जैसे-जैसे अमेरिका के आम चुनाव निकट आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे वहाँ के लोगों की, विशेषकर अमेरिकी मीडिया की बेचैनी बढ़ती जा रही है। डेमोक्रेट उम्मीदवार और पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए भारी बहुमत का अनुमान लगाने के बाद अब अधिकांश चैनलों, विशेषकर सीएनएन ने अचानक से ट्रम्प की अप्रूवल रेटिंग्स बढ़ा दी हैं।
इसपर हैरानी जताते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्वीट क्या, “ये सीएनएन पोल को क्या हुआ है? इतने कम समय में अचानक से मेरी रेटिंग कैसे बढ़ा दी? फॉक्स न्यूज़ से टक्कर लेनी है क्या?” इसमें कोई दो राय नहीं है कि ट्रम्प सीएनएन की खिंचाई कर रहे हैं, परंतु सीएनएन समेत अमेरिकी मेन स्ट्रीम मीडिया 3 नवंबर को होने वाले आम चुनाव के लिए अभी से ही खाका बुन रहे हैं।
What’s with @CNN POLLS increasing me by 10 points in a short period of time. Maybe they want to take over from @FoxNews!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) August 17, 2020
दरअसल, सीएनएन समेत अमेरिकी मीडिया वो गलती दोबारा नहीं दोहराना चाहती, जिसके कारण उन्हें 2016 में उपहास का पात्र बनना पड़ा था। तब उन्होंने डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के लिए प्रचंड बहुमत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन अंत में कौन विजयी हुआ, सभी जानते हैं। ऐसे में वामपंथी मीडिया वही भावना रिपब्लिकन वोटर्स में जागृत करना चाहती है, जिसके कारण डेमोक्रेट्स 2016 का चुनाव हार गए थे। इसके अलावा वामपंथी मीडिया का संदेश स्पष्ट है – अपनी कमर कस लें, अन्यथा डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाएंगे।
ये बदला हुआ ट्रेंड उन 12 सुपर स्टेट्स में काफी अहम सिद्ध हो सकता है, जहां पर चुनाव के दौरान किस ओर पाला बदल जाए पता ही नहीं चलता। इन राज्यों में एरिज़ोना, कोलोरेडो, फ्लॉरिडा, जॉर्जिया, आयोवा, मेन, मिशिगन, नॉर्थ कैरोलिना, ओहायो, पेंसिलवेनिया, टेक्सस एवं विस्कॉन्सिन भी शामिल हैं। पर ठहरिए, वामपंथी मीडिया का बदला हुआ स्वरूप कुछ जाना पहचाना सा नहीं लग रहा? यही रीति भारत में भी काफी प्रचलित है, और अमेरिका, विशेषकर दक्षिणपंथी वर्ग को भारत के तीन चुनावों से इस मामले में विशेष रूप से सीख लेनी चाहिए।
जिस प्रकार से सीएनएन ने अचानक डोनाल्ड ट्रम्प की लोकप्रियता के परिप्रेक्ष्य में अपने सुर बदल लिए, ठीक वैसे ही 2004 में लोकसभा चुनावों से पहले अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में मीडिया ने प्रकाशित कराया था। अधिकतर ओपिनियन पोल ने वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार को चुनाव में विजयी घोषित किया था।
अटल बिहारी वाजपेयी एक लोकप्रिय नेता थे, जिनहोने भारत को राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक स्थिर, और समृद्ध भारत की नींव रखी थी। चाहे Golden Quadrilateral हाईवे नेटवर्क हो, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, सर्व शिक्षा अभियान हो, भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना हो, या फिर कारगिल में विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सेना को विजय के लिए प्रोत्साहित करना हो, आप बोलते जाइए और अटल बिहारी वाजपेयी ने वो सब किया था।
ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी का चुनाव हारने का सवाल ही नहीं बनता था। लेकिन मीडिया के रिपोर्ट्स ने कई दक्षिणपंथी वोटर्स को आश्वस्त कर दिया था कि भाजपा ही चुनाव जीतेगी। नतीजा ये रहा कि 58 प्रतिशत लोग ही मतदान करने पहुंचे, और भाजपा को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था। इसी पर प्रकाश डालते हुए TFIPost के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट किया, “दक्षिणपंथी वोटर्स के साथ समस्या ये है कि वे बहुत जल्दी आश्वस्त हो जाते हैं। 2004 BJP इसलिए नहीं हारी क्योंकि इंडिया शाइनिंग को ग्रामीण भारत ने नकार दिया था, अपितु BJP इसलिए हारी क्योंकि BJP के वोटर्स आश्वस्त हो गए। जिसका दुष्परिणाम BJP को 2004 के चुनाव में भुगतना पड़ा था”
Atal Bihari Vajpayee lost not because his “Shining India” was rejected by rural India but because Congress friendly media successfully planted the notion of a BJP Landslide victory in the minds of BJP supporters.
Voters’ Complacency stole the 2004 General Elections from the BJP.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) August 17, 2020
परंतु ये दांव बार बार सफल नहीं हो पाया। जब 2014 में काँग्रेस सत्ता से बाहर निकलने वाली थी, तब भी वामपंथी मीडिया पोर्टल्स ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए वही दांव चला, जिसके चलते वे 2004 में सफल हुए थे। परंतु इस बार वोटर आश्वस्त नहीं हुआ, और भाजपा ने अविश्वसनीय बहुमत प्राप्त करते हुए 283 सीटों पर कब्जा जमाया।
पाँच वर्ष बाद एक बार फिर पीएम मोदी के लिए वामपंथियों ने प्रचंड बहुमत की भविष्यवाणी की। जैसे वाजपेयी जी के लिए उन्होने 2004 में भविष्यवाणी की थी, ठीक वैसे ही वामपंथियों ने जताया कि पीएम मोदी को कोई पद से हटा ही नहीं सकता। लेकिन दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर जैसे पीता है, ठीक वैसे ही जनता ने वामपंथियों की एक नहीं सुनी, और पीएम मोदी के लिए पहले से भी अधिक संख्या में वोट किया, और 303 सीट के प्रचंड बहुमत के साथ लोकसभा में भाजपा ने विजय प्राप्त की।
ऐसे में अमेरिकी वोटर्स इन चुनावों से सीख लेकर वामपंथी मीडिया के प्रोपगैंडा में आए बिना डोनाल्ड ट्रम्प को जमकर वोट दे सकते हैं। ट्रम्प की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका की Silent Majority है, और यदि वामपंथी मीडिया इस ताकत को तोड़ने में सफल रही, तो डोनाल्ड ट्रम्प के लिए सत्ता वापसी की राह मुश्किल हो जाएगी।