असम में होने वाले 2021 विधानसभा के चुनावों के लिए राजनैतिक पार्टियां दांव-पेंच शुरू कर चुकी हैं। इसी क्रम में असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने मंगलवार 18 अगस्त को यह घोषणा की थी कि, इस बार वो ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रटिक फ्रंट यानी AIUDF से भी गठबंधन करने को तैयार हैं। लेकिन उनकी इस घोषणा से असम कांग्रेस के अंदर दो फाड़ होने जा रहा है। एक तरफ जहां अभी तक AIUDF से दूरी बनाए रखने वाले तरुण गोगोई इस बार चुनावों में AUIDF के साथ खुले तौर पर गठबंधन करना चाहते हैं तो वहीं असम कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता इस फैसले से नाराज हैं। उनका कहना है कि, इस गठबंधन से कांग्रेस को राज्य में और ज्यादा नुकसान हो सकता है। असम कांग्रेस में यह विरोध इतना बढ़ चुका है कि इन नेताओं ने कांग्रेस हाई कमान को इस मामले में पत्र लिख कर असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा को हटाने तक की मांग कर दी है।
दरअसल, 18 अगस्त को पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि, अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए AIUDF सहित सभी गैर भाजपा दलों को एक महागठबंधन बनाना चाहिए। उन्होंने कहा, ”हम राज्य में भाजपा सरकार की हार सुनिश्चित करने के लिए AIUDF और वाम दलों सहित अन्य दलों से बात करेंगे।” तरुण गोगोई को राज्य कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा और वरिष्ठ नेता रॉकीबुल हुसैन का भी समर्थन मिला।
हालाँकि, इस फैसले से अब कांग्रेस के अन्य नेता नाराज हो चुके हैं और चुनाव से पहले ही कांग्रेस के दो हिस्से हो गए हैं। उनका मानना है कि यदि AIUDF को एक भागीदार के रूप में पेश किया जाता है, तो राज्य भर में हिंदू मतदाता कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मतदान करेंगे। असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवव्रत सैकिया, प्रद्युत बोरदोलोई, भूपेन बोरा, राणा गोस्वामी और अब्दुल खालेक सहित असम कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने एक अलग बैठक करते हुए पार्टी आलाकमान को नेतृत्व परिवर्तन के लिए औपचारिक अनुरोध भेजने का फैसला किया है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि AIUDF और उसके अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल का सबसे ज्यादा प्रभाव असम में रहने वाले बांग्लादेशियों पर है। अजमल का यह शुरू से ही बयान रहा है कि बंगाली बोलने वाले मुस्लिम बंगलादेशी नहीं हैं। उन्हीं बांग्लादेशियों के दम पर AIUDF चुनाव जीतती है। एक समय में बदरुद्दीन अजमल के समर्थन को नकारने वाले तरुण गोगोई आज अजमल के समर्थन में उतर चुके हैं।
बता दें कि जब वर्ष 2006 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 126 सीटों में से 53 पर जीत मिली थी और उसे बहुमत के लिए 10 सीटों की आवश्यकता और थी। उस दौरान बदरुद्दीन अजमल की AIUDF और Bodoland People’s Front (BPF) दोनों को 10-10 सीटें प्राप्त हुई थीं। तब तरुण गोगोई ने राज्य के हिन्दू मतदाताओं में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए AIUDF से गठबंधन न कर के Bodoland People’s Front (BPF) से गठबंधन किया था। यहाँ गौर करने वाली बात ये है उस समय AIUDF केंद्र में UPA सरकार की सहयोगी थी। तरुण गोगोई ने ये कदम उठाया था ताकि असम में कांग्रेस की छवि मुस्लिम तुष्टिकरण वाले दल जैसी ना बने।
यह विडम्बना ही है कि तब तरुण गोगोई ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए जिस AIUDF को नकार दिया था, वो आज उसी AIUDF के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि, अब कांग्रेस और तरुण गोगोई यह समझ चुके हैं कि बिना अवैध बांग्लादेशियों के वोट के वो चुनाव नहीं जीत सकते हैं।
वर्ष 2016 विधानसभा चुनावों से भी पहले भी प्रशांत किशोर और नितीश कुमार ने कांग्रेस को बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाली AIUDF और असम की स्थानीय पार्टी असम गण परिषद(AGP) के बीच RJD-JDU के तर्ज पर गठबंधन बनाने की महत्वाकांक्षी योजना पेश की थी जिससे असम में BJP को सत्ता में आने से रोका जा सके। लेकिन तब भी कांग्रेस और तरुण गोगोई ने इस गठबंधन से जुड़ने के लिए मना कर दिया था। उस दौरान तरुण गोगोई ने कहा था, “मैंने स्पष्ट रूप से कहा है कि AIUDF के साथ सीट साझा या गठबंधन नहीं होगा।” हालांकि चुनावों में BJP ने शानदार जीत हासिल की और कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।
ऐसा लगता है कि, अब तरुण गोगोई को उनकी गलती अब समझ में आ गई है और अब वो AIUDF तथा वाम दलों के साथ मिल कर महागठबंधन बनाना चाहते हैं। कांग्रेस की शुरू से प्रो मुस्लिम नीति ही रही है जिसे तरुण गोगोई छिपाते आए थे। अब उन्होंने भी दिखावटी चोगा उतार फेंका है और अपना असली रंग दिखाते हुए किसी भी तरह से वोट बैंक तैयार करना चाहते हैं, चाहे वो वैध हो या अवैध।
पर उनकी इस मांग से कांग्रेस पार्टी ही बंट गयी है। एक तरफ तरुण गोगोई और रिपुन बोरा का गुट है, तो दूसरी तरफ अन्य वरिष्ठ नेताओं का गुट। चुनाव से कुछ ही महीनों पहले पार्टी के नेतृत्व में इस तरह की भयंकर दरार आना, कांग्रेस के राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने की अक्षमता के बारे में बताता है। अब जबकि असम कांग्रेस पूरी तरह से विभाजित नजर आ रही है, भाजपा चुनावों की तैयारियों को चौथे गियर में डाल कर एक बार फिर से सत्ता में आने के लिए तैयार है।