‘ये डील हमारे लिए खतरा है’, UAE-Israel के समझौते से सबसे ज्यादा नुकसान तुर्की को होने वाला है

लूजर तुर्की!

यूएई

रेसेप तय्यिप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdoğan) के शासन में तुर्की की हालात खराब होने लगी है। एर्दोगन चाहते हैं वो कि इस्लामिक जगत का निर्विरोध बादशाह बने, पर पाकिस्तान को छोड़ उसे कोई देश अपना समर्थन नहीं देता। वह पूर्वी मेडिटेरेनियन में अपना वर्चस्व जमाना चाहता है, पर उसका सामना केवल ग्रीस से नहीं, अपितु फ्रांस, इज़राइल, साइप्रस और तो और यूएई से भी है। अब स्थिति तो यह हो गई है कि यूएई और इज़राइल डील पर हुए शांति समझौते से तुर्की किसी दिलजले आशिक की तरह अपना सुध-बुध खो बैठा है, और इस बात को जताने का कोई अवसर तुर्की हाथ से जाने नहीं देता।

दरअसल, अभी हाल ही में एक अहम बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूएई और इज़राइल के बीच एक शांति समझौता सम्पन्न कराने में सहायता की। इस शांति समझौते के बाद अब यूएई और इज़राएल के बीच सात दशकों से चल रहे संघर्ष पर पूर्ण विराम लग चुका है। लेकिन इस शांति समझौते से कुछ देशों को विशेष तकलीफ हो रही है, जिसमें तुर्की सबसे अग्रणी है।

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने UAE की जमकर आलोचना करते हुए UAE के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने की बात कही है। तुर्की के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा “फिलिस्तीन, वहां के लोग और इतिहास, इजरायल के साथ समझौता करने लिए UAE के पाखंडी व्यवहार को कभी नहीं भूलेंगे और न ही माफ करेंगे। UAE ने हमारे साथ धोखा किया है। यूएई ने फिलिस्तीनी हितों को छोड़कर अपने संकीर्ण हित को प्राथमिकता दी है”। बता दें कि, व्यावसायिक हितों के लिए तुर्की ने इज़रायल के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों को पहले से ही स्थापित किया हुआ है। ऐसे में इज़रायल के साथ राजनायिक संबंध स्थापित करने के लिए तुर्की द्वारा UAE का त्याग करने की धमकी देना तुर्की के ही पाखंड को दर्शाता है।

तुर्की तो इतना घबरा चुका है कि उसने अब अपने आप को इस शांति समझौते का प्रमुख निशाना समझना शुरू कर दिया है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि तुर्की ने खुद स्वीकारा है। तुर्की के सरकार का मुखपत्र माने जाने वाला न्यूज़ पोर्टल डेली सबा के अनुसार यूएई और इज़राइल ने इसलिए शांति समझौता किया है ताकि भविष्य में तुर्की को निशाना बनाया जा सके और उसे किसी भी मोर्चे पर हराया जा सके।

लेकिन तुर्की का डर पूरी तरह अनुचित भी नहीं है। पूर्वी मेडिटेरेनियन में उसकी गुंडई से इज़राइल अनभिज्ञ नहीं है, और तुर्की के वास्तविक इरादों से भली भांति परिचित होकर उसके विरुद्ध मोर्चा खोल चुका है। द टाइम्स के लेख में बताया गया, “मोसाद के अफसर कोहेन का मानना है कि, इरान अब पहले जैसा खतरनाक नहीं रहा, क्योंकि उसे किसी ना किसी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन तुर्की की कूटनीति अलग है और उसके दांव पेंच ऐसे हैं, कि उसे पकड़ना आसान नहीं है। इसी का फ़ायदा उठाकर वह पूर्वी मेडिटेरेनियन में अपना वर्चस्व जमा रहा है।”

इतना ही नहीं, यूएई और इज़राइल के बीच शांति समझौता होने का अर्थ है कि अब ये दोनों ही देश एक दूसरे की हरसंभव सहायता करने में सक्षम होंगे। ऐसे में यदि तुर्की ने ज़रा भी गड़बड़ करने की कोशिश की, तो उसे दोनों ही देश पटक-पटक के धोने के लिए पूरी तरह से तैयार है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यूएई और इज़राइल के बीच हुए शांति समझौते ने तुर्की की हालत ऐसी कर दी है कि अब उससे न निगलते बन रहा है और न ही उगलते।

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