इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्वोत्तर दिल्ली में जो दंगे भड़काए गए थे, उसमें काफी हद तक शाहीन बाग से जुड़े कई कार्यकर्ता भी शामिल थे। दिल्ली पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन ग्रुप को सौंपे गए बयान में ताहिर ने स्वीकार किया है कि ये दंगे उसी के द्वारा रचे गए थे और उसे जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद जैसे ‘तथाकथित बुद्धिजीवियों’ का समर्थन भी प्राप्त था।दरअसल दिल्ली पुलिस को दिए गए बयान में निष्काषित आप पार्षद ताहिर हुसैन ने बताया कि कैसे उसने पूरे दंगे की योजना तैयार की थी ताकि हिंदुओं को सबक सिखाया जा सके।
हुसैन ने यह भी बताया कि उसने अपने धन और अपने राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए ये खेल रचा। लेकिन बात केवल ताहिर हुसैन तक ही सीमित नहीं थी। स्वयं ताहिर हुसैन ने बताया कि कैसे उसने जेएनयू के पूर्व छात्र और सूडो-सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार, उमर खालिद और खालिद सैफी के साथ उसने पूर्वोत्तर दिल्ली को जलाने का खाका बुना। ताहिर हुसैन के अनुसार 8 जनवरी 2020 को वह शाहीन बाग में स्थित पीएफ़आई के दफ्तर में उमर खालिद से मिला था। ताहिर हुसैन के अनुसार वह अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान निरस्त होने और श्री रामजन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण के साथ केंद्र सरकार द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित होने से गुस्सा था और हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहता था।
उमर खालिद ने ताहिर हुसैन को ये भरोसा दिलाया कि जामिया मिलिया इस्लामिया के जेसीसी के अलावा कई मुस्लिम संगठनों का भरपूर साथ मिलेगा। ताहिर हुसैन ने ये भी बताया कि कैसे इन दंगों के लिए पूरा ताना बाना बुना गया। हिन्दू विरोधी दंगों से महीनों पहले ताहिर हुसैन ने शराब और कोल्ड ड्रिंक के खाली बोतल, निर्माण स्थलों से पत्थर वगैरह इकट्ठा कर चाँद बाग में स्थित अपने घर पर जमा करने लगा इसके अलावा उसने बताया कि कैसे उमर खालिद की सलाह पर हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए तेज़ाब का इस्तेमाल किया।
ताहिर हुसैन के अनुसार, “सबको अलग अलग काम दिये गए थे। जहां सैफी को भीड़ इकट्ठा करनी थी, मुझे काँच की बोतलें, तेज़ाब और पेट्रोल की व्यवस्था करनी थी।” उसने ये भी बताया- “4 फ़रवरी को यह तय हुआ कि सीएए विरोधी प्रदर्शन में आने के लिए लोगों को भड़काना होगा। ख़ालिद सैफ़ी का काम लोगों को भड़का कर सड़कों पर उतारने का था। ख़ालिद सैफ़ी ने कहा था कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे (17 फ़रवरी) के समय कुछ तो बड़ा करना होगा ताकि मौजूदा सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया जा सके।”
अब ताहिर हुसैन की स्वीकारोक्ति से इतना तो स्पष्ट हो चुका है कि ना तो शाहीन बाग का प्रदर्शन शांतिपूर्ण लक्ष्य के लिए था और ना ही जफ्फराबाद का। ये सभी प्रदर्शन पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काने के लिए दंगाइयों के बेसकैंप थे। ताहिर हुसैन ने जिस तरह पीएफ़आई, जेएनयू के इस्लामी गुट और जामिया कोओर्डिनेशन कमेटी इत्यादि का सहयोग लेते हुए शाहीन बाग की आड़ में दिल्ली के दंगों का ताना-बाना बुना, उससे स्पष्ट पता चलता है कि किस तरह ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण नहीं बल्कि सुनियोजित आतंकी हमलों कि तयारी थी। ऐसे लोगों को अब किसी भी प्रकार का समर्थन देना पागलपन से कम नहीं होगा और यह कहना गलत नहीं होगा कि इन सभी व्यक्तियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। यदि ऐसे लोगों को छोड़ा गया, तो देश में पूर्वोत्तर दिल्ली जैसे दंगे होते रहेंगे और बेकसूरों की जानें जाती रहेंगी।