‘सेनकाकू पर ताइवान का अधिकार है’, इस दावे के पीछे ताइवान की बड़ी रणनीति

चीन और जापान के तनाव के बीच ताइवान का सटीक निशाना

सेनकाकू

लंबे समय तक चीन के दबाव के कारण दुनिया ताइवान के मुद्दे पर शांत रुख अपनाए हुए थे। किंतु कोरोना वायरस के फैलाव और चीन की सरकार की अपारदर्शिता के कारण चीन के प्रति जो गुस्सा दुनिया में है वह ताइवान के लिए, दुनिया के रुख को बदलने का अवसर लेकर आया है। ताइवान ने इस अवसर का इस्तेमाल दुनिया में अपने लिए समर्थन बढ़ाने हेतु किया है।

चाहे भारत की बात करें या अमेरिका की, चीन के विरुद्ध खड़ा हर देश आज ताइवान के अधिक नजदीक आ रहा है। भारत में जहां ताइवान के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है वहीं, अमेरिका ने भी ताइवान के साथ F16 फाइटर एयरक्राफ्ट का समझौता किया है।

इसी बीच ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने अपने एक चौकाने वाले बयान में सेनकाकू द्वीप पर ताइवान के पारंपरिक अधिकार की बात कही है। उनका बयान उस समय आया था जब हाल ही में सेनकाकू के मुद्दे को लेकर कम्युनिस्ट चीन और जापान के बीच तनाव बढ़ गया था। अपने बयान में ताइवान की राष्ट्रपति ने जापान की कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा था “ताइवान सेनकाकू का वैध मालिक है और सरकार द्वीप पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करने की पूरी कोशिश करेगी”।

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार इसे गलत कूटनीति और अति राष्ट्रवाद में उठाया गया कदम बता रहे हैं। किंतु ताइवान के राष्ट्रपति ने यह कदम अति राष्ट्रवाद के कारण ना उठाकर एक सोची समझी रणनीति के तहत उठाया है। उनके कदम के मायने समझने के लिए ताइवान और सेनकाकू के संबंध को समझना जरूरी है।

बता दे कि सेनकाकू द्वीप लंबे समय से कम्युनिस्ट चीन और जापान के बीच विवाद का कारण रहा है। ताइवान जो कि खुद वास्तविक चीन कहता है, उन सभी क्षेत्रों पर अपने अधिकार की वकालत कर रहा है जिन पर आज कम्युनिस्ट चीन का कब्जा है या जिन्हें कम्युनिस्ट चीन विवादित क्षेत्र मानता है। इसी आधार पर ताइवान के राष्ट्रपति ने सेनकाकू द्वीप पर भी अपने अधिकार की बात कही थी।

इसके पीछे ताइवान की राष्ट्रपति की योजना यह है कि यदि सेनकाकू को लेकर कम्युनिस्ट चीन और जापान के बीच भविष्य में कोई संघर्ष होता है तो ऐसी स्थिति में ताइवान सेनकाकू पर जापान के अधिकार को स्वीकृत कर लेगा इसके बदले में जापान से ताइवान को अलग देश के रूप में स्वीकार करने का समझौता किया जा सकता है।

2016 में जब साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनी थीं तब जापान में United States Marine Corps के राजनीतिक सलाहकार Robert D। Eldridge ने Japan Times में एक लेख लिखा था “ताइवान हमेशा के लिए सेनकाकू द्वीप पर जापान की स्थिति को समर्थन देता है तो इसके बदले जापान भी ताइवान को मान्यता दे सकता है। अमेरिका और ताइवान की अपेक्षा ताइवान और जापान के संबंध इतिहासिक रूप से अधिक घनिष्ठ हैं।” इस लेख में आगे ताइवान की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को लोकतंत्रों से समर्थन हासिल करने की अपील की गई थी। ऐसा लगता है कि साई इंग वेन सही अवसर की तलाश में थी जो कोरोना के फैलाव के बाद मिल पाया है।

बता दें कि इसके पूर्व चेक रिपब्लिक ने भी ताइवान के साथ अपने आधिकारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए कार्य शुरू किया है। चेक रिपब्लिक का 80 सदस्यों का एक दल ताइवान के दौरे पर है। इसमें वहां के संसद के अध्यक्ष Milos Vystrcil और चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग शहर के मेयर Zdenek Hrib  भी शामिल हैं। चीन के विरोध के बावजूद न सिर्फ इस दल ने ताइवान का दौरा किया है बल्कि ताइवान के विदेश मंत्री ने एयरपोर्ट जाकर इसका आधिकारिक स्वागत भी किया था।

इसके पूर्व अफ्रीका के एक देश सोमालीलैंड ने भी ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध स्थापित किए हैं। सोमालीलैंड 1991 में स्वतंत्र होकर अलग देश बना था, किंतु ताइवान की तरह इसे भी दुनिया के अधिकतर देश मान्यता नहीं देते हैं।

अमेरिका ने भी Taiwan Allies International Protection and Enhancement Initiative (TAIPEI) Act द्वारा ताइवान को अतंर्राष्ट्रीय समर्थन दिलाने हेतु प्रयास शुरू कर दिये हैं।

ऐसे में यदि जापान ताइवान के समर्थन में आ जाता है तो ताइवान के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। ताइवान जो कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा पूर्वी एशिया की सबसे बड़ी शक्ति है, उसका ताइवान के लिए समर्थन एशिया में ताइवान के लिए और अधिक अवसर पैदा करेगा। जापान QUAD का संस्थापक सदस्य रहा है ऐसे में उसका ताइवान को समर्थन देना ताइवान के लिए QUAD के दरवाजे खोल सकता है। ऐसे में सेनकाकू को लेकर राष्ट्रपति साई इंग वेन की नीति सफल हुई तो ताइवान को बहुत लाभ मिलेगा।

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