यूरोप और चीन के बीच Trade deal और निवेश संधि जैसे मुद्दों पर घमासान के बाद अब मामला ताइवान तक जा पहुंचा है। दरअसल, हाल ही में Brussels में मौजूद Global Covenant of Mayors for Climate and Energy यानि GCoM ने अपनी आधिकारिक वैबसाइट पर ताइवान के छः सदस्य शहरों को चीन का हिस्सा बता डाला। इसपर ताइवान भड़क उठा और ताइवान के छः के छः शहरों के मेयरों ने GCoM के अध्यक्ष को पत्र लिखकर जल्द से जल्द इस गलती को सही करने को कहा। ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया, और बाद में EU के हस्तक्षेप के बाद उन सभी छः शहरों को चीन के नाम की बजाय Chinese Taipei के नाम के नीचे लिखा गया। इस संघर्ष में साथ देने के लिए ताइवान के विदेश मंत्री ने संसद में खड़े होकर EU का धन्यवाद किया।
कोरोना के बाद ताइवान लगातार अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, और चीन को यह बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा है। ऐसे में चीन सभी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को “ताइवान” नाम का इस्तेमाल करने से हतोत्साहित कर रहा है। इस बात की संभावना भी बेहद ज़्यादा ही है कि GCoM ने भी चीनी दबाव में आकर ही अपनी आधिकारिक वैबसाइट पर ताइवान के छः शहरों को चीन का हिस्सा दिखाया होगा। हालांकि, GCoM की इस हरकत के बाद ताइवान के शहरों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली। ताइवान के एक शहर की क्षेत्रीय सरकार ने सख्त भाषा में कहा “हम किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा ताइवान के ऐसे अपमान को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे”।
वैश्विक राजनीति में यूरोप और चीन बेहद “करीबी साझेदार” माने जाते हैं। कोरोना से पहले और कोरोना के दौरान भी EU और चीन के बीच की तुकबंदी पूरा विश्व देख चुका है। हालांकि, पिछले कुछ समय में कई मुद्दों पर दोनों पक्षों में तनाव देखने को मिला है। बता दें कि पिछले करीब 6 सालों से दोनों पक्ष व्यापार संधि को लेकर बातचीत कर रहे हैं, और अब तक इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। EU चाहता है कि चीन द्वारा उसकी कंपनियों को मिलने वाली रियायतों और सब्सिडी पर रोक लगा दी जाये, ताकि EU में कंपनियों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का माहौल बन सके। हालांकि, इस बात के आसार बेहद कम ही हैं कि पूंजीवादी मॉडल का पालन करने वाला चीन ऐसा करने के लिए राजी होगा। इसके बाद अब यूरोप के राजनयिक चीन के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं। चीन में मौजूद EU के राजदूत ने Nicolas Chapuis ने हाल ही में चीन को घेरते हुए कहा था “हमें सच्चाई और वादों के बीच की खाली जगह को भरना होगा। यूरोप में हुवावे के पास 40 प्रतिशत मार्केट शेयर है, जबकि यूरोप की Nokia और Ericson के पास चीन में सिर्फ 11 प्रतिशत मार्केट शेयर ही है”।
इस पूरे प्रकरण के बाद गुस्साए चीन ने भी जर्मनी के नेतृत्व वाले EU को मज़ा चखाने के लिए इस महीने की शुरुआत में जर्मनी से आयात होने वाले Pork पर बैन लगाने का ऐलान कर दिया। जर्मनी में उस वक्त सिर्फ 1 Wild boar में ही अफ्रीकन स्वाइन फीवर का केस पाया गया था। चीन के इस एक्शन के बाद दोनों पक्षों में तनाव और बढ़ गया है। ताइवान के मुद्दे पर भी अब EU चीन के विरोधी सुर अपनाने लगा है।
दरअसल, EU के ही एक सदस्य देश चेक गणराज्य ने चीन की नाक में दम कर रखा है। हाल ही में चेक ने एक प्रतिनिधिमंडल को One China Policy के खिलाफ ताइवान की यात्रा पर भेजा था। इस दौरान कार्यक्रम में चेक सीनेट के अध्यक्ष Vystrcil ने ताइवान के लिए समर्थन दिखाते हुए अपने आप को ताइवानी बता दिया। उन्होंने कहा कि “मैं ताइवानी हूं।” उनका यह भाषण अमेरिकी राष्ट्रपति John F Kennedy से प्रेरित था जब उन्होंने बर्लिन को अपना समर्थन देते हुए अपने आप को बर्लिन का घोषित कर दिया था। इस सब के बाद चीन का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया था, और बाद में जब चीन ने चेक रिपब्लिक को धमकी जारी की, तो पूरा यूरोप उसके समर्थन में खड़ा हो गया। जर्मनी, फ्रांस, स्लोवाकिया जैसे देशों ने खुल कर चीन की इन धमकियों के खिलाफ चेक गणराज्य के साथ खड़े दिखाई दिये।
#Slovakia stands by the Czech Republic. #EU–#China relations are based on dialogue and mutual respect. Threats directed at one of the EU members and its representatives contradict the very essence of our partnership and as such are unacceptable.
— Zuzana Čaputová (@ZuzanaCaputova) September 1, 2020
ऐसे में अब EU द्वारा GCoM के मुद्दे पर भी ताइवान का भरपूर साथ देना दिखाता है कि EU अब चीन को डंप कर चुका है और वह अब ताइवान का समर्थन करने से पीछे नहीं हटेगा। EU के इस रुख में बदलाव की बड़ी वजह यूरोप में एंजला मर्कल के प्रभाव में कमी आना बताई जा रही है। लेकिन कारण चाहे जो कुछ भी हो, इतना तो तय है कि यूरोप के इस नए अवतार से चीन को बड़ा कष्ट पहुँच रहा है।