कोरोना के बाद वैश्विक स्तर पर चीन को विश्व के लगभग सभी देशों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोध का सामना करना पड़ा है। परंतु कुछ ऐसे देश भी रहे हैं जो चीन के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं और चीन की करतूतों की खुलकर आलोचना की है तथा उसके खिलाफ कदम उठाने में सबसे आगे रहे हैं। ताइवान ऐसे ही देशों में से एक है लेकिन ताइवान के अलावा यूरोप का एक देश स्लोवाकिया ने जिस तरह से पिछले 3 महीने में चीन की आक्रामक नीतियों का विरोध कर धज्जियां उड़ाई है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी ताकतवर देश का विरोध करने के लिए ताकत की नहीं बल्कि हिम्मत की आवश्यकता होती है।
स्लोवाकिया मध्य यूरोप का एक छोटा सा एक देश है जिसकी आबादी 5.5 मिलियन है। अक्सर चीन में होने वाले मानवाधिकारों के हनन पर चुप रहने वाला यह देश पिछले तीन महीनों में जिस तरह से चीन के खिलाफ अपनी नीतियों को बदल कर विरोध में उतरा है तब से यह पूरे यूरोप में चीन का सबसे कट्टर आलोचक बन चुका है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि 29 फरवरी को हुये चुनाव के बाद आए सत्ता परिवर्तन है।
केवल तीन महीनों में, स्लोवाकिया की सरकार ने COVID-19 महामारी के मद्देनजर चीन के प्रोपोगेंडा और मास्क डिप्लोमेसी पर आपत्ति जताई, चीन को पंचेन लामा और अन्य राजनीतिक कैदियों को रिहा करने को कहा, WHO में ताइवान की सदस्यता का समर्थन किया, तथा चीन का हॉन्ग कॉन्ग में लाये गए सुरक्षा कानून का खुलकर विरोध किया।
हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर तो Sino-British Joint Declaration को भंग करने वाले चीन के खिलाफ संयुक्त बयान देने वाले National Council और European Parliament के समूहों में सबसे बड़ा समूह स्लोवाकिया का ही था। यह देश चीन के विरोध में किस तरह से सबसे आगे आया यह इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्लोवाकिया चीन के खिलाफ हसस्ताक्षर करने में अमेरिका, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया से भी आगे था।
जब चीन ने हाँगकाँग में सुरक्षा कानून लागू कर दिया गया तब स्लोवाकिया संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 27 देशों में से एक था, जिसने चीन द्वारा कानून को अपनाने पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि संयुक्त बयान पर सह-हस्ताक्षर करने के लिए मध्य यूरोप के क्षेत्र से स्लोवाकिया एकमात्र देश था।
बता दें कि वर्ष 2020 से पहले स्लोवाकिया के लिए चीन के मानवाधिकार मुद्दे केवल राजनीति का विषय था। तब न तो स्लोवाकिया चीन के खिलाफ आवाज उठाता था और न ही कोई एक्शन लेता था। यहाँ तक कि जब वर्ष 2009 में, चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ ने स्लोवाकिया का दौरा किया, तब कई एक्टिविस्टों ने तिब्बत में हो रहे मानवाधिकार के हनन का विरोध किया था, लेकिन तब की सरकार ने चीन समर्थकों के साथ झड़प के बाद एक्टिविस्टों को ही गिरफ्तार कर लिया था। इसी तरह के और भी कई अवसरों पर स्लोवाकिया की सरकार को चीन का का पक्ष लेते हुए देखा गया था। परंतु अब हालात बादल चुके हैं और अभी चीन के खिलाफ दृष्टिकोण में परिवर्तन दो कारण है। पहला स्लोवाकिया में राजनीतिक परिवर्तन और दूसरा COVID-19 महामारी।
इसी वर्ष 29 फरवरी को स्लोवाकिया में चुनाव हुये थे जहां सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी जो लगभग 15 वर्षों तक स्लोवाकियां की राजनीति पर हावी रही थी और चीन के खिलाफ बोलने से हिचकिचाती थी, उसकी हार हुई। अब इस देश में liberal, center-right, and populist parties के गठबंधन की सरकार है जिसका नेतृत्व Igor Matovič कर रहे हैं जिन्हें centre-right नेता माना जाता है।
इसके अलावा वहाँ की राष्ट्रपति Zuzana Čaputová की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नैतिक नेतृत्व के लिए जानी जाती है जो चीन के खिलाफ पहले भी बोल चुकी है। अब चीन विरोधी सरकार बनने के बाद स्लोवाकिया के लिए चीन के खिलाफ प्रखर होना आसान हो गया जिसका परिणाम हमें पिछले तीन महीनों में देखने को मिला है। इस देश की चीन पर आर्थिक निर्भरता भी पूरे यूरोप में सबसे कम है।
यही कारण है कि स्लोवाकिया में चीन द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर विरोध के लिए राजनीतिक सहमति बन चुकी है। इन्हीं कारणों से स्लोवाकिया यूरोप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे गंभीर और प्रखर आलोचकों में से एक बन सकता है। अंतराष्ट्रीय समुदाय को इस देश का खुलकर साथ देना चाहिए जिससे चीन पर और अधिक दबाव बनाया जा सके।