चाइनीज वायरस ने तोड़ी यूरोप की आर्थिक रीढ़, इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक मंदी की ओर यूरोपीय देश

अर्थव्यवस्था

कोरोना के कारण Eurozone की अर्थव्यवस्था को बेहद करारा झटका लगा है। यूरोपियन यूनियन के 27 सदस्यों में से 19 सदस्यों का Monetary Union यानि Eurozone की अर्थव्यवस्था में 12.1 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है। बता दें कि Eurozone की अर्थव्यवस्था लगातार दूसरी बार सिकुड़ी है। पहली तिमाही में इसमें 3.6 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी। अब दूसरी तिमाही में हालात और भी खराब हो गए हैं। संकेत साफ हैं- यह क्षेत्र आर्थिक मंदी की पकड़ में आ चुका है।

बता दें कि पिछले वित्त वर्ष में Eurozone की अर्थव्यवस्था 12 ट्रिलियन यूरोज थी। इसमें 12.1 प्रतिशत की कमी आने का मतलब है कि यह 145 बिलियन यूरोज या कहिए 170 बिलियन डॉलर सिकुड़ गयी है। यह ग्रीस की वार्षिक GDP के बराबर है। आसान भाषा में कहें तो आर्थिक पहलू पर Eurozone ने इस साल ग्रीस के बराबर एक देश को खो दिया है। अगर तिमाही के आधार पर देखें तो Eurozone ने इस तिमाही Poland के आकार का एक देश खो दिया।

इस तिमाही में स्पेन की अर्थव्यवस्था 18.5 प्रतिशत तक गिर गयी, जबकि पहले छः महीनों में कुल गिरावट 22 प्रतिशत की रही है। एक्स्पर्ट्स के मुताबिक इस तरह की गिरावट युद्ध के बाद ही देखी जाती है। सिर्फ एक कृषि क्षेत्र ही ऐसा क्षेत्र था जिसने सकारात्मक वृद्धि दर  हासिल की।

दूसरी ओर फ्रांस की अर्थव्यवस्था को भी जोरदार झटका पहुंचा। पहली तिमाही में इस यूरोपीय देश की अर्थव्यवस्था 13.8 प्रतिशत तक सिकुड़ गयी, जबकि पहले छमाही में इसमें 19 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली।

इटली की अर्थव्यवस्था का भी यही हाल रहा। कोरोना काल से पहले ही इस देश की इकॉनमी मंदी के संकेत दे रही थी। जून की तिमाही में इस देश की अर्थव्यवस्था 12.4 प्रतिशत तक सिकुड़ गयी। इसका अर्थ है कि इस दशक में इटली चौथी आर्थिक मंदी का शिकार हो चुका है। 10-12 सालों में ऐसा चौथी बार हो रहा है कि इटली की अर्थव्यवस्था ने लगातार दो तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर हासिल की है।

जर्मनी की इकॉनमी ने इन देशों के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। पहले छः महीनों में इस देश की अर्थव्यवस्था केवल 12 प्रतिशत तक ही सिकुड़ी है। हालांकि, जर्मनी के लिए यहाँ खुश होने वाली कोई बात नहीं है, क्योंकि अब EU के अधिकतर देश जर्मनी पर उनको आर्थिक सहायता प्रदान करने का दबाव बना रहे हैं। अगर जर्मनी ऐसा नहीं करता है तो ये देश EU को हमेशा के लिए छोड़ भी सकते हैं। इटली जैसे देशों में पहले ही Brexit की तर्ज पर Itaxit की मुहिम को बढ़ावा मिलना शुरू हो गया है। हालांकि, आर्थिक पैकेज को लेकर जर्मनी का रुख अभी तक निराशाजनक ही रहा है। मर्कल सरकार के अधिकतर नेता इस बात से सहमत नहीं है कि जर्मनी के करदाताओं का पैसा स्पेन, इटली और ग्रीस जैसे देशों पर खर्च कर दिया जाए।

आसान भाषा में कहें तो यूरोपियन यूनियन पर दो बड़ी समस्याएँ हावी होती दिखाई दे रही हैं। एक है आर्थिक समस्या और दूसरी है संगठन की समस्या। अगर EU आर्थिक मोर्चे पर फेल होता है, तो EU सामाजिक और संगठन मोर्चे पर भी विफल हो जाएगा। जर्मनी और आर्थिक मंदी झेल रहे देशों के बीच बढ़ती दूरी EU में बड़े बदलाव लेकर आ सकती है। इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कोरोना महामारी के बाद यूरोपियन यूनियन में बड़ी फूट देखने को मिल सकती है।

 

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