अयोध्या में कल श्रीराम जन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण का भव्य शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई अहम हस्ती अयोध्या आए थे। पीएम मोदी ने न केवल भूमि पूजन समारोह में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, अपितु उन्होंने अपने वक्तव्य से ये भी सिद्ध किया कि वे केवल भारत के प्रधानमंत्री की हैसियत से नहीं, अपितु सनातन संस्कृति के एक सक्रिय प्रतिनिधि के रूप में पधारे थे।
पीएम मोदी ने अपने भाषण के एक अंश में कहा था, “इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा है, इतिहास अपने आप को पुनः दोहरा भी रहा है। जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह छोटे छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में एक अहम भूमिका निभाई, जिस तरह मावले छत्रपति शिवाजी महाराज की स्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल बने, उसी भांति देश भर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर के निर्माण का यह पुण्य कार्य पुनः प्रारम्भ हो चुका है”।
इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है।
जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला.. : PM
— PMO India (@PMOIndia) August 5, 2020
परंतु इसका अर्थ क्या है? आखिर पीएम मोदी ने ऐसा क्यों कहा? दरअसल, इस बयान के पीछे का अर्थ काफी गूढ़ है। इस वक्तव्य से पीएम मोदी ने ये सिद्ध किया है कि अब भारत किसी भी वैश्विक ताकत, विशेषकर चीन जैसी साम्राज्यवादी ताकत के आगे झुकने वाला नहीं है। भारत का सॉफ्ट पावर अपने चरमोत्कर्ष पर है, और इसे वैचारिक रूप से काफी धार दी जा रही है। जो भी देश भारत के विरुद्ध आँखें उठाने की हिमाकत करेगा, चाहे वो चीन हो, तुर्की हो या फिर पाकिस्तान, भारत उसको बर्बाद करके ही छोड़ेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि रामायण महज़ एक महाकाव्य नहीं, अपितु भारतीय इतिहास और सनातन संस्कृति के सबसे अहम पड़ावों में से एक माना जाता है। पीएम मोदी ने रामायण के महत्व का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे इसे झुठलाने और इसके प्रतीकों को तोड़ने के कई प्रयास किए गए, परंतु उनमें से एक भी सफल नहीं हो पाया। रामायण इतना लोकप्रिय रहा है कि इसका प्रभाव इन्डोनेशिया, मलेशिया, कोरिया, जापान, थायलैंड, कंबोडिया जैसे देशों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
यदि आपको इस बात पर विश्वास नहीं है, तो पीएम मोदी द्वारा अयोध्या से दिये गए भाषण पर एक बार फिर नज़र डालिए। सशक्त भारत के विषय पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “भय बिन होए न प्रीत, इसलिए शक्तिशाली भारत ही समृद्ध भारत बनेगा। हमें ये भी सुनिश्चित करना है कि भगवान श्रीराम का संदेश, राममंदिर का संदेश, हमारी हजारों सालों की परंपरा का संदेश, कैसे पूरे विश्व तक निरंतर पहुंचे। कैसे हमारे ज्ञान, हमारी जीवन-दृष्टि से विश्व परिचित हो, ये हमारी, हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों की ज़िम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि श्रीराम के नाम की तरह ही अयोध्या में बनने वाला ये भव्य राममंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का द्योतक होगा। मुझे विश्वास है कि यहां निर्मित होने वाला राममंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा”।
इससे स्पष्ट पता चलता है कि पीएम मोदी ने किस प्रकार से साम्राज्यवादी ताकतों के विरुद्ध बिगुल फूँक दिया है, चाहे वो कम्युनिस्ट चीन हो, या फिर इस्लामिक तुर्की हो। जो भी देश छल अथवा कपट के आधार पर धर्मांतरण को बढ़ावा देगा, भारत अब कभी भी उसके साथ खड़ा नहीं होगा, जिसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण श्रीराम जन्मभूमि परिसर के निर्माण से ही दिखाई दे रहा है।
सच कहें तो इस समय विश्व में केवल कुछ ही प्रमुख विचारधाराएँ व्याप्त है – उदारवाद, कट्टर ईसाईवाद, कट्टरपंथी इस्लाम, मार्क्सवाद। इनको चुनौती देने वाली कोई विचारधारा उपलब्ध नहीं थी, परंतु अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सनातन संस्कृति की हिन्दुत्व नीति को अपनी आवाज़ मिली है, जिसका प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, अपितु श्रीलंका, नेपाल, और कई दक्षिण एशियाई देशों में भी देखने को मिल रहा है।
निरंतर आक्रमणों के कारण सनातन संस्कृति, विशेषकर हिन्दुत्व कहीं खो सा गया था। स्वतन्त्रता के पश्चात सनातन संस्कृति और हिन्दुत्व को नीचा दिखाने और सनातनियों में हीन भावना भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। संप्रभुता के नाम पर संस्कृति से विमुख होना और सहिष्णुता के नाम पर तुष्टीकरण की विषैली विचारधाराओं को बढ़ावा दिया गया। लेकिन अयोध्या में भूमि पूजन का आयोजन कराकर पीएम मोदी ने पूरा पासा ही पलट दिया।
अगर भौगोलिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाये, तो हिन्दुत्व के पुनरुत्थान का इससे बढ़िया अवसर कोई नहीं हो ही सकता। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के देश वहाबी विचारधारा में जकड़े हैं। यहाँ तुर्की जैसे देश अपनी धाक जमाने और खिलाफ़त को दोबारा खड़ा करने के ख्वाब देख रहे हैं। ऐसे में केवल भारत ही एक ऐसा देश है, जो ऐसे लोगों को न केवल चुनौती दे सकता है, बल्कि उन्हें पटखनी भी दे सकता है।
राजनीतिक हिन्दुत्व को केवल तुर्की के तानाशाह एर्दोगन के कट्टरपंथ से ही नहीं, अपितु अवैध धर्मांतरण के गोरखधंधे में लिप्त ईसाई मिशनरियों से भी बराबर का खतरा है। ये वही मिशनरी पंथ है, जिसके लिए आज भी श्रीराम जन्मभूमि एक विवादित स्थान है, यह जानते हुए भी कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण पूरी तरह वैध हो चुका है। ऐसे में श्रीराम जन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण से भारत न केवल उन इस्लामिक आक्रांताओं को ठेंगा दिखा रहा है, जिन्होंने इस परिसर को ध्वस्त कर अयोध्या का इस्लामिकरण करने का असफल प्रयास किया था, अपितु उन नक्सलियों और वामपंथियों को भी आईना दिखाया है, जो राम के अस्तित्व को झुठलाकर भारतीयों को उनकी संस्कृति से विमुख करना चाहते हैं।
भारत ने उदारवाद के नाम पर वामपंथ के सबसे घिनौने स्वरूप के विरुद्ध भी मोर्चा खोला है, जो कभी नहीं चाहता कि भारत अपनी वास्तविक पहचान यानि सनातन संस्कृति को गले लगाए। वामपंथी चाहते हैं कि भारत हमेशा हीन भावना से ग्रस्त करे, वह विश्व के किसी भी आक्रांता के विरुद्ध मोर्चा न निकाल पाये, और न ही वह कभी भी वैश्विक राजनीति में एक अहम स्थान रख पाये। परंतु शायद वे भूल रहे हैं कि जहां चीन के पास उसकी सेना और विशाल धनसंपत्ति है, तो वहीं भारत के पास है अपनी संस्कृति और वात्सल्य से परिपूर्ण सॉफ्ट पावर, जिसके बल पर अमेरिका से लेकर, यूके, रूस, यहाँ तक कि जापान और ऑस्ट्रेलिया तक उसकी सहायता करने को तैयार है।