सिलेबस कम करना, नई शिक्षा नीति और JEE/NEET- अपने नाम की तरह “निशंक” बिना शंका के काम किए जा रहे हैं

“एक बार मैंने जो Commitment कर दी, उसके बाद तो मैं खुद की भी नहीं सुनता”

निशंक

हाल ही में एक अहम निर्णय में कर्नाटक सरकार ने एक चैप्टर को कक्षा छह के पुस्तकों से हटाने का निर्णय लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह चैप्टर सामाजिक विज्ञान के पुस्तक से जुड़ा हुआ था, और इसमें सनातन संस्कृति के प्रतीकों का उपहास उड़ाया गया था, जिसमें यज्ञ की रीति भी शामिल थी। ऐसे में इस कुत्सित चैप्टर को हटाकर कर्नाटक सरकार ने एक बेहतरीन मिसाल पेश की है।

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक के सामाजिक विज्ञान के कक्षा छह की पुस्तक में एक चैप्टर ऐसा था, जिसमें यज्ञ को अपमानित किया गया और सनातन संस्कृति की कुछ मान्यताओं का उपहास उड़ाया गया था। इससे क्रोधित होकर उडुपी के Admar मठ से जुड़े Eshapriya Theertha Swami कर्नाटक के शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार के पास पहुंचे और उन्हें इस मामले से अवगत कराया, जिसके बाद सुरेश कुमार ने तत्काल प्रभाव से एक्शन लेते हुए इस विवादित चैप्टर को सिलेबस से हटवाया।

परंतु ठहरिए। आपको क्या लगता है, ये निर्णय कर्नाटक सरकार ने यूं ही लिया है? बिलकुल नहीं, ये एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसके पीछे कोई और नहीं, बल्कि देश के वर्तमान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ है। शिक्षा मंत्री ‘निशंक’ ने पिछले कुछ महीनों में ऐसे निर्णय लिए हैं, जिससे ये सिद्ध होता है कि उनका स्वभाव ठीक उनके उपनाम के अनुरूप है – बिना किसी शंका के निर्णय लेना।

पर ऐसा कैसे हो सकता है? इसके लिए हमें जाना होगा कुछ माह पूर्व, जब रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने सीबीएसई के सिलेबस में वुहान वायरस की महामारी के चलते कुछ बदलावों को स्वीकृति दी थी। जुलाई माह में केन्द्रीय सेकेन्डरी शिक्षा बोर्ड यानि सीबीएसई ने वुहान वायरस के चलते पाठ्यक्रम में कुछ अहम बदलाव किए , जिसमें से एक था जाति और सेक्युलरिज़्म जैसे शब्दों का हटाया जाना, और ये निर्णय एक साल के लिए वैध होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टरी से परामर्श के बाद सीबीएसई ने यह निर्णय लिया, ताकि सीबीएसई के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों को थोड़ी राहत मिल सके। निर्णय के अनुसार कम से कम 30 प्रतिशत तक कोर्स लोड को घटाने को कहा गया। नए सिलेबस में सेक्युलरिज़्म, जातिवाद इत्यादि से जुड़े चैप्टर कक्षा 11 के पाठ्यक्रम से हटाये गए हैं। इसके अलावा विभाजन को समझना, जैसे कई अन्य चैप्टर हटाये गए हैं। ये निर्णय एक वर्ष के लिए वैध रहेगा, और एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के अनुसार ये निर्णय इसलिए लिया गया है, ताकि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम रहे। इसके अलावा एचआरडी मंत्री ने कोर कॉन्सेप्ट को पढ़ाने पर अधिक ज़ोर दिया है।

प्रारम्भ में कुछ ठोस निर्णय नहीं आने के कारण रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ विवादों के घेरे में रहते थे। लेकिन इस एक निर्णय से उन्होंने सिद्ध कर दिया कि जब उन्होंने कुछ तय किया है, तो उसे पूरा करके ही दम लेंगे। इस नीति का एक बेजोड़ उदाहरण तब देखने को मिला जब ‘निशंक’ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत की शिक्षा नीति को अंग्रेज़ी दासता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए एक स्पष्ट और असरदार योजना का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

इस अहम बदलाव के संकेत जून में ही दिख गए थे, जब तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टरी ने NCERT को निर्देश दिया कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाए कि तथ्यों के अलावा उसमें और कुछ बदलाव न हो। यानि स्पष्ट है कि तथ्यों में बदलाव किए जाएंगे। NCERT में जिस स्तर से लिखा गया है और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है उससे इस तरह के निर्देश आवश्यक थे। इसके साथ ही मंत्रालय ने कहा है कि पाठ्यपुस्तकों में अतिरिक्त चीजें जैसे रचनात्मक सोच, जीवन से जुड़े कौशल, भारतीय संस्कृति, कला आदि को शामिल किया जाना चाहिए।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि NCERT की किताबों में इससे पहले सिर्फ पांच बार यानि 1975, 1988, 2000 और 2005 में बदलाव किया गया है। 2005 में किए गए बदलाव में कांग्रेस के घरेलू इतिहासकारों का खूब योगदान था। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई नई किताबों और सिलेबस में विदेशी आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों को सभ्य शासकों के रूप में दिखाने और वैदिक सभ्यता और भारतीय महानायकों  का अस्तित्व मिटाने के लिए किया गया था।

जिस तरह से NCERT में आक्रांताओं का गुणगान किया गया उनमें सबसे हास्यास्पद औरंगज़ेब के बर्बर शासन को धर्मनिरपेक्ष बनाने का प्रयास है। औरंगजेब के काले कारनामों और अत्याचारों को छिपाने के लिए फ्रांसीसी यात्री फ्रेंकोइस बर्नियर का सहारा लिया गया है जो औरंगज़ेब के दरबार में एक चिकित्सक था। इसी तरह भारतीय ग्रन्थों जैसे मनुस्मृति और वेदों को गलत तरीके से दिखाया गया है जिससे भारत के इस अद्वितीय ज्ञान के भंडारों के प्रति युवाओं में एक हीन भावना पैदा हो जाए। NCERT ने प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों को इस तरह से दिखाने का प्रयास किया गया है जैसे भारतीय ग्रन्थों में महिलाओं की स्वतन्त्रता थी ही नहीं। हिंदू धर्मग्रंथों की सामग्री को तोड़-मरोड़ कर  ब्राह्मण जाति को विशेष रूप से  निशाना बनाने के लिए पेश क्या जाता रहा है।

परंतु नई शिक्षा नीति में इस ब्रिटिश साम्राज्यवाद कालीन मानसिकता को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। नई  शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से शुरू होगी। सरकार ने नई शिक्षा नीति में इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाये। इसके अलावा स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 की नई पाठयक्रम संरचना लागू की जाएगी जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए होगी। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है। इतना ही नहीं, एचआरडी मिनिस्टरी जैसे जटिल नाम को हटाकर शिक्षा मंत्रालय का नाम आधिकारिक रूप से इस विभाग को दिया है, जिसके अंतर्गत पहले एचआरडी मंत्री रहे निशंक अब भारत के शिक्षा मंत्री होंगे।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकती है। अभी हाल ही में वुहान वायरस के परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने NEET यानि मेडिकल प्रवेश परीक्षा और IIT JEE यानि IIT प्रवेश परीक्षा पर रोक लगाने से मना किया था। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार विद्यार्थियों का भविष्य और बर्बाद नहीं किया जा सकता है, हालांकि ये परीक्षा कब और कैसे होंगी, यह राज्य सरकारों के ऊपर निर्भर करेगा। इससे नाराज़ होकर समाजवादी गुटों ने हो हल्ला मचाने का प्रयास किया, और ‘मानवता’ के नाम पर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का घटिया प्रयास किया। यह अभियान कितना घृणित और कुत्सित था, इसका अंदाज़ा तभी हो गया जब कथित पर्यावरणविद ग्रेटा थंबर्ग भी इस विवाद में कूद पड़ी, और मोदी सरकार को तानाशाही करार देने का प्रयास किया।

परंतु शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने समाज के इन ठेकेदारों की एक न सुनी। यदि वे चाहते तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को चुनौती दे सकती थी, परंतु उन्होंने ऐसा न करके लाखों विद्यार्थियों के भविष्य को गर्त में जाने से बचा लिया। निस्संदेह वुहान वायरस एक भयानक महामारी रही है, लेकिन इसकी आड़ में अनिश्चितकाल तक विद्यार्थियों की परीक्षा स्थगित तो नहीं कर सकते। ऐसे में जिस प्रकार से कर्नाटक ने सनातन विरोधी चैप्टर को हटाया है, उसमें वर्तमान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की ‘निशंक’ नीति की झलक अवश्य दिखती है।

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