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यूरोप में हुई रूस की बड़ी जीत: बेलारूस में पुतिन ने जिनपिंग को उठाकर पटक दिया है

धूल का स्वाद कैसा लगा जिनपिंग?

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
15 September 2020
in यूरोप
बेलारूस
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दुनिया में चारो तरफ से घिर चुका चीन एक बार फिर से मात खा गया है। इस बार बीजिंग को किसी और ने नहीं बल्कि उसके तथाकथित मित्र रूस ने मात दी है। दरअसल,  बेलारूस जो कि एक पूर्व सोवियत राष्ट्र है, उसे रूस के प्रभाव से दूर करने के लिए और रूस से दूर करने के लिए लाखों डॉलर खर्च कर रहा था लेकिन महीनों बाद पुतिन ने अपने चीनी समकक्ष, शी जिनपिंग को करारी मात दी है।

शुरुआत में तो यह लगा कि बेलारूस भी चीन के चंगुल में फंस चुका है लेकिन अब बेलारूस के तानाशाह Alexander Lukashenko ने जिनपिंग के ऊपर पुतिन को वरीयता देते हुए रूस को अपना बड़ा भाई बताया है।रूस के सोची की यात्रा के दौरान President Alexander Lukashenko ने पुतिन से कहा, “इन घटनाओं ने हमें दिखाया है कि हमें अपने बड़े भाई के साथ रहने की जरूरत है।” इस बयान से यह स्पष्ट पता चलता है कि अब बेलारूस चीन नहीं बल्कि रूस के साथ ही रहने वाला है।

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बता दें कि बेलारूस में विवादास्पद चुनाव परिणाम के बाद बेलारूस में एक आंदोलन शुरू हो चुका था। चुनावों में Alexander Lukashenko को लगातार छठे कार्यकाल के लिए सत्ता मिली थी जिसके बाद चुनावों में धांधली का आरोप लगा था और सड़कों पर भारी प्रदर्शन शुरू हुए थे।

इस साल के शुरुआत में बेलारूसी चुनावों से पहले Alexander Lukashenko, चुनावों में हस्तक्षेप के लिए मास्को को दोषी ठहरा रहे थे। लेकिन चल रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण ना तो उनका किसी और देश ने समर्थन किया ना ही किसी ने मदद का आश्वासन दिया। उसके बाद President Alexander Lukashenko के पास समर्थन के लिए पुतिन की ओर रुख किया।

मॉस्को ने भी यह सुनिश्चित किया कि Alexander Lukashenko की ऐसे समय में मदद कर उन्हें अपने पाले में किया का सकता है और वही रूस ने किया, जिसके बाद से चीन की बेलारूस से विदाई तय हुई।

Industrial-grade humble pie being wolfed down in Sochi today, as Lukashenko tells Putin: “These events have shown us that we need to stay closer with our older brother” pic.twitter.com/vnveklhhys

— Henry Foy (@HenryJFoy) September 14, 2020

सोमवार को राष्ट्रपति Alexander Lukashenko ने सोची यात्रा ने रूस को पूरे यूरोपीय देशों के ऊपर एक ऐतिहासिक जीत दिलाई।आंदोलन शुरू होने के कारण जर्मनी सहित कई यूरोपीय देश राष्ट्रपति Alexander Lukashenko  को पद से हटाना चाहते थे उसी दौरान रूस ने Lukanshenko के समर्थन की घोषणा की थी।

अब राष्ट्रपति Alexander Lukashenko की स्थिति इतनी कमजोर हो चुकी है कि वह मिन्स्क में मास्को की किसी भी भूमिका को भी स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। यही कारण है कि वे रूस के समर्थन के लिए रूस की यात्रा पर गए और पुतिन के समर्थन को सुनिश्चित किया।

पुतिन और Alexander Lukashenko की शारीरिक भाषा से पता चलता है कि रूस न केवल “बड़े भाई” के रूप में उभरा है, बल्कि बड़े भाई की तरह बर्ताव भी कर रहा है। चीन के लिए, मॉस्को और मिन्स्क के बीच यह भाईचारा किसी हाई-वोल्टेज सदमे से कम नहीं है।बीजिंग बेलारूस के राष्ट्रपति Alexander Lukashenko को अपनी तरफ कर रूस को बेलारूस से बाहर निकालने के लिए कई तिकड़म भिड़ा चुका है।  यह सब पिछले साल शुरू हुआ, जब मिन्स्क ने China Development Bank से 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्राप्त किया।

चीन से मदद मिलने के बाद, Lukashenko प्रशासन ने रूस के साथ अपने रिश्तों को ठंडे बस्ते में डालना शुरू कर दिया था। तब बेलारूसी वित्त मंत्री Maksim Yermalovich ने स्पष्ट रूप से कहा था, “हम रूस की सरकार से ऋण नहीं चाहते  हैं और वास्तव में, इस ऋण पर बातचीत भी नहीं कर रहे हैं। हमने रूसी पक्ष को कोई अनुरोध नहीं किया है और ना ही हम रूसी ऋण प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं।”

चीजें तब और आगे बढ़ गईं, जब बेलारूसी चुनाव से 29 दिन पहले 29 जुलाई को 33 कथित रूसी भाड़े के सैनिकों को मिन्स्क में हिरासत में लिया गया।  स्थानीय अधिकारियों ने इन सैनिकों के क्रेमलिन द्वारा नियंत्रित एक निजी सैन्य कंपनी वैगनर के साथ जुड़े होने का आरोप लगाया। मिन्स्क ने आरोप लगाया कि चुनाव से पहले पूर्वी यूरोपीय देश को अस्थिर करने के लिए रूस के भाड़े के सैनिकों को तैनात किया गया था।

यहां तक ​​कि Lukashenko ने खुद बेलारूसी चुनावों में हस्तक्षेप के आरोपों को लेकर रूस की आलोचना शुरू कर दी थी। इस समय कई लोगों ने सोचा था कि चीन ने बेलारूस में रूस को मात दे दी और उसे बाहर करने के अपने इरादे के सफल हो गया, लेकिन कुछ ही महीनों में चीजें बदल गईं।

चुनावों के बाद बेलारूस के लोग राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को खारिज करते हुए सड़कों पर उतरने लगे जिससे  Lukashenko की देश पर पकड़ कमजोर होती गई और यूरोपीय देश भी उनके खिलाफ हो गए थे।

ऐसे में लुकाशेंको को कहां से मदद मिल सकती है? तब एकमात्र विकल्प बचा था वह था रूस का। इसलिए, पिछले एक साल से रूस और बेलारूस के बीच जो कुछ भी हुआ था, उसके बावजूद Lukashenko पुतिन के सामने झुक गए।

जब देश में प्रदर्शन का स्तर बढ़ता गया तब हताश Lukashenko ने रूस का दौरा किया और पुतिन से समर्थन मांगा। लगता है कि पुतिन खुद इस मौके का इंतजार कर रहे थे। Lukashenko की रूस के यात्रा पर उन्होंने मदद का आश्वासन दिया। रूस बेलारूस को रूसी ऋण के पुनर्गठन और पूर्व सोवियत देश की बैंकिंग प्रणाली का समर्थन करने की पेशकश के साथ मिन्स्क को वित्तीय मदद भी दे रहा है।

अब, पुतिन बेलारूस में बीजिंग को एक मौका भी नहीं देंगे और रूसी राष्ट्रपति रूस और बेलारूस के बीच घनिष्ठ एकीकरण के माध्यम से एक सामान्य मुद्रा जैसे उपायों को लागू करने की कोशिश कर सकते हैं। बेलारूस को चीन के चंगुल से दूर कर मॉस्को ने बीजिंग को एक कड़ा संदेश भेजा है कि रूस का पूर्वी क्षेत्र और मध्य एशिया में वह प्रभाव जमाने की कोशिश ना करे।

Tags: चीनपुतिनबेलारूस
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