अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद से पाकिस्तान पर अमेरिका की सख्ती बढ़ती गई। पहले ट्रम्प ने पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद रोकी, फिर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों के विपरीत खुलकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का साथ दिया। मोदी सरकार में भारत ने सफलतापूर्वक इस बात को स्थापित कर दिया कि पाकिस्तान वैश्विक आतंकवाद की फैक्ट्री है। अब मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान की भूमिका की जाँच शुरू कर दी है जिससे पाक प्रधानमंत्री इमरान खान की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं। पहले ही एफएटीएफ में पाकिस्तान पर ब्लैक लिस्ट होने की खतरा मंडरा रहा है और अब ये जांच उसकी परेशानियां और बढ़ाएगा।
वैसे सीरिया में अब ISIS का लगभग खात्मा हो गया है, परंतु अमेरिका द्वारा इसकी जाँच शुरू करने के पीछे का उद्देश्य ये पता करना है कि विश्व में कौन कौन से देश या संगठन इसके समर्थन में थे, जिसके दम पर ISIS इतिहास का सबसे शक्तिशाली आतंकी संगठन बन गया था। सीरिया में अमेरिका समर्थित कुर्दों की Syrian Democratic Forces के कैद में बंद 29 पाकिस्तानी मूल के ISIS आतंकियों से अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां पूछताछ कर रही है। अमेरिकी सिक्योरिटी फोर्सेज अब इन पाकिस्तानी नागरिकों से पूछताछ कर रही है और ये पता करने का प्रयास कर रही है कि उन्हें ISIS के लिए सीरिया में किसने भेजा और वो किस आतंकी समूह से सम्बंधित हैं। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इन आतंकियों में से 4 ने तुर्की और सूडान जैसे किसी अन्य देश की नागरिकता हासिल की थी, जबकी इस सूची में महिला लड़ाके भी हैं। इस जांच के जरिये अमेरिका जानने का प्रयास कर रहा है कि ये आतंकी, पाकिस्तान में पहले किसी अन्य आतंकी संगठन से जुड़े थे या नहीं, और वहां से सीरिया आने में इनकी किसने मदद की। साथ ही अमेरिकी एजेंसी पाकिस्तान सरकार और वहां की मिलिट्री के ISIS खुरासान से संबंधों की वह जांच करेंगी। बता दें की ISIS खुरासान अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन है। इसका उद्देश्य भारत और दक्षिण एशिया में अतिवादी इस्लामिक आतंक को फैलाना है।
हाल ही में गुरुद्वारे में हुए बम धमाकों में भी ISIS खुरासान का नाम सामने आया था। गौरतलब है कि इसके बाद ISIS खुरासान प्रोविन्स (ISKP) चीफ असलम फ़ारुखी को गिरफ्तार किया गया था, जो कि पाकिस्तानी मूल का है। सुरक्षा एजेंसियों को इसके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसि ISI से संबंध का पता चला है। यह ISKP से जुड़ने से पहले लश्कर ए तैयबा में सक्रिय था। यह सर्वविदित है कि लश्कर ए तैयबा पूरी तरह से पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाला आतंकी संगठन है जिसकी स्थापना पाकिस्तान ने भारत पर हमलों के लिए की थी। ऐसे में फ़ारुखी का लश्कर और ISKP से संबंधित होना यह बताता है कि ISKP के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।
TFIpost ने अपने एक लेख के माध्यम से बताया था कि कैसे आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान की राजनीति में पूर्णतः अप्रासंगिक हो चुका है। अमेरिका अपने आप को अफगानिस्तान से दूर करना चाहता है और इसके लिए वो किसी तरह अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान में समझौता करवाना चाहता है। तालिबान भी निरंतर हो रहे युद्धों को खत्म कर शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। उसकी केवल इतनी मांग है कि उसे अफगानिस्तान में प्रभावी स्थान मिले।
आज भले ही अफगानिस्तान में शांति स्थापना मुश्किल लग रही है लेकिन इतना तय है अफगानिस्तान में आज कोई भी पक्ष युद्ध का इच्छुक नहीं है। ऐसे में आज नहीं तो कल कोई न कोई ऐसा समझौता हो जाएगा जो क्षेत्र में शांति स्थापित कर पाए।
अफगानिस्तान में सभी पक्ष भारत को एक क्षेत्रीय महाशक्ति और एक पारम्परिक मित्र के रूप में देखते हैं। तालिबान भी भारत से सम्बन्ध सुधारना चाहता है, जबकि वहां की लोकतान्त्रिक सरकार तो भारत को सबसे प्रमुख सहयोगी मानती है। अमेरिका की भी इच्छा है कि भारत का यहाँ प्रभाव बना रहे जिससे चीन को इस क्षेत्र में प्रभावी होने का कोई मौका न मिले। यदि शांति स्थापित हुई तो यह अफगानिस्तान, अमेरिका और भारत तीनों के हित में है। यही पाकिस्तान को स्वीकार नहीं है।
अफगानिस्तान में पाकिस्तान लम्बे समय तक सर्वाधिक प्रभावी शक्ति रहा है। जब सोवियत रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया था तो अमेरिका ने पाकिस्तान की सहायता से ही जिहादियों की फ़ौज तैयार की थी। बाद में जब अमेरिका के तालिबान से सम्बन्ध बिगड़े और उसने अफगानिस्तान पर हमला किया तो भी इस कार्य में पाकिस्तान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आतंकवाद से युद्ध के नाम पर अमेरिका ने पाकिस्तान को खूब धन मुहैया करवाया।
ऐसे में आज के बदलते हालात में पाकिस्तान यह स्वीकार नहीं कर सकता कि भारत को अफगानिस्तान की राजनीति में उससे अधिक तवज्जो मिले। अगर शांति स्थापित हो गई तो अमेरिका से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद भी समाप्त हो जाएगी। साथ ही भारत का वहाँ प्रभावी होना, न तो पाकिस्तान और न ही उसके आका चीन के हित में है। यह समीकरण पाकिस्तान को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाएगा। यही कारण है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में ISKP को समर्थन देना शुरू किया है।
आज तालिबान का भी एक धड़ा है जो किसी भी हाल में शांति समझौते के खिलाफ है। वह भी ISKP के साथ जुड़ रहा है। लेकिन अमेरिका ने अब इस मामले की जाँच शुरू कर दी है। अमेरिका का यह कदम पाकिस्तान के इरादों पर पानी फेर देगा। यदि यह सिद्ध हो गया की पाकिस्तान के ISIS से सम्बन्ध हैं तो FATF की BLACK लिस्ट में जाने से पाकिस्तान को कोई नहीं बचा पाएगा।