में गांधी परिवार के किसी भी सदस्य का विरोध अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा। इसके अलावा प्रियंका को पार्टी सुप्रीमो बनाने का अर्थ है कि जो लोग इस समय पार्टी अध्यक्ष बनने का ख्वाब देख रहे हैं, उनके सपनों पर भी फुल स्टॉप लग जाएगा।
इस समय प्रियंका गांधी वाड्रा का काँग्रेस अध्यक्ष रणनीतिक रूप से एक अहम निर्णय सिद्ध हो सकता है। इन्दिरा गांधी से समानता को अलग रखें, तो काँग्रेस हाइकमान का मानना है कि प्रियंका को अध्यक्ष बनाकर पार्टी की परंपरा भी यथावत रहेगी, और इसके अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा अपने संतानों के जरिये पार्टी के भविष्य को भी संवार सकती है। उनके पुत्र रेहान वाड्रा को यूं ही पार्टी के संबोधनों और रैलियों में आमंत्रित नहीं किया जाता है, इसके पीछे एक सुनियोजित योजना भी है।
प्रियंका गांधी वाड्रा को बतौर काँग्रेस अध्यक्ष चुनने का अर्थ है कि पार्टी की कमान नेहरू गांधी वाड्रा परिवार के हाथों में ही रहेगी। गांधी वाड्रा परिवार सत्ता की भूखी है, और वह ये कदापि नहीं चाहेंगी कि उनके अलावा कोई और काँग्रेस की कमान संभाले, क्योंकि इसका खामियाजा वह पीवी नरसिम्हा राव को पार्टी की कमान सौंपकर भुगत ही चुके हैं। लेकिन जिस तरह से प्रियंका गांधी वाड्रा भाजपा के हाथों 2019 के लोकसभा चुनाव में हारी है, उससे ये देखना दिलचस्प होगा कि वह आखिर किस प्रकार से विरोधियों को मात दे पाती हैं।