चीन की चाटुकार एंजेला मर्केल की छुट्टी होने वाली है, इसलिए अब यूरोप खुलकर विस्तारवादी चीन का विरोध करने लगा है

अगर जर्मनी से एंजेला OUT, तो यूरोप से चीन भी OUT!

एंजेला मर्केल

पुरखों ने एक बात सही ही कही है, ‘सबै दिन न होत एक समान’, यानि हर दिन एक समान नहीं होता। जहां पूरी दुनिया चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालने को तैयार थी, एंजेला मर्केल के नेतृत्व में यूरोपीय संघ चीन की जी हुज़ूरी करने में लगा हुआ था। परंतु अब जो समीकरण सामने आ रहे हैं, उससे यह सिद्ध हो रहा है कि न केवल यूरोपीय संघ चीन की सच्चाई जानने लगा है, अपितु वह एंजेला मर्केल के नीतियों के विरुद्ध चीन से मोर्चा संभालने में तनिक भी नहीं हिचकिचाएगा।

हाल ही में चीन के विदेश मंत्री के पूर्णतया असफल यूरोप टूर के परिप्रेक्ष्य में यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने एक फ्रेंच और एक स्पेनिश प्रकाशन में छपे अपने लेखों में इस बात पर ज़ोर दिया है कि चीन अब सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि सोवियत संघ की भांति एक साम्राज्य बन चुका है। उनके अनुसार, “रूस, चीन और तुर्की में कुछ समान बातें है – वे बाहर से संप्रभु और अंदर से काफी तानाशाही हैं। संप्रभुता के मूल सिद्धान्त के विरुद्ध इनकी संप्रभुता दूसरे ही स्तर की है, और यदि बाकी यूरोपीय देश समय रहते नहीं चेते, तो चीन के साथ संबंध आगे चलकर काफी भारी पड़ सकते हैं।’’

बोरेल ने चीन को आड़े हाथों लेते हुए उसे एक साम्राज्यवादी ताकत बताया, जो चाहकर भी कभी महाशक्ति नहीं बन पाएगा। उनके अनुसार अब वो दिन गए जब डेंग शाओपिंग की विदेश नीति पर चीन चलता था। इसके अलावा बोरेल ने चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में की जा रही गुंडई पर भी उसे आड़े हाथों लिया।

पर ये अचानक से यूरोपीय संघ की विचारधारा में कायाकल्प कैसे हुआ?  इसके लिए हमें कुछ हफ्ते पूर्व जाना होगा, जब ईयू ने चीन पर डेटा चोरी का आरोप लगाया था। EU ने पहली बार दो चीनी नागरिकों और एक चीनी कंपनी पर  आर्थिक प्रतिबंध लगाया था। आर्थिक प्रतिबंध में EU के सदस्य देशों में मौजूद सभी सम्पत्तियों को ज़ब्त करना और इन देशों में ट्रैवल प्रतिबंधित करना शामिल है। इसके अलावा EU के सदस्य देशों के साथ किसी भी प्रकार के वित्तीय संबंध स्थापित करना उक्त कंपनी और चीनी नागरिकों के लिए प्रतिबंधित किया गया था।

बता दें कि ईयू की वर्तमान अध्यक्ष जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल हैं, जो बिलकुल नहीं चाहती कि अमेरिका और चीन के वर्चस्व में यूरोप अपनी अहमियत खो दे। इसलिए वो चीन को समर्थन देने तक के लिए तैयार है, चाहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे अपनी फजीहत ही क्यों न करानी पड़े। लेकिन जोसेफ बोरेल के बयानों से ये स्पष्ट हो चुका है कि अब ईयू तक को एंजेला पर भरोसा नहीं रहा, और यदि आवश्यकता पड़ी, तो एंजेला के नीतियों के विरुद्ध ईयू चीन से मोर्चा संभालने में भी नहीं हिचकिचाएगा।

इसके संकेत पहले ही मिल चुके हैं, क्योंकि एंजेला के विरुद्ध फ्रेंच राष्ट्रपति इम्मैनुएल मैक्रों ने स्वयं मोर्चा संभालते हुए यूरोप को चीन के चंगुल से मुक्त रहने पर ज़ोर दिया है। राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों के नेतृत्व में फ्रांस पिछले कुछ महीनों में चीन विरोधी कई बड़े कदम उठा चुका है। Reuters की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में फ्रांस ने अपने यहाँ अनौपचारिक रूप से चीनी टेलिकॉम कंपनी हुवावे पर प्रतिबंध लगा दिया है।

फ्रांस की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ANSSI के अध्यक्ष के एक बयान के मुताबिक फ्रांस में हुवावे पर पूर्णतः प्रतिबंध तो नहीं लगाया जाएगा लेकिन सरकार फ्रांस की टेलिकॉम कंपनियों को हुवावे से दूर रहने के लिए कहेगी। फ्रांस की सरकार भी हुवावे की वजह से पैदा होने वाली सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर इस चीनी कंपनी के खिलाफ यह बड़ा कदम उठा रही है , सच कहें तो ईयू ने अब स्पष्ट संदेश दिया है कि वह न चीन की गीदड़ भभकी से डरेगा, और न ही वह एंजेला मर्केल के दबाव में आकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारेगा।

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