वैश्विक स्तर के लगभग सभी मंचों पर मात खाने के बाद भी पाकिस्तान लगातार कश्मीर का मुद्दा उछालने की कोशिश कर रहा है। परंतु पाकिस्तान की कोई नहीं सुन रहा, अब तो खाड़ी देशों ने भी इस मुद्दे को भारत का आंतरिक मुद्दा बताकर पल्ला झाड़ लिया है। पाकिस्तान को OIC से उम्मीद थी लेकिन OIC का सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्ष में नहीं है। ऐसे में अब पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सऊदी को धमकी दी है कि यदि सऊदी ने साथ नहीं दिया तो वह उन मुस्लिम देशों की सभा बुलायेगा जो कश्मीर पर उसके साथ है। यहाँ पाकिस्तान ने अपने नए आका तुर्की की ओर इशारा किया है क्योंकि OIC में वह एकमात्र देश है जो कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तान अपने नए आका तुर्की और एर्दोगन को खुश करने के लिए मुस्लिम देशों का सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब को धमकी दे रहा है, जो आज नहीं तो कल इस कर्ज में डूबे देश को बर्बाद कर सकता है। संक्षेप में कहें तो पाकिस्तान मुस्लिम दुनिया में अपने अस्तित्व के ताबूत में आखिरी कील ठोक रहा है।
Now #Pakistan is threatening #SaudiArabia of alternatives to #OIC on #Kashmir.
Interesting…Reminds me of 2019 when Pak FM @SMQureshiPTI boycotted the inaugural plenary of the FMs’ conclave of the @OIC_OCI in Abu Dhabi b'coz #SushmaSwaraj was invited as “guest of honour” https://t.co/LFb0J60nhX
— Geeta Mohan گیتا موہن गीता मोहन (@Geeta_Mohan) August 7, 2020
दरअसल, पाकिस्तानी न्यूज चैनल एआरवाई को दिए साक्षात्कार में कुरैशी ने कहा, “मैं एक बार फिर से पूरे सम्मान के साथ ओआईसी से कहना चाहता हूं कि विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक हम चाहते हैं। यदि आप इसे बुला नहीं सकते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह कहने के लिए बाध्य हो जाऊंगा कि वह ऐसे इस्लामिक देशों की बैठक बुलाएं जो कश्मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं।“ यानि यदि OIC ने जम्मू और कश्मीर पर अपने विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक नहीं बुलाई तो पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्रों की एक अलग बैठक बुलाएगा जो कश्मीर मुद्दे पर उसके साथ हैं। यहाँ पाकिस्तान का सीधा इशारा तुर्की की ओर था क्योंकि चीन के बाद सिर्फ तुर्की ने ही कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया है।
अब OIC के अंदर उसे केवल तुर्की से उम्मीद है क्योंकि मलेशिया से समर्थन मिलने से रहा। मलेशिया फिर से भारत के खिलाफ जाने की गलती नहीं करना चाहता।
रिपोर्ट के अनुसार कुरैशी ने कहा, “हमारी अपनी संवेदनशीलता है। आपको यह समझना होगा। खाड़ी देशों को यह समझना होगा। हम भावुक होकर यह बयान नहीं दे रहे हैं, बल्कि अपने बयान से होने वाली खलबली को पूरी तरह से समझते हैं। यह सही है, मैं सऊदी अरब से अच्छे संबंधों के बावजूद अपना रुख स्पष्ट कर रहा हूं।“ डॉन के मुताबिक कश्मीर पर सऊदी अरब के कदम नहीं उठाने से पाकिस्तान की कुंठा बढ़ती ही जा रही है।
बता दें कि जबसे भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 आर्टिकल को हटाया है तब से पाकिस्तान कभी संयुक्त राष्ट्र में तो कभी OIC में इसे उठाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भी समर्थन न मिलने के बाद पाकिस्तान ने ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (OIC) में इस मुद्दे को फिर से उठाया परन्तु उसे यहाँ ही निराशा ही मिली थी, क्योंकि सऊदी अरब और UAE जैसे देशों ने इस मुद्दे पर साथ नहीं दिया।सऊदी अरब, मुस्लिम देशों का वास्तविक नेता है और उसने कश्मीर मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बता कर पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर रहा है।
इसी के परिणाम स्वरूप अब पाकिस्तान इस्लामिक उमा यानि brotherhood से अपील कर अपना दुखड़ा रोना चाहता है। आज के समय में तुर्की अपने आप को मुस्लिम देशों के नेता की तरह बर्ताव कर रहा है और पाकिस्तान जैसे देशों को लगातार समर्थन दे रहा है। उसकी के समर्थन का नतीजा है कि पाकिस्तान सऊदी अरब जैसे देश पर भी अब सवाल खड़े करने लगा है जो उसके कई मोर्चों पर मदद करता आया है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि तुर्की पाकिस्तान की मदद कर और सऊदी को सवालों के घेरे में खड़ा करना चाहता है जिससे सभी इस्लामिक देश उसे अपना नेता मानने लगे।
हालांकि, सऊदी अरब और खाड़ी के देश पाकिस्तान को इतने हल्के में जाने नहीं देंगे क्योंकि हर मुसीबत से पाकिस्तान को निकालने के लिए ये देश आगे आते रहे हैं, खासकर सऊदी अरब।
सऊदी अरब ने कई बार पाकिस्तान की आर्थिक मदद की है और पाकिस्तानी मदरसों को सऊदी से पर्याप्त फंड मिलता है। BBC की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया तो सऊदी अरब ने ही उसे दुनिया के आर्थिक प्रतिबंधों के असर से बचाया था। वहीं वर्ष 2014 में जब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था भयंकर मंदी का सामना कर रही थी तब सऊदी ने इस्लामाबाद को डेढ़ अरब डॉलर की मदद दी थी। पिछले ही वर्ष क्राउन प्रिंस MBS ने पाकिस्तान में पेट्रोकेमिकल्स, ऊर्जा और खनन परियोजनाओं में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। सऊदी अरब पाकिस्तान के लिए पेट्रोलियम का सबसे बड़ा स्रोत है। यह पाकिस्तान को व्यापक वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है और सऊदी अरब में काम करने वाले करोड़ो पाकिस्तानी प्रवासियों से remittance भी पाकिस्तान के लिए विदेशी मुद्रा का एक प्रमुख स्रोत है।
यानि देखा जाए तो पाकिस्तान सऊदी अरब पर अत्यधिक निर्भर है। जब भी पाकिस्तान को आवश्यकता पड़ती है तब वह हर बार अपना भीख का कटोरा लेकर खाड़ी देशों के पास पहुँच जाता है। इनके खिलाफ जाना पाकिस्तान को सिर्फ भारी ही नहीं पड़ेगा बल्कि उसके अस्तित्व के लिए भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
पाकिस्तान को तुर्की की गोद में जाता देख सऊदी अरब ने जब पाकिस्तान से एक बिलियन डॉलर लोन की भरपाई की बात कही तो सऊदी का कर्ज चुकाने के लिए अब पाकिस्तान ने चीन से भीख मांगी और कर्ज चुका दिया।
स्पष्ट है, चीन और तुर्की के सहारे पाकिस्तान अब खाड़ी देशों को भी आँख दिखा रहा है परन्तु पाकिस्तान को ये बात समझ नहीं आयी कि सऊदी अरब ने कर्ज भरने की बात कर बस एक शुरुआत की है यदि अन्य देश भी सऊदी की तरह सख्त हुए तो पाकिस्तान न घर रहेगा और न ही घाट का।