“राजनीति में कुछ भी संभव है?” सुशांत केस में नाक कटवाने के बाद अब शिवसेना दोबारा BJP के पास आ रही है

दोगलों को गले लगाने की गलती मत दोहराना BJP!

शिवसेना

किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है, कुछ भी स्थाई नहीं होता ! महाराष्ट्र की राजनीति में भी अब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना नेता के बीच हुई मुलाकात के बाद कुछ ऐसी ही स्थिति सामने आ गई है। दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के केस से लेकर कोरोनावायरस समेत सभी मुद्दों पर शिवसेना की भद्द पिटने के बाद अब शायद उसे अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है और इसलिए संभावना है कि वो फिर भाजपा से नजदीकियां बढ़ाना चाहती है। परंतु शिवसेना के इतिहास को याद रखते हुए भाजपा को उससे दूरियां बनाने की आवश्यकता है।

अचानक हुई मुलाकात

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने और महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार बनने के बाद पहली बार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना नेता संजय राउत ने मुंबई के एक पांच सितारा होटल में शनिवार को लगभग 2 घंटे की लंबी मुलाकात की। इस पूरे राजनीतिक डेवेलपमेन्ट के बाद से ही महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों में हलचल मच गई है और अलग-अलग तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं।

मचा दी खलबली

बीजेपी नेता प्रवीण दारेकर ने दोनों की मुलाकात को लेकर कहा, शिवसेना नेता ने फडणवीस का ‘सामना’ के लिए बिहार चुनाव के संबंध में इंटरव्यू लिया है जिसको लेकर पहले ही अनएडिटेड इंटरव्यू की बात हो चुकी थी। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। दारेकर एक संवेदनशील राजनेता और फडणवीस के करीबी है। ऐसे में उनकी ये बात लोगों को पच नहीं रही है। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटिल ने कहा, “हम सरकार गिराने का प्रयास नहीं करेंगे, अगर ये अपने अंतर्विरोध के कारण गिरती है तो आगे क्या होगा, कुछ नहीं पता।”

औपचारिक थी मुलाकात

इस मुद्दे पर जब संजय राउत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मुलाकात बस इंटरव्यू के सिलसिले मे ही थी और फडणवीस के साथ रिश्तों को लेकर उन्होंने कहा कि ‘हम दुश्मन नहीं है’। राउत ने कहा, ‘मैं कुछ मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कल देवेंद्र फडणवीस से मिला। वह पूर्व सीएम हैं। इसके अलावा, वह महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता हैं और बिहार चुनाव के लिए भाजपा के प्रभारी हैं। वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हमारी बैठक के बारे में जानकारी है।’

गौरतलब है कि शिवसेना का जब भाजपा से गठबंधन टूटा था तो  उसकी शुरुआत शिवसेना की तरफ से राज्यसभा सांसद संजय राउत ने ही की थी। संजय राउत ने भाजपा समेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर इतने पुराने साथ के बावजूद बेतरतीब तरीके से विवादित बयान दिए थे। इन सब के बावजूद जब तक आधिकारिक रुप से गठबंधन नहीं टूटा, तब-तक भाजपा ने कोई आक्रमक पलटवार नहीं किया था। ऐसे में अब संजय राउत का अचानक फडणवीस से मिलना नई राजनीतिक उहापोह की स्थिति को जन्म दे सकता है।

शिवसेना की किरकिरी

गौरतलब है कि पिछले साल भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद जिस तरह से शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा का हाथ झटकते हुए विपक्षी विचारधारा वाली कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई थी, उस वक्त से लेकर अब तक शिवसेना अक्सर अपने कार्यों को लेकर चर्चा में रहती है। पालघर में संतों की हत्या, पत्रकारों पर बेजा एफआईआर, कोरोनावायरस को रोकने में विफलता, अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ विवाद, पूर्व सैनिक के साथ मारपीट और सबसे महत्वपूर्ण दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के केस में जिस तरह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने कदम उठाए हैं उससे शिवसेना की छवि बेहद खराब हुई है, और भाजपा शिवसेना पर लगातार हमले बोल रही है। यहां तक कि कांग्रेस और एनसीपी भी उसके साथ नहीं खड़ी है।

घर वापसी की कोशिश ?

शिवसेना पर लगातार पड़ रहा चौतरफा दबाव उसके लिए मुसीबत बन गया है। शायद अब इस पार्टी के नेताओं को ये आभास हो चुका है कि जिस तरह से उनकी छवि बिगड़ रही है उससे उनका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है। ऐसे में राउत के फडणवीस से मिलने के बाद आशंकाएं भी लगाई जा रही है कि शिवसेना दोबारा एनडीए में घर वापसी करने की कोशिश में तो नहीं कर रही है। लेकिन भाजपा को ये समझने की आवश्यकता है कि शिवसेना ने अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए ही एनडीए का साथ छोड़ा था, जो ये साबित करता है कि शिवसेना गठबंधन धर्म से उपर सत्ता को रखती है। महाराष्ट्र की जनता भी शिवसेना से खुश नहीं है।

ऐसे में भाजपा यदि शिवसेना को स्वीकारती है तो उसके लिए आगे फिर नुकसान की स्थितियां ही होंगी, जिसको लेकर जानकारों का मानना है कि भाजपा को शिवसेना से बनी दूरियों को बरकरार रखते हुए महाराष्ट्र की राजनीति में ‘एकला चलो रे’की नीति पर चलना चाहिए जो कि राज्य में उसकी स्थिति को मजबूत करेगी।

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