आतंक को एक्सपोर्ट करवाने में निपुण पाकिस्तान का कश्मीर प्रेम किसी से छुपा नहीं है। 1947 से लेकर अब तक करीब सात बार पाकिस्तान इस विषय पर भारत से भिड़ चुका है, और सातों बार उसे मुंह की खानी पड़ी है, पर मजाल है कि पाकिस्तान ने कश्मीर का राग अलापना छोड़ा हो। लेकिन अब एक देश पाकिस्तान के ही क्षेत्रों पर अपनी नज़र गड़ाए हुए है, और यदि पाकिस्तान समय रहते नहीं चेता, तो उसे घनघोर बेइज्जती का सामना करना पड़ सकता है।
हम बात कर रहें है अफगानिस्तान की, जिसने अब वर्षों पुरानी Durand Line (डूरण्ड रेखा) की समस्या को एक बार फिर जगजाहिर किया है। टोलो न्यूज़ से विशेष बातचीत में अफगानी उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने बताया, “ऐसा कोई अफगानी नेता नहीं होगा जिसे दुनिया की समझ हो और डूरण्ड रेखा के मुद्दे को अनदेखा कर दे। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर गहन चर्चा की आवश्यकता है। हम ऐसे ही इस मुद्दे को जाने नहीं दे सकते। एक समय पेशावर अफ़ग़ानिस्तान का विंटर कैपिटल हुआ करता था”।
इतना ही नहीं अमरुल्लाह सालेह ने अपने ट्वीट में ये भी कहा, “जो अफगानी नेता इस समय डूरण्ड रेखा को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, उन्हें आगे बहुत बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इसे अंजाम तक पहुंचाना ही पड़ेगा। हम इस मुद्दे को यूं ही दान नहीं कर सकते!”
No Afghan politician of national stature can overlook the issue of Durand Line. It will condemn him or her in life & after life. It is an issue which needs discussions & resolution. Expecting us to gift it for free is un-realistic. Peshawar used to be the winter capital of Afg
— Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) September 6, 2020
बता दें की डूरण्ड रेखा को तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया के शासकों और अफगानिस्तान के शासक अब्दुर रहमान खान के बीच आपसी सम्बन्धों को सुधारने हेतु 1893 में खींची गई थी। ये 2600 किलोमीटर लंबी लाइन अंग्रेजों ने अफगान शासकों पर थोपी थी, और 1947 के पश्चात इसे ही अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर मान लिया गया। तबसे अफगानिस्तान ने कई बार पाकिस्तान से इस विषय पर चर्च करने का प्रयास किया था, लेकिन पाकिस्तान के कान पर जूँ तक न रेंगी। अफगानिस्तान ने ये भी मांग की थी कि पशतून समुदाय को स्वतंत्र रहने का अधिकार मिले, परंतु इसे भी अंग्रेजों और पाकिस्तानियों ने नज़रअंदाज़ कर दिया।
इसके अलावा सीमा पर पाकिस्तान ने भारत की भांति ही अनेकों बार अफ़गानिस्तान के साथ पंगा मोल लिया है। यही नहीं, काबुल के गुरुद्वारे में हुए बम धमाकों में भी ISIS खुरासान का नाम सामने आया था। गौरतलब है कि इसके बाद ISIS खुरासान प्रोविन्स (ISKP) चीफ असलम फ़ारुखी को गिरफ्तार किया गया था, जो कि पाकिस्तानी मूल का है। सुरक्षा एजेंसियों को इसके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसि ISI से संबंध का पता चला है। यह ISKP से जुड़ने से पहले लश्कर ए तैयबा में सक्रिय था। यह सर्वविदित है कि लश्कर ए तैयबा पूरी तरह से पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाला आतंकी संगठन है जिसकी स्थापना पाकिस्तान ने भारत पर हमलों के लिए की थी।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जहां पाकिस्तान कश्मीर पर आँख गड़ाए बैठा है, वहीं अब अफ़गानिस्तान भी अपनी ताकत सिद्ध करने के लिए पाकिस्तान के पैरों तले उसी कि ज़मीन अपने क्षेत्र में स्थानांतरित करना चाहता है। ऐसे में न केवल पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेइज्जती होगी, बल्कि कश्मीर को हथियाने का ख्वाब भी केवल ख्वाब ही रहेगा।