तिब्बत की तरह ही बलूचिस्तान भी भारत में अपनी निर्वासित सरकार चाहता है, भारत को उनकी मांग माननी चाहिए

कश्मीर के बाद पाकिस्तान को भारत देगा बलूचिस्तान का झटका?

बलूचिस्तान

पाकिस्तान की स्थापना के बाद से ही बलूचिस्तान अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है। बलूचिस्तान, जो भौगोलिक रूप से पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है, उसके ऊपर पाकिस्तानी सेना ने 1947 में जबरन कब्जा कर लिया था। जहां एक ओर पाकिस्तान कश्मीर में लगातार अलगाववादी संगठनों को मदद देता रहा वहीं, भारत ने बलूचिस्तान के मुद्दे को कभी अपनी विदेश नीति में प्रमुखता से जगह नहीं दी। लेकिन बलूचिस्तान के लोगों को अब भी भारत सरकार से आशा है कि, वह स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य में उनकी सहायता करेगी।

TimesNow की रिपोर्ट के अनुसार निष्कासित बलूच नेताओं ने भारत में तिब्बत की तर्ज पर बलूचिस्तान की निर्वासित सरकार के निर्माण की इच्छा जताई है। इसकी घोषणा बलूच वॉयस एसोसिएशन के अध्यक्ष मुनीर मेंगल और वैंकूवर में निर्वासित बलूच पीपुल्स कांग्रेस की चेयरपर्सन नायला चतुरी ने की। उन्होंने यह बात Balochistan-Quest for self-determination: An analysis” शीर्षक नामक एक वेबिनार के दौरान कही। कार्यक्रम का आयोजन दक्षिणपंथी थिंक टैंक, सेंटर फॉर पॉलिसी एंड डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा किया गया था।

मेंगल ने कहा कि, भारत सरकार को बलूचिस्तान के मामले में सक्रिय होना चाहिए। वहीं चीन की CPEC योजना और दक्षिण एशिया में भारत को घेरने की उसकी मंशा की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “यदि चीन द्वारा बनाई गई योजना सफल होती है तो यह पूरे दक्षिण एशिया और दक्षिण एशियाई देशों को प्रभावित करेगी।”

उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद अपने कठोर अनुभव को भी सुनाते हुए कहा कि, दो साल तक उनका किसी बाहरी व्यक्ति से सम्पर्क नहीं हुआ। इस दौरान वे हिरासत में क्रूर अत्याचार का सामना कर रहे थे।

बलूच नेता नाएला क़ादरी ने अपने बयान में पाकिस्तान आर्मी पर आरोप लगाते हुए कहा कि, पाकिस्तान आर्मी बलूचिस्तान के लोगों को अगवा कर उनके अंग का व्यापार भी करती है। साथ ही उन्होंने कहा, “चीन अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है और इससे क्षेत्र में एक बड़ा संकट पैदा होगा। वे संयुक्त राष्ट्र की तरह अंतर्राष्ट्रीय निकायों में भी बलूच आवाजों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।”

जब से पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है बलूचिस्तान के लोगों की भारत सरकार से उम्मीदें बढ़ गई हैं। यही कारण था कि प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने पर बलूचिस्तान के लोगों ने नरेंद्र मोदी को बधाई भी दी थी। इस बार लाल किले से अपने भाषण के दौरान बलूचिस्तान के लोगों की बात उठाकर प्रधानमंत्री ने भारत की नीति में भावी परिवर्तनों की रूपरेखा तैयार कर दी है। प्रधानमंत्री का संदेश यह बताने के लिए पर्याप्त था कि, भारत बलूचिस्तान की आजादी को अपनी विदेश नीति का मुख्य मुद्दा बनाने पर विचार कर सकता है। यह एक ऐसा कदम है जिसकी उम्मीद पाकिस्तान तो क्या भारत में भी विशेषज्ञों ने नहीं की थी। अब बलूचिस्तान के नेताओं द्वारा भारत में निर्वासित सरकार बनाने की इच्छा व्यक्त की गई है तो भारत को भी इस मौके का फायदा उठाना चाहिए।

गौरतलब है कि, बलूचिस्तान में पाकिस्तान की सेना के साथ ही चीनी आर्थिक इकाइयों पर भी हमले तेज हो गए। हमने अपनी एक रिपोर्ट के जरिए यह बताया था कि, कैसे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान और चीन की सरकारों के लिए सिरदर्द बन गई है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने सिंध की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों से भी हाथ मिला लिया है।

महत्वपूर्ण यह है कि, बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहे संगठन वैचारिक रूप से भारत के बहुत नजदीक हैं। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की ही बात करें, तो इस पर भले ही आतंकवादी संगठन होने का आरोप पाकिस्तान की सरकार द्वारा लगाया जाता है, किंतु वास्तविकता यह है कि, इस संगठन ने ना सिर्फ लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है बल्कि अपने देश के इतिहास को वे सिंधु घाटी सभ्यता तथा मेहरागढ़ संस्कृति से जोड़ते हैं। सह बताता है कि, इन संगठनों का वैचारिक आधार कितना मजबूत है।

अभी हाल अमेरिका में पूर्वी तुर्किस्तान की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने भी भारत सरकार से अपने देश की आजादी के लिए मदद की गुहार लगाई थी। पूर्वी तुर्किस्तान, चीन के कब्जे वाले शिंजियांग प्रांत को कहते हैं, जहाँ की मूल आबादी उइगर मुसलमानों की है। उनपर चीन का अत्याचार जगजाहिर बात है। पूर्वी तुर्किस्तान के बाद अब बलूचिस्तान के नेताओं ने भी भारत सरकार से खुले तौर पर सहायता मांगी है। यह बताता है कि, भारत को एक ऐसी महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है जो चीन और पाकिस्तान की विध्वंसकारी नीतियों से दक्षिण एशिया की रक्षा कर सकता है।

निश्चित रूप से भारत सरकार को बलूचिस्तान के नेताओं को शरण देनी चाहिए और बलूचिस्तान मुक्तिसंग्राम में सहायता प्रदान करनी चाहिए। यह सामरिक और कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम होगा। इसके अतिरिक्त भारत एक लोकतंत्र है और स्वतंत्रता के प्रति हमारी प्रतिबध्दता होने के कारण यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है कि हम बलूचिस्तान जैसी क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करें।

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