दुनिया के अन्य इलाकों की तरह ही पेसिफिक क्षेत्र की भू-राजनीति में भी चीन को एक के बाद एक पटखनी मिलती जा रही है। ताइवान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश मिलकर चीनी सपनों को पंचर करने में लगे हैं। इसी कड़ी में अब चीन को Solomon द्वीपों में भी बड़ा झटका लगा है। दरअसल, अब Solomon द्वीप समूह के सबसे ज़्यादा आबादी वाले मलाइता द्वीप ने चीन समर्थक Solomon से अलग होने का फैसला लिया है।
अगर Solomon Islands को पैसिफ़िक में चीन से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश माना जाए, तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। पिछले साल ही SI ने ताइवान के साथ अपने सारे रिश्ते खत्म कर बीजिंग के साथ रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश की थी। इसके बाद ही चीन ने SI में बड़े पैमाने पर निवेश करना शुरू किया। कुल मिलाकर, निवेश के बदले में चीन ने SI को खरीद ही लिया था। हालांकि, मलाइता को यह बिलकुल पसंद नहीं आया।
मलाइता अब ना सिर्फ Solomon द्वीप समूह से अलग होने की बात कर रहा है, बल्कि वह लगातार अमेरिका के साथ भी नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है। मलाइता अब अमेरिका के साथ मिलकर अपने यहाँ एक deep sea port के निर्माण की संभावनाओं को भी तलाश रहा है, ताकि उस क्षेत्र में चीन के sea ports के लिए चुनौती खड़ी की जा सके। यह चीन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा क्योंकि मलाइता द्वीपों की लोकेशन रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है।
मलाइता जल्द ही अपने यहाँ एक जनमत संग्रह करा सकता है, जिसमें वह आधिकारिक तौर पर SI से अलग होने का फैसला ले सकता है। यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि मलाइता के इस कदम को लोकतान्त्रिक देशों जैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का पूरा समर्थन हासिल है। चीन SI में अपना military base स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अगर मलाइता में अमेरिका को अपना base स्थापित करने का मौका मिल जाता है, तो चीन का सपना अधूरा ही रह जाएगा।
Solomon द्वीप रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम हैं, और अमेरिका-चीन के बीच जारी शीत युद्ध के दौरान तो ये और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ये द्वीप PNG द्वीपों से महज़ 1800 किमी पूर्व में स्थित हैं। अमेरिका यहाँ के आसपास के क्षेत्रों में जैसे गुआम द्वीपों पर पहले ही मौजूद है। साथ ही PNG में भी अमेरिका अपना बेस स्थापित करने जा रहा है। ऐसे में Solomon में चीन का बेस अमेरिका के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता था।
चीन भी यह जानता था और इसीलिए वह SI के साथ बड़े तेजी से यह समझौते पक्का करना चाहता था। यहाँ तक कि उसने SI के साथ एक समझौता कर तुलागी द्वीपों को विकसित करने के लिए चीनी कंपनी के साथ करार तक कर लिया था। China Sam Enterprise Group इन द्वीपों को 75 सालों के लिए लीज़ पर लेने की कोशिशों में लगा था। इससे साफ था कि भविष्य में चीन यहाँ अपना सैन्य अड्डा स्थापित करने का विचार कर रहा था। चीन के लिए सब कुछ एकदम सही जा रहा था, लेकिन बाद में मलाइता के फैसले ने अब चीन की चिंताओं को बढ़ा दिया है।
हाल ही में मलाइता के अध्यक्ष डेनियल सुइदानी ने SI की सरकार पर यह आरोप लगाया था कि SI उसे अपने फैसले मानने के लिए मजबूर कर रहा है। मलाइता ने SI द्वारा ताइवान के साथ रिश्ते खराब किए जाने का भी विरोध किया था। सुइदानी ने कहा था “यह मलाइता के लोगों का अधिकार है कि वे यह तय कर सकें कि उन्हें अब भी ऐसी सरकार के शासन में जीना है, जो आए दिन तानाशाही रवैया अपना रही हो।’ साफ है कि मलाइता Solomon द्वीप समूह से अलग होने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, और अगर ऐसा होता है तो यह पेसिफिक में चीन के प्रभुत्व को कम करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।