थर्र-थर्र कांपता है चीन भारत के सिख सैनिकों से- 100 साल पुराना किस्सा सुनकर आज भी सिहर उठती है PLA

पता है तिब्बत बॉर्डर पर PLA वाले पंजाबी गाने क्यों बजाते हैं? कारण यहाँ है

चीन

इंडो-तिब्बत सीमा विवाद के बीच चीन ने इलाके में लाउडस्पीकर लगा दिए हैं, जिसमें वो लगातार पंजाबी गाने और धुन बजा रहा है। चीन का ये रवैया जाहिर करता है कि चीन इन सैनिकों का ध्यान भटकाने की कोशिश में पंजाबी गानों के जरिए सिखों को सबसे अधिक निशाने पर ले रहा है क्योंकि वो भारत के सिख सैनिकों से न केवल नफरत करता है बल्कि उनके शौर्य के कारण उनसे डरता भी है।

दरअसल, अब चीनी सेना रेजांगला के फिंगर 4 के पास फ्रंट की पोस्ट पर बड़े लाउडस्पीकर लगा दिए हैं और इन लाउडस्पीकरों में लगातार पंजाबी गाने बजाए जा रहे हैं। पंजाबी सैनिकों को भड़काने और भटकाने के लिए चीन अपनी इसी रणनीति पर काम कर रहा है। इसमें ऐसे गाने हैं जो भारत सरकार के खिलाफ सिख सैनिकों को उकसाने वाले हैं। गौरतलब है कि ये सारी पोस्ट भारतीय सेना की तैनाती वाले इलाकों के बहुत नजदीक हैं।

शौर्य से है वाकिफ

ब्रिटिश राज में बनी सिख और पंजाब रेजीमेंट के शौर्य के कई किस्से है। एक किस्सा तो चीन के ही बीजिंग का ही है। जब बॉक्सर विद्रोह के दौरान 400 से ज्यादा विदेशियों को बंदी बनाए हुए विद्रोहियों को नाकाम करने के लिए आठ राष्ट्रों की संयुक्त सेना बीजिंग भेजी गई थी। 20,000 की कुल संयुक्त सेना में करीब 8,000 भारतीय सैनिक थे जिसमें सबसे अधिक सिख और पंजाबी ही थे। जिसमें 51 सिख रेजीमेंट, 91 पंजाब रेजीमेंट, 24 पंजाब रेजीमेंट, 4 गोरखा रेजीमेंट समेत भारत की ओर से एक बड़ी सेना शामिल थी।

इस दौरान विद्रोहियों से 55 दिन तक चले युद्ध में सिख रेजीमेंट की विशेष भूमिका थी और ये शौर्य चीन को बिल्कुल पसंद नहीं आया था। यहीं नहीं चुशुल के सेना मेस में जो लाफिंग बुद्धा की मूर्ति है वो भी भारतीय सिक्ख सैनिकों के शौर्य की ही देन है। मिंग राजवंश की घंटी जो कि ब्रिटिश जनरल द्वारा लूटी गई थी उसे बीजिंग को भारतीय सैनिकों ने ही वापस दिया था।

सिख विरोधी है रवैया           

चीनी हमेशा से ही खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते रहे हैं। ये खुद को ‘हान’ वंश का मानते हैं। ऐसे में चीनी सैनिकों की जब सिखों समेत हर जगह से पराजय मिली तब से सिखों के प्रति उनके मन में विषैली भावनाओं का जन्म हुआ। चीन में सिखों के खिलाफ नस्लवाद का खुला खेल चलता है। पगड़ी पहने, दाढ़ी और कटार रखने वाले सिखों के प्रति चीन की नफरत किसी से छिपी नहीं है। सिखों के शौर्य से चीनी हमेशा ही परिचित रहे हैं। 1962 में हार के बावजूद सिख रेजिमेंट ने चीनी पीएलए को परेशान कर दिया था और अनेकों चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। हिमालय के दक्षिणी भाग में भारतीय इलाकों को दर्शाने के लिए भी चीनी इन्हीं  को प्रदर्शित करते हैं।

चीन समय-समय पर सिखों को अपमानित करने वाले रवैए पर काम करता रहा है। उनके धार्मिक प्रतीकों का अपमान, समेत उनकी आधिकारिक तस्वीरों में पगड़ी न पहनने का आदेश, बड़ी दाढ़ी पर एतराज़ किया जाता रहा है। पुलिस समेत चीन की तानाशाह सरकार सिखों के लिए फरमान जारी करती है कि उन्हें अगर चीन में रहना है सिखों को पगड़ी और दाढ़ी निकालनी होगी, ये चीन की तानाशाह और नस्लवादी नीति को दर्शाता है।

पहले भी कर चुके हैं छल

चीन का इतिहास ऐसा ही है जब वो भारत से नहीं जीत पाता है तो वो छल करने लगता है। लद्दाख में चीन का ये रवैया यही दर्शाता है कि चीनी पीएलए सिखों से कितना डर रही है और फिर इसीलिए वो ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है। आस्ट्रेलियाई पत्रकार नेविल मैक्सवेल ने बताया कि कुछ ऐसा ही सेना को भ्रमित करने के लिए 1962 में भी चीनी पीएलए द्वारा किया गया था। वरना ऐसा क्यों होगा कि अपने देश में सिखों के खिलाफ काम करने वाला चीन अचानक भारतीय सिक्खों के प्रति प्रेम उजागर करने लगेगा।

इसके पीछे की मंशा केवल चीन की कूटनीतिक चाल है जिससे वो सिख सैनिकों को भ्रमित कर सके क्योंकि उसे सिख सैनिकों के बारे‌ में अच्छे से पता है कि ये अपने शौर्य के दम पर चीनी पीएलए की नाक में दम कर सकते हैं।

 

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